पटना: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) का असर सभी क्षेत्र में व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है. बिहार में बच्चों की शिक्षा कोरोना की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हुई. सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के शैक्षणिक कौशल में काफी गिरावट आई है.
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एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) के संकेत उत्साहजनक नहीं है. चिंता की बात यह है कि बिहार के लगभग 90 फीसदी स्कूल सरकार द्वारा चलाए जाते हैं. सरकारी स्कूलों की घटती उत्पादकता के कारण हर साल कक्षा 5 तक पहुंचने तक अपने कक्षा के पुस्तकों को पढ़ना सीखने वाले छात्रों की संख्या कम हो रही है.
ASER के साल 2018 की रिपोर्ट को माने तो बीते 10 वर्षों में बिहार में प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर काफी गिरावट आई है. कोरोना के कारण इस बार का एनुअल रिपोर्ट नहीं आ पाया है लेकिन आकलन किया जा रहा है कि यह स्थिति और बिगड़ गई है. क्योंकि लॉकडाउन की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा पाए. इंटरनेट की अच्छी स्पीड ना होने और स्मार्टफोन की कमी की वजह से काफी संख्या में बच्चे पढ़ाई से काफी दूर चले गए हैं. ASER केंद्र को 2008 में प्रथम नेटवर्क के भीतर एक स्वायत्त इकाई के रूप में स्थापित किया गया था. इसके बाद से यह हर 2 साल पर एजुकेशन रिपोर्ट जारी करती है.
प्रथम संस्था की स्वायत्त इकाई है. ASER और प्रथम संस्था की शिक्षाविद रुकमणी बनर्जी को इस साल शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर मिलने वाला सर्वोच्च सम्मान यिदान प्राइज से सम्मानित किया गया है. रुकमणी बनर्जी को बिहार सरकार की ओर से शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाने वाला मौलाना अबुल कलाम पुरस्कार भी मिल चुका है. वह यह पुरस्कार पाने वाली पहली विजेता हैं. रुकमणी बनर्जी ने कहा, 'कोरोना के चलते कई बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. विशेषकर उन राज्यों में जहां बच्चों के पास इंटरनेट का सीमित एक्सेस है, इंटरनेट स्पीड स्लो है या स्मार्टफोन की कमी है. ऐसे में जब स्थिति फिर से ठीक हो रही है तो बच्चों को बिहार सरकार द्वारा कैचअप कोर्स कराया जा रहा है. इस काम में टोला सेवकों और जीविका दीदियों का सहयोग लिया जा रहा है.'
ASER की रिपोर्ट साल 2008 से आ रही है और प्रत्येक 2 साल पर आती है. आखरी सर्वे साल 2018 में आई. इसमें सबसे चौंकाने वाला नतीजा यह दिखा कि बिहार के सरकारी स्कूलों के बच्चों के शैक्षणिक कौशल में बीते 10 साल में लगातार काफी गिरावट आ रही है.
2018 के सर्वे में यह देखने को मिला कि दूसरी कक्षा के हिंदी का किताब पढ़ पाने में पांचवी कक्षा के 35.1% छात्र ही सक्षम हुए, जबकि राष्ट्रीय औसत 44.2% रही. दूसरी कक्षा की किताब को पढ़ पाने में साल 2008 में पांचवी कक्षा के 62.8% छात्र सक्षम मिले थे. उस समय राष्ट्रीय औसत 53.1 फीसदी था. यानी कि पांचवी कक्षा के ऐसे छात्रों की संख्या जो दूसरी कक्षा की किताब भी सही से ना पढ़ सके बिहार के सरकारी स्कूलों में लगातार बढ़ती चली गई.
वहीं, दूसरी कक्षा के पुस्तक को सही से पढ़ पाने में आठवीं कक्षा के बिहार के सरकारी स्कूलों के छात्र मात्र 69 फीसदी ही सक्षम मिले. राष्ट्रीय औसत भी 69 फीसदी का ही रहा. साल 2008 में बिहार के आठवीं कक्षा के 91.2% छात्र दूसरी कक्षा के पुस्तक पढ़ने में सफल मिले थे और उस समय यह राष्ट्रीय औसत 83.6 था.
