पटना: बिहार में इन दिनों लगातार बच्चों के गायब होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं एनसीआरबी के 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक हर 10 मिनट पर एक बच्चा गायब होता है. हर साल बच्चों के गायब होने के ग्राफ में बढ़ोतरी होती जा रही है. हालांकि पुलिस मुख्यालय के मुताबिक प्रशासन ऐसे मामलों में काफी सतर्कता बरतता है.
'ट्रैक द चाइल्ड' और 'खोया-पाया पोर्टल' की शुरूआत
पुलिस मुख्यालय की माने तो गायब हो रहे बच्चों में से दो तिहाई बच्चों की बरामदगी हो चुकी है. एक तिहाई बच्चों की बरामदगी नहीं हो पाई है, उसके लिए भी छानबीन जारी है. केंद्र सरकार ने गायब हो रहे बच्चों को ढूंढने के लिए 'ट्रैक द चाइल्ड' और 'खोया-पाया पोर्टल' की शुरूआत की है. इनके जरिए भी बच्चों को ढूंढा जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के आदेश के बाद सभी गायब बच्चों के लिए एफआईआर दर्ज करना भी अनिवार्य कर दिया है. बच्चों के गायब होने से संबंधित करीबन 8000 मामले न्यायालय में चल रहे हैं.
अगर बात करें आंकड़ों की तो 2016-2019 के आंकड़े कुछ इस तरह रहें:-
साल | कुल मामले | बरामदगी |
2016 | 5222 | 4911 |
2017 | 8145 | 12123 |
2018 | 9847 | 5916 |
2019 | 10777 | 4720 |
2020 का आंकड़ा अभी पुलिस मुख्यालय के पास मौजूद नहीं है. दरअसल हर साल के अंत में संबंधित आंकड़े सभी जिलों से मंगवाए जाते हैं.
24 घंटे के अंदर निशुल्क एफआईआर दर्ज
पुलिस मुख्यालय के एडीजी जितेंद्र कुमार की मानें तो बच्चों के गायब होने या ना मिलने पर पुलिस मुख्यालय इसे बहुत गंभीरता से लेती है. उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद मुख्यालय ने सभी जिले के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि नाबालिग बच्चों के गायब होने वाले मामलों में 24 घंटे के अंदर निशुल्क एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है. इसीलिए यही कारण है कि ज्यादा से ज्यादा मामले सामने आते हैं.
बच्चों की बरामदगी को लेकर टाक्स फोर्स गठित
बिहार के हर जिले में बच्चों की बरामदगी को लेकर टाक्स फोर्स का भी गठन किया गया है. साथ ही साथ पुलिस मुख्यालय वर्कशॉप के जरिए भी पुलिस कर्मियों को बच्चों की बरामदगी को लेकर ट्रेनिंग और टिप्स देता हैं. पुलिस की कोशिश होती है कि जल्द से जल्द गायब बच्चों को बरामद कर उनके गार्जियन तक पहुंचाया जा सके.
मंत्री की अपनी दलील
समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत बाल कल्याण विभाग के मंत्री रामसेवक सिंह की इस मामले में अपनी ही दलील है. मंत्री की माने तो बच्चों को बरामद करना यह उनके विभाग का मामला नहीं है. उनका डिपार्टमेंट सिर्फ मुख्यधारा से भटके बच्चों को परिवार और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ही काम करता है. बकौल मंत्री बाल कल्याण विभाग वैसे बच्चे जो परिवार से बिछड़ जाते हैं या मुख्यधारा से भटक जाते हैं उनको अडॉप्ट कर कर चाइल्ड शेल्टर होम में रखने का काम करता है. साथ ही उन बच्चों के गार्जियन को ढूंढने के लिए एडवर्टाइजमेंट भी निकालता है. शेल्टर होम में बच्चों के रहने, खाने-पीने पीने साथ ही शिक्षा की पूरी व्यवस्था की जाती है
वास्तविक तौर पर सरकारी दावे बेअसर
भले ही सरकार और प्रशासन चाइल्ड ट्रैफिकिंग को रोकने में कारगर कदम उठाने का दावा करता हो, लेकिन वास्तविक तौर पर इसका असर नहीं दिखता. देखना होगा कि ये दावे हकीकत में कब बदल पाते है.