नई दिल्ली/गाजियाबादः गाजियाबाद जिले के लोनी विधानसभा क्षेत्र के निस्तौली गांव की रहने वाली कुमारी अनामिका डागर ने बिहार लोक सेवा आयोग की 31वीं न्यायिक सेवा परीक्षा (Bihar Public Service Commission 31st Judicial Service Examination) में 16वां स्थान प्राप्त कर सिविल जज बनी है. इस मुकाम को हासिल करने का श्रेय अनामिका डागर अपने माता-पिता, बहन-भाई, जीजा और गुरुओं को देती हैं.
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अनामिका बताती हैं कि हर मोड़ पर हौसला टूटा, कठिनाइयां आई लेकिन जो लोग दिल के करीब थे, उन्होंने हर मोड़ पर संभाला और हौसला अफजाई की. जब जब खुद पर भरोसा कम हुआ तब तक परिवार वालों ने आगे बढ़ने के लिए ऊर्जा दी. परिवार वालों के सहयोग से मुश्किल रास्ते भी आसानी से तय हो गए और मंजिल मिल गई.
जज बनना बचपन से था ख्वाब: अनामिका डागर बताती हैं कि शुरू से ही उनका सपना जज बनना था. 2014 में एलएलबी में दाखिला लिया और 2017 में एलएलबी पूरी की. एलएलबी करने के बाद जज बनने का सपना साकार करने के लिए कदम आगे बढ़ाने शुरू किए. कोचिंग के बारे में पता किया तो कोचिंग की साल भर की फीस तकरीबन दो लाख थी. इसके अतिरिक्त एक लाख का अलग से खर्चा आ रहा था. यानी तीन लाख रुपए का साल भर का खर्च. एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से होने के चलते तीन लाख का खर्च उठाना आसान नहीं था. परिवार के कुछ आर्थिक हालात भी ठीक नहीं थे.
कोचिंग के नहीं थे पैसे: अनामिका बताती हैं कई दोस्त जो आर्थिक रूप से सक्षम थे, उन्होंने कोचिंग ज्वाइन कर ली थी. ऐसे में समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए. परिवार वाले जो कोचिंग कराने के बारे में सोचते थे तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे. मां हमेशा रोते हुए कहती थी कि हमारे पास कोचिंग कराने के पैसे नहीं है. ऐसे में मैं हमेशा मां को समझाती थी कि हमारे पास भले ही कोचिंग के पैसे ना हो लेकिन मैं बिना कोचिंग के ही जज बनकर दिखाऊंगी. तुम्हारी बेटी बिना कोचिंग के जज बनेगी.
आर्थिक हालात हो गए खराब: डागर बताती हैं कि कोरोना के दौरान परिवार के हालात खराब हो गए. परिवार में कई लोगों को कोविड-19 हुआ. साथ ही घर में भाई की हालत ज्यादा खराब रही. कई दिन भाई आईसीयू में एडमिट रहा. इसके चलते परिवार की जमा पूंजी खत्म हो गई थी. हमने हिम्मत नहीं हारी. भगवान कृष्ण कहते हैं कि कर्म करो फल की चिंता मत करो. भगवान कृष्ण से प्रार्थना कर हमेशा आगे बढ़ती गई. घर में 8 से 10 घंटे हर दिन अधिकतर समय सेल्फ स्टडी की.
गांव में खोलेंगी लाइब्रेरी: अनामिका बताती हैं कि यहां तक पहुंचने के सफर के दौरान खुद पर भरोसा करना बहुत जरूरी था. हर दिन 8 से 10 घंटे पढ़ाई करने के बाद खुद पर भरोसा बढ़ता जा रहा था, उम्मीद होने लगी थी की कामयाबी जरूर मिलेगी और आज लगन और मेहनत के दम पर उम्मीद सच्चाई में बदल गई है. अनामिका को अपने घर और गांव से बेहद लगाव है. वह अपने गांव में एक लाइब्रेरी खोलना चाहती हैं, जिससे कि गांव में हर एक बच्चा शिक्षित हो सके. इतना ही नहीं अनामिका एक अनाथ बच्चे को गोद लेकर उस को शिक्षित कर बड़ा इंसान बनाना चाहती हैं.
खुद पर किया भरोसा: मुकाम को हासिल करने के बाद अनामिका के घर पर लोगों का तांता लगा है. लगातार जहां एक तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लोग उनके घर पहुंचकर बधाई दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ युवा भी अनामिका से मुलाकात कर कामयाबी का मंत्र ले रहे हैं. अनामिका ने सिद्ध कर दिया है कि हालात कैसे भी हो उनसे लड़ा जा सकता है. खुद पर अगर भरोसा हो तो मंजिल तक पहुंचने में हालात आड़े नहीं आते हैं.