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नीतीश कुमार ने शराबबंदी को बनाया प्रतिष्ठा का सवाल, तो तमाम दलों ने किया खुद को किनारा

साल 2016 में बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) लागू किया गया था. तब तमाम दलों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था लेकिन 5 साल बाद भी जहरीली शराब से मौत (Death Due to Poisonous Liquor) का सिलसिला थम नहीं रहा है. ऐसे में आज स्थिति ये है कि शराबबंदी पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) अकेले पड़ गए हैं. विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी भी इस मुद्दे पर साथ देते नहीं दिख रहे हैं. सवाल है कि आखिर क्यों नीतीश ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. पढ़ें खास रिपोर्ट...

शराबबंदी पर अकेले पड़े नीतीश
शराबबंदी पर अकेले पड़े नीतीश
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Published : Jan 17, 2022, 11:10 PM IST

पटना: नालंदा में जहरीली शराब से मौत (Death Due to Poisonous Liquor) के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दल भी हमलावर हैं. खास बात ये है कि साल 2016 जब बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) लागू करने का फैसला लिया था, तब तमाम राजनीतिक दलों ने विधानमंडल से सर्वसम्मत से प्रस्ताव पारित किया था लेकिन आज शराबबंदी से ज्यादातर पार्टियां संतुष्ट नहीं हैं और इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.

ये भी पढ़ें: नीतीश कुमार को सुशील मोदी का साथ मिला, कहा- जहरीली शराब से मौत का शराबबंदी से कोई संबंध नहीं

दरअसल, पिछले कुछ महीनों में जहरीली शराब से मौत का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है. होली त्यौहार के दौरान 3 दर्जन से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समा गए थे. एक बार फिर नालंदा में जहरीली शराब से 13 लोगों की मौत के बाद बिहार में शराबबंदी पर सवाल उठने लगे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) नीतीश कुमार अकेले पड़ गए हैं. सहयोगी बीजेपी, हम और वीआईपी शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठा चुकी है. वहीं विपक्षी खेमे का साथ भी नीतीश को नहीं मिल रहा है. आरजेडी, कांग्रेस और वामदल भी शराबबंदी कानून की समीक्षा की वकालत कर रहे हैं.

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शराबबंदी कानून को लेकर अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केसों की बढ़ती संख्या को लेकर नाराजगी भी जाहिर की गई थी. बता दें कि नीतीश कुमार शराबबंदी को सफल बनाने के लिए समाज सुधार यात्रा शुरू कर चुके हैं लेकिन संक्रमण बढ़ने के चलते फिलहाल यात्रा को स्थगित रखा गया है.

बीजेपी की ओर से शराबबंदी कानून को लेकर कई बार सवाल खड़े किए गए हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जहां समीक्षा की वकालत कर चुके हैं, वहीं शराबबंदी के गुजरात मॉडल को लागू करने की वकालत भी की जा रही है. बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि शराबबंदी लागू हुए लंबा अरसा बीत गए, समीक्षा तो होनी चाहिए. जब सभी दल के नेता बैठेंगे तो कुछ ना कुछ समाधान जरूर निकलेगा. वहीं, हम पार्टी तो बीजेपी से भी दो कदम आगे है. प्रदेश प्रवक्ता विजय यादव ने कहा कि शराबबंदी का खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ रहा है. सरकार को शराब बंदी कानून वापस लेना चाहिए.

ये भी पढ़ें: BJP को JDU विधायक की दो टूक- 'साथ छोड़ना है तो छोड़ दीजिए, कौन कह रहा है रहने के लिए'

