दरभंगा/मुजफ्फरपुर : लीची का मौसम आते ही लोगों के जिह्वा पर याद आता है मुजफ्फरपुर की लीची, उसमें भी अगर शाही लीची मिल जाए तो क्या कहना. सिर्फ बिहार या उत्तर भारत के लोग ही इस बार शाही लीची का स्वाद (Muzaffarpur Shahi Litchi) नहीं ले रहे हैं, बल्कि पश्चिम और दक्षिण भारत के लोग भी इसकी मिठास को अपने मुंह में महसूस कर रहे हैं. चाहे बेंगलुरु हो या चेन्नई, हैदराबाद हो या मुंबई.. हर जगह शाही लीची उपलब्ध है, बस आपको पैसे खर्च करने होंगे.
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मुजफ्फरपुर की मिट्टी लीची को बनाता है 'शाही' : विश्व में प्रसिद्ध बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का शाही लीची का देश में ही नहीं विदेशों में भी काफी डिमांड है. मिठास के साथ-साथ अन्य लीची की अपेक्षा यह काफी ज्यादा गुद्देदार भी होता है. स्वादिष्ट होने की वजह से ही इसने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. वैसे तो हर वर्ष लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी मुजफ्फरपुर से अन्य राज्यों में इस लीची के पौधे को लीची किसान अपने बागवानी में लगाने को लेकर जाते हैं. लेकिन मुजफ्फरपुर की मिट्टी भी शायद इस लिची के अनुकूल है, इस वजह से भी यहां जैसी स्वाद का आनंद बाहर नहीं मिल पाता है.
बेहतर क्वालिटी का मापदंड : एक किसान ने बताया कि जब बेहतर क्वालिटी की बात होगी तो एक किलो में 35 से 40 पीस आएंगे. एक लीची का वजन 25 से 30 ग्राम सर्वोत्तम रहता है. बिहार में यह लीची 120 से 160 रुपये किलो मिल रही है. हैदराबाद में जहां 300 से 350 रुपये किलो लीची मिल रही है. वहीं बेंगलुरु में कीमत 400 से 450 रुपये है. कमोबेश यही कीमत चेन्नई और मुंबई में भी है. चूंकि लीची की पहली खेप अभी आयी है इसलिए कीमत में उछाल है. ज्योंहि ज्यादा मात्रा में लीची आएगी कीमत में कमी आएगी. बहरहाल आइये आपको बताते हैं कैसे लीची का उत्पादन होता है और दूसरे राज्य तक पहुंचती है.
पेड़ से तोड़ने के बाद छटाई कर होती है पैकिंग : लीची किसान अपना लीची एक्सपोर्ट करने के लिए अपने बागवानी से अच्छे से एक्सपर्ट लेबर लगाकर तोड़वाते है. ताकि किसी भी स्थिति में लीची गिरे नहीं और उसमें जोड़ से किसी चीज से नहीं लगे ताकि दाग होने से बच जाए. दाग होने से लीची अपने आप सड़ने लग जाता है. इससे काफी ज्यादा नुकसान हो सकता है. इसलिए परिपक्व मजदूर से ही लीची को तोड़वाते हैं. फिर उसमें से छटाई कराते हैं ताकि जिस भी फल में दाग हो उसे हटा लिया जाए, ताकि अन्य फल प्रभावित न हो और आराम से फ्रेस फल बिक जाए.
सावधानी होती है काफी जरूरी : एक खास किस्म के गत्ते का बैग जिसमें लीची को हवा लगे वैसा बनाया जाता है. उसमें पैक कर सावधानी पूर्वक माल वाहक वाहनों के सहारे रेलवे स्टेशन या फ्लाइट से बाहर निर्यात करते हैं. 5 किलो और 10 किलो का पैकेट होता है. ताजा बिक्री की दर की बात करें तो 80 रुपये से लेकर 150 रुपये प्रति सैकड़ा इस बार बेची गयी है. बाहर प्रदेश में पांच किलो और दस किलो के पैकेट बनाकर निर्यात किया गया है. शाही लिची की बागवानी करने वाले किसान इस बार अच्छी रेट की वजह से राहत की सांस ली है. लीची की तुड़ाई से लेकर छंटाई और प्रोसेसिंग में दिल्ली और पुणे के विशेषज्ञ मौजूद रहते हैं.
