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... तो क्या चुनाव से पहले गुप्तेश्वर पांडे को DGP पद से हटाना चाहते थे नीतीश कुमार? - BIHAR MAHASAMAR 2020

खबरों के मुताबिक ये चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे थे. कई बार मुख्यमंत्री की तरफ से डीजीपी को दायरे में रहने की नसीहत भी दी गई थी. लेकिन डीजीपी की सोशल मीडिया पर सक्रियता के चलते सरकार की फजीहत हो रही थी. बीजेपी सूत्र बताते हैं कि बक्सर सीट के लिए जेडीयू ने बीजेपी पर दबाव भी नहीं बनाया.

BIHAR MAHASAMAR 2020
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Published : Oct 8, 2020, 5:16 PM IST

Updated : Oct 8, 2020, 7:03 PM IST

पटना: पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे दूसरी बार सियासी चाल में फंस गए. उनकी स्थिति 'माया मिली ना राम' वाली हो गई है. एक बार फिर गुप्तेश्वर पांडे को वीआरएस लेना महंगा पड़ा. पांडे विधायक भी नहीं बन पाए और नौकरी भी हाथ से चली गई.

दूसरी बार गुप्तेश्वर पांडे को मिला धोखा
ये कोई पहली बार नहीं है. पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पहले से थी. साल 2009 में भी उन्होंने राजनीति में किस्मत आजमाने का फैसला किया और नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. उस समय वे लाल मुनी चौबे की जगह बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन टिकट नहीं मिल पाया, इसके बाद काफी मुश्किलों से नौकरी में वापसी की. लेकिन, एक बार फिर गुप्तेश्वर पांडे ने सियासत की ओर कदम बढ़ाया और बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीआरएस ले लिया.

इसे भी पढ़ें-रामा सिंह की पत्नी को RJD के टिकट पर JDU का सवाल- दिवंगत रघुवंश बाबू का ये कैसा सम्मान ?

बक्सर से विधानसभा चुनाव लड़ने की चाहत
गुप्तेश्वर पांडे बक्सर से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. तैयारी का आलम ये था कि बक्सर में गुप्तेश्वर पांडे के समर्थक इलाके में कैंप कर रहे थे. . आईटी की एक टीम को भी काम पर लगा दिया गया था. कहा जा रहा है कि अंतिम वक्त तक गुप्तेश्वर पांडे बीजेपी से संपर्क में थे. लेकिन बीजेपी नेता और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री ने गुप्तेश्वर पांडे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और बगावती तेवर अख्तियार कर लिए थे.

टकराव की स्थिति से भी बचना चाहती थी बीजेपी
सूत्र ये भी बताते है कि बीजेपी में नंबर दो के नेता और केंद्रीय मंत्री ने भी गुप्तेश्वर पांडे की एंट्री को लेकर अपनी सहमति नहीं दी थी. केंद्रीय मंत्री की असहमति के बाद बिहार कोर कमेटी में शामिल कुछ मंत्री भी गुप्तेश्वर पांडे के विरोध में उतर आए. चर्चा ये भी है कि पिछले कुछ दिनों से सुशांत सिंह प्रकरण के बाद बीजेपी और शिवसेना में नजदीकियां बढ़ रही हैं. शिवसेना नेता संजय राउत बीजेपी नेताओं के संपर्क में थे. शिवसेना ने साफ कर दिया था कि गुप्तेश्वर पांडे जहां से भी लड़ेंगे शिवसेना वहां अपने उम्मीदवार खड़े करेगी. ऐसे में बीजेपी टकराव की स्थिति से भी बचना चाहती थी.

इसे भी पढ़ें- बिहार महासमर 2020: रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह को महनार से RJD का टिकट

डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की कार्यप्रणाली से नाराज थे सीएम!
खबरों के मुताबिक ये भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे थे. कई बार मुख्यमंत्री की तरफ से डीजीपी को दायरे में रहने की नसीहत भी दी गई थी. लेकिन डीजीपी की सोशल मीडिया पर सक्रियता के चलते सरकार की फजीहत हो रही थी. गुप्तेश्वर पांडे ने सरकार में बैठे कुछ लोगों के इशारे पर आनन-फानन में वीआरएस ले लिया.

