पटना: बिहार की राजधानी पटना में डेंगू की स्थिति विस्फोटक (Dengue outbreak in Bihar) हो गई है. पटना के लगभग हर घर में डेंगू के मरीज मिल रहे हैं. बीते 24 घंटे में डेंगू के 168 नए मामले आने के साथ-साथ पटना में अब डेंगू मरीजों की संख्या 2696 हो गई है. पूरे प्रदेश में डेंगू पैर पसारने लगा है. सूबे में डेंगू के आंकड़ों पर नजर डालें तो संख्या 4200 के पार चली गई हैं. डेंगू के मामले बढ़ने के साथ-साथ हॉस्पिटलाइज्ड मरीजों की संख्या भी बढ़ गई है और इसके साथ ही प्लेटलेट्स की मांग (Demand for platelets increased in patna) भी बढ़ गई है. प्राइवेट अस्पतालों में डेंगू मरीजों की भीड़ अधिक बढ़ रही है. अकेले रुबन अस्पताल में लगभग डेढ़ सौ के करीब डेंगू के मरीज एडमिट हैं.
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कंप्लीट ब्लड से प्लेटलेट्स अलग करना मुश्किल प्रक्रियाः अभी पटना में 500 से अधिक डेंगू मरीज सरकारी और निजी अस्पतालों में एडमिट हैं. ऐसे में डेंगू के गंभीर रोगियों में प्लेटलेट्स चढ़ाने के लिए प्लेटलेट्स की डिमांड ब्लड बैंकों में काफी बढ़ गई है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर प्लेटलेट्स क्या होता है और इसे प्रिजर्व रखने का तरीका क्या है. ब्लड प्लेटलेट्स कैसे अलग होता है और ब्लड निकालने के कितने घंटे बाद तक ही उसमें से प्लेटलेट निकालकर अलग किया जा सकता है. पटना में रेड क्रॉस ब्लड बैंक के चेयरमैन डॉ विनय बहादुर सिंह ने बताया कि एक यूनिट ब्लड को तीन यूनिट में कन्वर्ट किया जाता है और इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के मरीजों को फायदा पहुंचाया जाता है. उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति अगर एक यूनिट ब्लड देता है तो उनके पास चार प्रकार के बैंक है. इसमें एक बैंक में पूरा ब्लड स्टोर किया जाता है. इसके अलावा एक बैंक में प्रिजर्व आरबीसी स्टोर किया जाता है. एक बैंक में प्लाज्मा स्टोर किया जाता है और एक बैंक में प्लेटलेट्स स्टोर किया जाता है.
जिलों में कॉम्पोनेंट सेपरेटर मशीन की कमी से पटना पर दबाव अधिकः विनय बहादुर ने बताया कि बिहार के जितने भी सरकारी ब्लड बैंक हैं, उनके निर्देशन में चलते हैं. सरकार फंड करती है और संचालन रेड क्रॉस के द्वारा होता है. प्रदेश के कुल 17 सरकारी ब्लड बैंक रेड क्रॉस के द्वारा संचालित किए जाते हैं. इसके अलावा छह और ब्लड बैंक रेड क्रॉस द्वारा संचालित किए जाते हैं. उनके ब्लड बैंक में कॉम्पोनेंट सेपरेटर मशीन उपलब्ध है और सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में भी कंपोनेंट सेपरेटर मशीन उपलब्ध है. इससे एक यूनिट ब्लड में से प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और आरबीसी को अलग-अलग एक्सट्रैक्ट कर लिया जाता है. उन्होंने बताया कि यह कंपोनेंट सेपरेटर पटना छोड़कर मुश्किल से किसी 1-2 जिले में उपलब्ध है. इसका दुष्परिणाम यह है कि प्रदेश में कहीं भी डेंगू मरीज की तबीयत बिगड़ती है तो उसे पटना रेफर किया जाता है, क्योंकि पटना में ही प्लेटलेट्स उपलब्ध हो पाएगा. इस वजह से पटना में प्लेटलेट्स की डिमांड और अधिक बढ़ गई है. वह चाहते हैं कि सरकार प्रत्येक जिले में एक ब्लड बैंक स्थापित करें और वहां कॉम्पोनेंट्स सेपरेटर मशीन की व्यवस्था करें.
अलग से स्टोर किया जाता है प्लेटलेट्सः डाॅ विनय बहादुर ने बताया कि एक्सीडेंट के समय और प्रेग्नेंसी के समय अत्यधिक रक्त स्राव के बाद के केसेज में कंप्लीट ब्लड की आवश्यकता होती है. इनके लिए कंप्लीट ब्लड को स्टोर करके रखा जाता है और दिया जाता है. इसमें से प्लाज्मा आरबीसी और प्लेटलेट्स का एक्सट्रैक्शन नहीं होता. लेकिन डेंगू और कैंसर की बीमारी में मरीज के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो जाती है. ऐसे में यदि पूरा ब्लड चढ़ाएंगे तो काफी मात्रा में ब्लड बर्बाद होगा. ऐसे में इनके लिए प्लेटलेट्स स्टोर किया जाता है. कैंसर की बीमारी में भी एंटीकैंसर ड्रग की वजह से शरीर का प्लेटलेट्स कम होता है और प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है. उन्होंने बताया कि कंप्लीट ब्लड और प्लेटलेट्स के अलावा प्लाजमा की भी जरूरत पड़ती है. जैसै हाइपरप्रोटिनीमिया और लिवर सिरोसिस के समय प्लाज्मा की आवश्यकता पड़ती है. इसके लिए प्लाज्मा का स्टोर किया जाता है.
