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'घर वापसी' चाहते हैं JDU के बागी, कर रहे CM नीतीश के ग्रीन सिग्नल का इंतजार - bihar latest news

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जदयू के बागियों ( Rebels of JDU ) ने ही पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थी. चुनाव के बाद कुछ वापस आ गए, तो कुछ अन्य पार्टियों में शामिल हो गए. वहीं अब भी कुछ ऐसे नेता हैं जो लगातार प्रयास कर रहे हैं कि उनकी 'घर वापसी' हो जाए. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Jul 16, 2021, 6:38 PM IST

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ( Bihar Assembly Election 2020 ) में जदयू ( JDU ) ने एक साथ 15 बागियों पर कार्रवाई की थी. टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर भगवान सिंह कुशवाहा ददन पहलवान, सुमित सिंह, डॉ रणविजय सिंह, कंचन गुप्ता, प्रमोद चंद्रवंशी सहित कई नेताओं ने विद्रोह करके चुनाव मैदान में पार्टी के लिए ही मुश्किल खड़ी कर दी थी.

हालांकि उसमें से अधिकांश चुनाव हार गए. सुमित सिंह चकाई से जरूर चुनाव जीत गए और अब नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. उन्होंने जदयू को समर्थन भी कर दिया है. मंजीत सिंह भी विद्रोह करके चुनाव लड़े थे लेकिन पार्टी ने उन पर कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया था. मंजीत भी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. भगवान सिंह कुशवाहा भी लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है.

इसे भी पढ़ें- बिहार में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर NDA में तकरार! विपक्ष से ज्यादा नीतीश पर BJP हमलावर

दरअसल, विधानसभा चुनाव में जदयू ने जिन 15 बागियों पर कार्रवाई की, उसमें भगवान सिंह कुशवाहा लोजपा ( LJP ) से टिकट लेकर जदयू उम्मीदवार के खिलाफ परेशानी पैदा कर दी थी. वहीं पूर्व विधायक रणविजय सिंह रालोसपा ( RLSP ) के टिकट पर गौह से भाजपा ( BJP ) प्रत्याशी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. ददन यादव निर्दलीय डुमरांव से जदयू उम्मीदवार अंजुम आरा के खिलाफ मैदान में उतर गए और हराने में कामयाब रहे.

देखें वीडियो

कंचन गुप्ता और पूर्व विधायक सुमित सिंह क्रमश: मुंगेर और चकाई में निर्दलीय उतरकर एनडीए प्रत्याशियों के लिए चुनौती पेश की. सुमित सिंह चुनाव जीत भी गए. वहीं प्रमोद सिंह चंद्रवंशी ओबरा से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े और जदयू के सुनील कुमार के लिए परेशानी पैदा कर दी. इसी तरह जदयू के बागी अरुण कुमार बेलागंज से तजम्मुल खां रफीगंज से, राकेश रंजन बरबीघा से, मुंगेरी पासवान चेनारी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और एनडीए प्रत्याशी के लिए मुश्किल पैदा की.

नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित सिंह चुनाव जीतने के बाद नीतीश सरकार में मंत्री हैं और जदयू को अपना पूरा समर्थन दिया है तो वहीं मंजीत सिंह बैकुंठपुर से निर्दलीय चुनाव लड़ कर बीजेपी के मिथिलेश तिवारी को चुनाव जीतने नहीं दिया और अपने भी चुनाव नहीं जीते, लेकिन अब फिर से जदयू में शामिल हो चुके हैं.

ये भी पढ़ें- चिराग पासवान का बड़ा बयान, कहा- 'हमारे संपर्क में JDU के कई नेता, जल्द होगी NDA में बड़ी टूट'

जदयू ने कुछ और बागियों को पार्टी में शामिल कराया है लेकिन भगवान सिंह कुशवाहा लगातार जदयू में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं. जदयू के कई वरिष्ठ नेताओं से मिल भी चुके हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से भी कई बार मुलाकात हुई है. उनका साफ कहना है कि नीतीश कुमार के पास उपेंद्र कुशवाहा, भगवान सिंह कुशवाहा या अन्य सभी कुशवाहा और कुर्मी नेताओं का इलाज है, तो करना चाहिए.

इसी तरह ददन यादव सहित कई नेता नीतीश कुमार के ग्रीन सिग्नल का इंतजार कर रहे हैं. कुछ नेताओं को पार्टी की बेरुखी के बाद दूसरे दल में भी शामिल होना पड़ा है.

