पटना: बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में 23 अगस्त को उस समय एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात होगी. वहां पर वे सभी मिलकर बिहार की जाति को गिनने की बात करेंगे. बिहार में जो मौजूदा राजनीतिक हालात हैं, उसमें सभी राजनीतिक दलों का मानना है कि जातीय गणना जरूरी है.
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बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मानें तो जाति जनगणना से बेहतर तो अब कुछ है ही नहीं. नीतीश कुमार समस्तीपुर से बाढ़ समीक्षा करने के बाद लौटे. उन्होंने कहा कि पीएम से मिलने जा रहे हैं. जाति जनगणना पर बात करेंगे और जाति जनगणना हो जाए, इससे बेहतर तो कुछ है ही नहीं.
जाति जनगणना (Caste Census) को लेकर बिहार जिस तरीके से गोलबंद हुआ है, उसके बाद कई सवाल बिहार के सियासी गलियारे में दौड़ने शुरू हो गए हैं. दो इंजन की सरकार से बिहार में विकास को रफ्तार मिली है, ऐसे में जो नहीं हो रहा है, उसको लेकर एक सवाल उठना लाजमी भी है. क्योंकि सियासतदान अपने फायदे के लिए ही मुद्दे को बनाते हैं. अगर फायदा उस मुद्दे से नहीं हो रहा हो तो उसे छोड़ भी जाते हैं.
नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच हुए मतभेद और उसके बाद समझौते के बाद जिस तरह की राजनीति और मुद्दों को बिहार में जगह दी, उससे बिहार का कायाकल्प हो सकता था. वैसे तमाम मुद्दे अब काल के गाल में समा गए हैं. नई राजनीति है तो नये मुद्दे जगह बना रहे हैं लेकिन पुराने मुद्दों का क्या हुआ.
इसे समझने भर की फुर्सत भी किसी के पास नहीं है. अगर 2015 से 2021 तक के मुद्दों की सियासी दौड़ को देख लिया जाए तो कई ऐसे पन्ने हैं, अगर उन्हें एक बार फिर से खोल दिया जाए तो बिहार के विकास की डगर शायद रफ्तार पकड़ ले. लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. हां, एक बैठक होगी, बिस्किट चाय चलेगा, बात रखी जाएगी. हां पर सहमति होगी लेकिन कब, यह कहना मुश्किल है क्योंकि मामला जाति का है.
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बिहार के विकास की बात करें तो दिल्ली तक जो मुद्दा बिहार से जाता है, उसको लेकर राजनीति भी होती है. बात भी होती है, चर्चा भी होती है लेकिन अगर कुछ नहीं होता तो उस पर काम. सियासत अपनी जरूरत के अनुसार उसे सजा लेती है और जब उसकी जरूरत नहीं होती है तो उसे छोड़ देती है. भले वह बिहार की ही जरूरत क्यों ना हो, नीतीश कुमार ने बड़े जोर-शोर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर अभियान चलाया, हस्ताक्षर हुए. पूरा बिहार एक सुर में साथ खड़ा हुआ, डीएनए की जांच कराने के लिए अपने बाल तक दे दिये लेकिन मामला कहां तक पहुंचा, यह तो नीतीश कुमार ही बताएं.
हालांकि आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल नहीं पाया है. विशेष राज्य के दर्जे से बात किनारे चली गयी तो बिहार को विशेष पैकेज देने की चर्चा शुरू हो गई. बिहार को विशेष पैकेज मिलेगा, इससे बिहार की आर्थिक रफ्तार तेज हो जाएगी. हालांकि यह उस दौर की बात है जब नरेंद्र मोदी से नीतीश कुमार नाराज थे. नरेंद्र मोदी जब पहुंचे तो उन्होंने कहा था कि कितना दें- 20 करोड़, 25 करोड़, 75 करोड़, 90 करोड़, 100 करोड़, 110 करोड़ और 125 करोड़.
यह मुद्दा भी काफी चर्चा में रहा था. लेकिन पैसा मिलने के बाद बिहार का विकास गया कहां, आज तक बिहार के लोगों को समझ नहीं आया. कोसी को देश की त्रासदी कही गई. कहा गया था कि खेतों पर जो सिल्ट जमा हो गया, उसे हटाया जायेगा, कोसी पुनर्वास पैकेज भी बिहार मिलेगा लेकिन मामला कहां है, आज तक पता नहीं चला. पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने को लेकर बात हुई थी. मुलाकात हुई, चाय पी गयी लेकिन सियासत में बिहार की शिक्षा व्यवस्था आगे नहीं बढ़ पाई.
बिहार की सबसे बड़ी परेशानी बाढ़ है. बाढ़ से निजात के लिए पटना से दिल्ली तक लगातार दौड़ हो रही है. बाढ़ को देखने के लिए हवाई जहाज से उड़ान हो रही है लेकिन जमीन पर जो होना है, उसकी तो कोई बानगी ही नहीं दिख रही है. यह अलग बात है कि बिहार के नदी जोड़ो योजना को लेकर के बड़ी-बड़ी चर्चाएं हो चुकी हैं. जल पुरुष राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में हवाई सर्वे भी हुआ.
फरक्का डैम को लेकर होटल मौर्या में सेमिनार हुआ और बातें भी हुईं. लेकिन जमीन पर अगर कुछ उतरा तो वह चुनाव के समय में बिहार से किया जाने वाला एक वादा. जो जाति के साथ विकास करेगा और विकास करने वाली जाति का ही विकास होगा. अब इसमें सिमटी सियासत बिहार को क्या दे पाएगी, यह तो कहना मुश्किल है लेकिन एक बात तो साफ है कि एक और मुलाकात 23 तारीख को 11 बजे 11 लोगों के साथ होनी है. अब इससे बिहार का विकास दो इंजनों के साथ चलता है या मौसमी वादे की तरह नौ दो ग्यारह हो जाता है, इसका इंतजार है. यह बिहार है... नीतीश कुमार है.
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