पांच दिनों तक सुरक्षित रह सकता है प्लेटलेट्सः डॉ विनय बहादुर सिंह ने बताया कि प्लेटलेट्स मात्र पांच दिनों तक ही प्रिजर्व रह सकता है और इसे एक ऐसी मशीन में रखा जाता है जो हमेशा मूवमेंट में रहता है. अगर कुछ समय के लिए भी इसके प्लेटलेट्स का मूवमेंट बंद हो जाए तो प्लेटलेट्स जमने लगेगा और पूरी यूनिट प्लेटलेट्स खराब हो जाएगी. प्लेटलेट्स हमेशा ताजा ब्लड से ही निकल सकता है. यानी कि शरीर से खून निकलने के 6 घंटे के अंदर ही प्लेटलेट्स निकलता है. यही वजह है कि इन दिनों प्लेटलेट्स की कमी देखी जा रही है क्योंकि इसका स्टोरेज अधिक दिनों तक नहीं रहता. वहीं कंप्लीट ब्लड और प्रिजर्व आरबीसी दो से 6 डिग्री सेल्सियस के बीच 35 दिनों तक सुरक्षित स्टोर रह सकते हैं. प्लाज्मा की बात है तो यह एक साल तक माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर प्रिजर्व रह सकता हैं और माइनस 80 डिग्री सेल्सियस पर यह 3 साल तक प्रिजर्व रह सकता है.
प्लेट्लेट्स के लिए होती है डोनर की जरूरतः डॉ. विनय बहादुर सिंह ने बताया कि कुल 4 ग्रुप के ब्लड ग्रुप होते हैं. सभी में प्लस और माइनस होते हैं. ऐसे में कुल आठ ब्लड ग्रुप होते हैं और सभी ब्लड ग्रुप में जो माइनस ब्लड ग्रुप होता हैं वह रेयर होता है. किसी ब्लड डोनेशन कैंप में 100 लोगों का अगर ब्लड लिया जाता है तो उसमें मात्र 2 से 3 लोग ही निगेटिव ग्रुप के मिलते हैं. उन्होंने ने बताया कि किसी को ब्लड लेना है या फिर प्लेटलेट्स की आवश्यकता है तो उनके लिए जरूरी है कि जितने यूनिट की आवश्यकता है उतने डोनर लेकर के यहां पर पहुंचे.500 रुपया प्रोसेसिंग फीस लिया जाता है. इसके अलावा एक कंसेंट फॉर्म लेकर आना जरूरी होता है, जिसमें अस्पताल की तरफ से ब्लड की डिमांड की गई रहती है. इसके साथ ही मरीज के ब्लड का एक छोटा सैंपल भी जरूरी है.
गंभीर स्थिति में बिना डोनर के भी मिल जाता है प्लेटलेट्सः कई बार गंभीर स्थिति में यदि कोई व्यक्ति आ रहा है तो उसे बिना डोनर के भी एक से दो यूनिट प्लेटलेट्स उपलब्ध कराया जा रहा है. क्योंकि जो प्लेटलेट्स पुराना हो रहा है वह 5 दिनों बाद किसी काम का नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि अभी के समय जिस प्रकार से डेंगू के मामले बढ़े हुए हैं और मरीजों में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता बढ़ी है ऐसे में इस समय जरूरी हो गया है कि स्वस्थ लोग अधिक से अधिक रक्त दान करें. रक्तदान से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है.
"एक यूनिट ब्लड को तीन यूनिट में कन्वर्ट किया जाता है. कोई व्यक्ति अगर एक यूनिट ब्लड देता है तो उनके पास चार प्रकार के बैंक हैं. एक बैंक में पूरा ब्लड स्टोर किया जाता है. इसके अलावा एक बैंक में प्रिजर्व आरबीसी स्टोर किया जाता है. एक बैंक में प्लाज्मा स्टोर किया जाता है और एक बैंक में प्लेटलेट्स स्टोर किया जाता है. इस तरह खून से प्लेटलेट्स निकालना की प्रक्रिया लंबी होती है. वहीं ब्लड में से प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और आरबीसी को अलग-अलग एक्सट्रैक्ट करने की सेपरेटर मशीन एक दो जिले के छोड़कर कहीं नहीं है. इसलिए प्लेटलेट्स के लिए पटना में दबाव ज्यादा रहता है और यहां पूरे प्रदेश से मरीज को भेज दिया जाता है" - डॉ. विनय बहादुर सिंह, रेड क्रॉस ब्लड बैंक के चेयरमैन