'पार्टियां क्षेत्र और सामाजिक समीकरण के हिसाब से नेताओं को शामिल कराती हैं. यही कारण है कि चुनाव के समय तो दल-बदल खूब होता है लेकिन उसके बाद भी जो मजबूत नेता होता है, उन्हें शामिल कराने की कोशिश की जाती है.' - रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 ( Bihar Assembly Election 2020 ) में जदयू ( JDU ) ने एक साथ 15 बागियों पर कार्रवाई की थी. टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर भगवान सिंह कुशवाहा ददन पहलवान, सुमित सिंह, डॉ रणविजय सिंह, कंचन गुप्ता, प्रमोद चंद्रवंशी सहित कई नेताओं ने विद्रोह करके चुनाव मैदान में पार्टी के लिए ही मुश्किल खड़ी कर दी थी.

हालांकि उसमें से अधिकांश चुनाव हार गए. सुमित सिंह चकाई से जरूर चुनाव जीत गए और अब नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. उन्होंने जदयू को समर्थन भी कर दिया है. मंजीत सिंह भी विद्रोह करके चुनाव लड़े थे लेकिन पार्टी ने उन पर कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया था. मंजीत भी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. भगवान सिंह कुशवाहा भी लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है.

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दरअसल, विधानसभा चुनाव में जदयू ने जिन 15 बागियों पर कार्रवाई की, उसमें भगवान सिंह कुशवाहा लोजपा ( LJP ) से टिकट लेकर जदयू उम्मीदवार के खिलाफ परेशानी पैदा कर दी थी. वहीं पूर्व विधायक रणविजय सिंह रालोसपा ( RLSP ) के टिकट पर गौह से भाजपा ( BJP ) प्रत्याशी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी. ददन यादव निर्दलीय डुमरांव से जदयू उम्मीदवार अंजुम आरा के खिलाफ मैदान में उतर गए और हराने में कामयाब रहे.

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कंचन गुप्ता और पूर्व विधायक सुमित सिंह क्रमश: मुंगेर और चकाई में निर्दलीय उतरकर एनडीए प्रत्याशियों के लिए चुनौती पेश की. सुमित सिंह चुनाव जीत भी गए. वहीं प्रमोद सिंह चंद्रवंशी ओबरा से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े और जदयू के सुनील कुमार के लिए परेशानी पैदा कर दी. इसी तरह जदयू के बागी अरुण कुमार बेलागंज से तजम्मुल खां रफीगंज से, राकेश रंजन बरबीघा से, मुंगेरी पासवान चेनारी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और एनडीए प्रत्याशी के लिए मुश्किल पैदा की.

नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित सिंह चुनाव जीतने के बाद नीतीश सरकार में मंत्री हैं और जदयू को अपना पूरा समर्थन दिया है तो वहीं मंजीत सिंह बैकुंठपुर से निर्दलीय चुनाव लड़ कर बीजेपी के मिथिलेश तिवारी को चुनाव जीतने नहीं दिया और अपने भी चुनाव नहीं जीते, लेकिन अब फिर से जदयू में शामिल हो चुके हैं.

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जदयू ने कुछ और बागियों को पार्टी में शामिल कराया है लेकिन भगवान सिंह कुशवाहा लगातार जदयू में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं. जदयू के कई वरिष्ठ नेताओं से मिल भी चुके हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से भी कई बार मुलाकात हुई है. उनका साफ कहना है कि नीतीश कुमार के पास उपेंद्र कुशवाहा, भगवान सिंह कुशवाहा या अन्य सभी कुशवाहा और कुर्मी नेताओं का इलाज है, तो करना चाहिए.

इसी तरह ददन यादव सहित कई नेता नीतीश कुमार के ग्रीन सिग्नल का इंतजार कर रहे हैं. कुछ नेताओं को पार्टी की बेरुखी के बाद दूसरे दल में भी शामिल होना पड़ा है.

'पार्टियां क्षेत्र और सामाजिक समीकरण के हिसाब से नेताओं को शामिल कराती हैं. यही कारण है कि चुनाव के समय तो दल-बदल खूब होता है लेकिन उसके बाद भी जो मजबूत नेता होता है, उन्हें शामिल कराने की कोशिश की जाती है.' - रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

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