बक्सर सीट के लिए दबाव भी नहीं बनाया गया
इसके बाद गुप्तेश्वर पांडे ने जेडीयू ज्वाइन कर लिया. लेकिन, पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. बीजेपी सूत्र बताते हैं कि बक्सर सीट के लिए जेडीयू ने बीजेपी पर दबाव भी नहीं बनाया. इधर, पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के बैचमेट सुनील कुमार को रिटायरमेंट के बाद जेडीयू में शामिल कराया गया. उन्हें बाल्मीकि नगर से विधानसभा का टिकट दिया गया.

पटना: पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे दूसरी बार सियासी चाल में फंस गए. उनकी स्थिति 'माया मिली ना राम' वाली हो गई है. एक बार फिर गुप्तेश्वर पांडे को वीआरएस लेना महंगा पड़ा. पांडे विधायक भी नहीं बन पाए और नौकरी भी हाथ से चली गई.

दूसरी बार गुप्तेश्वर पांडे को मिला धोखा
ये कोई पहली बार नहीं है. पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पहले से थी. साल 2009 में भी उन्होंने राजनीति में किस्मत आजमाने का फैसला किया और नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था. उस समय वे लाल मुनी चौबे की जगह बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन टिकट नहीं मिल पाया, इसके बाद काफी मुश्किलों से नौकरी में वापसी की. लेकिन, एक बार फिर गुप्तेश्वर पांडे ने सियासत की ओर कदम बढ़ाया और बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीआरएस ले लिया.

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बक्सर से विधानसभा चुनाव लड़ने की चाहत
गुप्तेश्वर पांडे बक्सर से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. तैयारी का आलम ये था कि बक्सर में गुप्तेश्वर पांडे के समर्थक इलाके में कैंप कर रहे थे. . आईटी की एक टीम को भी काम पर लगा दिया गया था. कहा जा रहा है कि अंतिम वक्त तक गुप्तेश्वर पांडे बीजेपी से संपर्क में थे. लेकिन बीजेपी नेता और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री ने गुप्तेश्वर पांडे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और बगावती तेवर अख्तियार कर लिए थे.

टकराव की स्थिति से भी बचना चाहती थी बीजेपी
सूत्र ये भी बताते है कि बीजेपी में नंबर दो के नेता और केंद्रीय मंत्री ने भी गुप्तेश्वर पांडे की एंट्री को लेकर अपनी सहमति नहीं दी थी. केंद्रीय मंत्री की असहमति के बाद बिहार कोर कमेटी में शामिल कुछ मंत्री भी गुप्तेश्वर पांडे के विरोध में उतर आए. चर्चा ये भी है कि पिछले कुछ दिनों से सुशांत सिंह प्रकरण के बाद बीजेपी और शिवसेना में नजदीकियां बढ़ रही हैं. शिवसेना नेता संजय राउत बीजेपी नेताओं के संपर्क में थे. शिवसेना ने साफ कर दिया था कि गुप्तेश्वर पांडे जहां से भी लड़ेंगे शिवसेना वहां अपने उम्मीदवार खड़े करेगी. ऐसे में बीजेपी टकराव की स्थिति से भी बचना चाहती थी.

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डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की कार्यप्रणाली से नाराज थे सीएम!
खबरों के मुताबिक ये भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे थे. कई बार मुख्यमंत्री की तरफ से डीजीपी को दायरे में रहने की नसीहत भी दी गई थी. लेकिन डीजीपी की सोशल मीडिया पर सक्रियता के चलते सरकार की फजीहत हो रही थी. गुप्तेश्वर पांडे ने सरकार में बैठे कुछ लोगों के इशारे पर आनन-फानन में वीआरएस ले लिया.

बक्सर सीट के लिए दबाव भी नहीं बनाया गया
इसके बाद गुप्तेश्वर पांडे ने जेडीयू ज्वाइन कर लिया. लेकिन, पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. बीजेपी सूत्र बताते हैं कि बक्सर सीट के लिए जेडीयू ने बीजेपी पर दबाव भी नहीं बनाया. इधर, पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के बैचमेट सुनील कुमार को रिटायरमेंट के बाद जेडीयू में शामिल कराया गया. उन्हें बाल्मीकि नगर से विधानसभा का टिकट दिया गया.

Last Updated : Oct 8, 2020, 7:03 PM IST
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