पश्चिम चंपारण: पूरा देश महात्मा गांधी को आज उनके पुण्यतिथि पर याद कर रही है. बापू का बिहार के साथ खास जुड़ाव रहा है. वैसे तो राष्ट्रपिता के कदम जिन-जिन स्थानों पर पड़े वह धन्य हो गये. पर कुछ जगहें ऐसी है जिसका नाम लेने से ही कई यादें सामने आ जाती हैं. ऐसा ही एक नाम है पश्चिम चंपारण.
महात्मा गांधी ने न सिर्फ चंपारण की धरती से स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था, बल्कि रोजगारपूरक शिक्षा के लिए देश में पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना भी चंपारण में ही की थी. जिला मुख्यालय से करीब नौ से दस किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम के वृंदावन में आज भी तालिम के साथ बच्चों को हुनर भी सिखाया जाता है.
विद्यालय में लिखा है बापू का संदेश
बच्चे यहां प्रवेश करते ही अपने अंदर एक अलग प्रकार का अलख जगाते हैं. क्योंकि अंदर प्रवेश करते ही यहां गांधी जी का प्रभावित करने वाला संदेश लिखा दिखाई पड़ता है. इसमें अंकित है 'यदि युवक अच्छे तौर-तरीके नहीं सीखते हैं, तो उनकी सारी पढ़ाई बेकार है.' इसी के नीचे एक और संदेश लिखा है 'यदि आप न्याय चाहते हैं तो आप को भी दूसरों के प्रति न्याय बरतना होगा.'
कुटिया में बापू से जुड़े सामान आज भी है मौजूद
1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने आश्रम और स्कूल का निर्माण भी करवाया था. भितिहरवा के वृंदावन में आज भी खपरैल कुटिया है. स्कूल की घंटी से लेकर टेबल जिसे बापू ने अपने हाथों से बनाया था. कुंआ, कस्तूबरा गांधी की चक्की, कुटिया के अंदर मौजूद है जो 'बापू' की याद दिलाती है.
हाथी पर बैठकर भितिहरवा पहुंचे थे बापू
27 अप्रैल 1917 का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज है जब बापू राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांव में पहुंचे. भितिहरवा की दूरी नरकटियागंज से 16 किलोमीटर है वहीं, बेतिया से 54 किलोमीटर. बापू यहां देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुंचे. बताया जाता है कि बापू सबसे पहले पटना पहुंचे जहां वे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बंगले में रुके थे. वहां से चलकर बापू मोतिहारी में आकर रुके.
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मोतिहारी से होते महात्मा गांधी बेतिया आए. बेतिया के बाद उनका अगला प्रवास कुमार बाग में हुआ. बापू हाथी पर बैठकर कुमार बाग से श्रीरामपुर भितिहरवा पहुंचे थे. गांव के मठ के बाबा रामनारायण दास ने बापू को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करायी.16 नवंबर 1917 को बापू ने यहां एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी.
बापू को मारने की साजिश भी रही नाकाम
लेकिन, बापू का यहां रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल भी गवारा नहीं था. एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी. उनकी साजिश बापू को सोते हुए हत्या करवा देने की थी. पर संयोग से बापू उस दिन पास के गांव में गए थे इसलिए बच गये. बाद में सब लोगों ने मिलकर दुबारा पक्का कमरा बनाया, जिसकी छत खपरैल है. इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया.
भितिहरवा है बापू का महत्वपूर्ण पड़ाव
फिलहाल, देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा. लेकिन भितिहरवा बापू की जिंदगी से जुड़े भावनात्मक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.