''इस बार शाही लीची की फसल अन्य वर्षों की तुलना में ठीक हुईं हैं. किसानों को रेट भी ठीक-ठाक मिला है. ज्यादातर किसान काफी खुश हैं. अभी चाइना लीची और अन्य कई प्रजाति की लीची किसानों के बाग में हैं. उम्मीद है इस बार लीची का फसल किसानों के लिए काफी अच्छा रहेगा.''- डॉ. एसडी पाण्डेय, निदेशक, लीची अनुसंधान केंद्र
लीची के लिए पवन एक्सप्रेस में 24 टन का पार्सल वैन : बता दें कि रेलवे की ओर से पवन एक्सप्रेस में 24 टन का पार्सल वैन लगाया गया है. 20 मई को पहली खेप रवाना हुई, जिसमें करीब 23 टन 600 किलोग्राम लीची लोड किया गया था. व्यवसायियों की मांग पर चार अन्य ट्रेनों में भी सुविधा मिलेगी. मुजफ्फरपुर जंक्शन से हर वर्ष मुंबई जैसे महानगरों में शाही लीची भेजी जाती रही है. इस साल भी व्यापारियों एवं किसानों की सुविधा के लिए मुजफ्फरपुर स्टेशन पर विशेष प्रबंध किये गये हैं. जंक्शन से 20 जून तक लीची पार्सल यातायात सुनिश्चित करने को लेकर विशेष आवश्यक व्यवस्था की गयी है. बुकिंग के लिए 24 घंटे पार्सल खुली रहेगी.
दरभंगा एयरपोर्ट से कार्गो सेवा लीची के लिए वरदान साबित हो रहा : इधर, दरभंगा एयरपोर्ट से कार्गो सेवा की शुरुआत हो चुकी है. यह कार्गो सेवा मुजफ्फरपुर व आसपास के लीची किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. किसान अपने बगीचे से लाल और रसीली लीची तोड़कर कार्टून में पैक कर, दरभंगा एयरपोर्ट स्थित कार्गो बुकिंग काउंटर पर बुक कर स्पाइसजेट के माध्यम से दरभंगा से दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में हवाई सेवा के माध्यम से भेज रहे हैं. दरभंगा एयरपोर्ट से कार्गो सेवा का शुभारंभ 20 मई को किया गया था. जिसका मुख्य उद्देश्य था कि मुजफ्फरपुर की शाही लीची को देश-विदेश में पहचान मिल सके और किसानों की आमदनी को बढ़ाया जाए. पिछले साल स्पाइसजेट के माध्यम से 35 टन लीची बाहर भेजी गई थी. इस साल यह लक्ष्य 150 से 200 टन रखा गया है. एयर कंपनी ने बिहार लीची उत्पादक संघ से करार किया है. करार के मुताबिक कंपनी 6 टन लीची रोज इन महानगरों में 40 रुपये प्रति किलो भाड़ा के हिसाब से भेजेगी.
''ट्रेन और ट्रक से लीची भेजे जाने के बाद लीची के खराब होने की आशंका रहती है. अब लीची एक ही दिन में महानगर पहुंच जाएगी, इसलिए यह ताजा रहेगी. महानगर में इसकी कीमत 18 सौ रुपये से दो हजार रुपये बॉक्स तक आसानी से मिल जाएगी. इन महानगरों में रहने वाले लोगों को भी आसानी से उनकी मनपसंद लीची उपलब्ध हो सकेगी. हवाई मार्ग से चंद घंटों में लीची सैकड़ों किलोमीटर दूर तक पहुंच जाएगी. उनके सड़ने-गलने का भी खतरा नहीं रहेगा.16 जून तक किसान अपनी लीची हवाई जहाज से भेज सकेंगे.'' - बच्चा प्रसाद, अध्यक्ष, बिहार लीची उत्पादक संघ
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