2 अंक के घटाव को हल करने की उम्मीद दूसरी कक्षा के छात्रों से की जाती है, लेकिन साल 2018 के रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सरकारी स्कूलों में पांचवी कक्षा में पढ़ने वाले 41.1% छात्र ही 2 अंक के घटाव को हल कर पाने में सक्षम मिले, जबकि राष्ट्रीय औसत 46% का रहा. 2008 में 80.5% बिहार के पांचवी कक्षा के छात्र 2 अंक के घटाव को हल कर पाने में सफल मिले थे और उस समय राष्ट्रीय औसत 67.2% था. बीते 10 वर्षों में बिहार के सरकारी स्कूलों के पांचवी कक्षा के छात्रों में गणित के प्रश्न हल करने की क्षमता लगातार घटी है. यह घटकर 2008 की तुलना में आधी रह गई है.
चौथी कक्षा के छात्रों से उम्मीद की जाती है कि वे एक अंक से 3 अंकों में भाग करने का कौशल जानते हैं. इस प्रकार के प्रश्न का हल कर लेंगे. 2018 के सर्वे के मुताबिक चौथी कक्षा में पढ़ाये जाने वाले डिवीजन को सॉल्व कर पाने में बिहार के आठवीं कक्षा के मात्र 55.1 फीसदी छात्र ही सक्षम मिले और राष्ट्रीय औसत 40% रहा. यही दक्षता साल 2008 के सर्वे में काफी अच्छी मिली थी. बिहार के 85.9 फीसदी आठवीं कक्षा के छात्र चौथी कक्षा का गणित का प्रश्न हल करने में सक्षम मिले थे, जबकि राष्ट्रीय औसत 65.2% था.
ASER की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम पढ़ने में आठवीं कक्षा के 69.5 फीसदी छात्र सक्षम हैं. वहीं, सातवीं कक्षा के 64.4 फीसदी छात्र सक्षम हैं और छठी कक्षा के 48.4 फीसदी छात्र ही सक्षम हैं. 2008 की बात करें तो दूसरी कक्षा के पुस्तक पढ़ने में आठवीं कक्षा के 87.3 फीसदी छात्र सक्षम थे. सातवीं कक्षा के 80.5 फीसदी और छठी कक्षा के 72.9 फीसदी छात्र सक्षम थे.
गणित के सामान्य जोड़ घटाव और गुणा भाग के सवालों को हल करने के मामले में 2018 के रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सरकारी स्कूलों के आठवीं कक्षा के 55.1 फीसदी छात्र ही सक्षम मिले. सातवीं कक्षा के 48.5% छात्र और छठी कक्षा के 36.3 फीसदी छात्र सक्षम मिले. 2008 के रिपोर्ट के मुताबिक गणित के सवालों को हल करने में पांचवी कक्षा के 85.9 फीसदी, सातवीं कक्षा के 76.3 फीसदी और छठी कक्षा के 68.6% छात्र सक्षम मिले थे.
इन सभी आंकड़ों को मिलाकर देखा जाए तो बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों का शैक्षणिक कौशल लगातार गिर रहा है. यह स्थिति काफी चिंताजनक है. ऊपर से कोरोना के कारण स्थिति ऐसी आ गई है कि बच्चे संसाधन की कमी होने की वजह से पढ़ाई से दूर रहे हैं. वे काफी पढ़ाई भूल चुके हैं. ऐसे में अगर प्रदेश के बच्चों के भविष्य को सरकार सुधारना और संवारना चाहती है तो उसे तुरंत कई बड़े स्टेप लेने होंगे. उसके लिए योजनाबद्ध तरीके से उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा ताकि बिहार जिसे ज्ञान की भूमि कहा जाता है वह अपनी इस पहचान को बचा सके.
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