मुख्य विपक्षी दल आरजेडी भी शराबबंदी कानून के पक्ष में नहीं है. पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि अगर नीतीश सरकार ठीक तरीके से बिहार में शराबबंदी लागू नहीं कर सकती है तो कानून को वापस ले लेना चाहिए. हालांकि जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि कानून की समीक्षा की जरूरत नहीं है. सर्वसम्मत प्रस्ताव पर समीक्षा आखिर क्यों हो. महिलाएं समीक्षा कर रही हैं. बिहार में शराबबंदी कानून को मजबूती के साथ लागू किया जाएगा. जहरीली शराब मामले में जो कोई भी दोषी होंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि शराबबंदी कानून सभी दलों की सहमति से लाया गया था लेकिन अब सभी दलों की ओर से विरोध में आवाज उठाई जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी टिप्पणी की जा चुकी है. नीतीश कुमार को लोकतांत्रिक मूल्यों का ख्याल रखते हुए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: CM नीतीश पर BJP का सबसे बड़ा हमला, संजय जायसवाल बोले- 'सुशासन की पुलिस शराब माफियाओं से मिली हुई है'

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पटना: नालंदा में जहरीली शराब से मौत (Death Due to Poisonous Liquor) के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दल भी हमलावर हैं. खास बात ये है कि साल 2016 जब बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) लागू करने का फैसला लिया था, तब तमाम राजनीतिक दलों ने विधानमंडल से सर्वसम्मत से प्रस्ताव पारित किया था लेकिन आज शराबबंदी से ज्यादातर पार्टियां संतुष्ट नहीं हैं और इसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.

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दरअसल, पिछले कुछ महीनों में जहरीली शराब से मौत का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है. होली त्यौहार के दौरान 3 दर्जन से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समा गए थे. एक बार फिर नालंदा में जहरीली शराब से 13 लोगों की मौत के बाद बिहार में शराबबंदी पर सवाल उठने लगे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) नीतीश कुमार अकेले पड़ गए हैं. सहयोगी बीजेपी, हम और वीआईपी शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठा चुकी है. वहीं विपक्षी खेमे का साथ भी नीतीश को नहीं मिल रहा है. आरजेडी, कांग्रेस और वामदल भी शराबबंदी कानून की समीक्षा की वकालत कर रहे हैं.

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शराबबंदी कानून को लेकर अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केसों की बढ़ती संख्या को लेकर नाराजगी भी जाहिर की गई थी. बता दें कि नीतीश कुमार शराबबंदी को सफल बनाने के लिए समाज सुधार यात्रा शुरू कर चुके हैं लेकिन संक्रमण बढ़ने के चलते फिलहाल यात्रा को स्थगित रखा गया है.

बीजेपी की ओर से शराबबंदी कानून को लेकर कई बार सवाल खड़े किए गए हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जहां समीक्षा की वकालत कर चुके हैं, वहीं शराबबंदी के गुजरात मॉडल को लागू करने की वकालत भी की जा रही है. बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि शराबबंदी लागू हुए लंबा अरसा बीत गए, समीक्षा तो होनी चाहिए. जब सभी दल के नेता बैठेंगे तो कुछ ना कुछ समाधान जरूर निकलेगा. वहीं, हम पार्टी तो बीजेपी से भी दो कदम आगे है. प्रदेश प्रवक्ता विजय यादव ने कहा कि शराबबंदी का खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ रहा है. सरकार को शराब बंदी कानून वापस लेना चाहिए.

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मुख्य विपक्षी दल आरजेडी भी शराबबंदी कानून के पक्ष में नहीं है. पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि अगर नीतीश सरकार ठीक तरीके से बिहार में शराबबंदी लागू नहीं कर सकती है तो कानून को वापस ले लेना चाहिए. हालांकि जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि कानून की समीक्षा की जरूरत नहीं है. सर्वसम्मत प्रस्ताव पर समीक्षा आखिर क्यों हो. महिलाएं समीक्षा कर रही हैं. बिहार में शराबबंदी कानून को मजबूती के साथ लागू किया जाएगा. जहरीली शराब मामले में जो कोई भी दोषी होंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि शराबबंदी कानून सभी दलों की सहमति से लाया गया था लेकिन अब सभी दलों की ओर से विरोध में आवाज उठाई जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी टिप्पणी की जा चुकी है. नीतीश कुमार को लोकतांत्रिक मूल्यों का ख्याल रखते हुए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए.

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