मधुबनी: बिहार के मधुबनी में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरीओ फैरेल एओ का आगमन हुआ. उन्होंने मधुबनी की पहचान मधुबनी पेंटिंग को जाना, समझा और उसे बनाने वाले कलाकारों (Barrio Farrell AO met Madhubani painting artists ) से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने कलाकारों से बातचीत कर मधुबनी पेंटिंग की बारीकियों को भी समझा.
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कलाकारों से की बातचीतः उच्चायुक्त बैरीओ फैरेल एओ के साथ द्वितीय सचिव जैक टेलर भी थे. गुरुवार को दोनों मधुबनी पहुंचे. उसके बाद दोनों मेहमान जितवारपुर गांव गए. वहां उनलोगों ने पद्मश्री बौआ देवी, बीके झा (सहायक निदेशक,हस्तशिल्प, वस्त्र मन्त्रालय, भारत सरकार), बिल्टू पासवान, राजकुमार पासवान, युवाकृति संगम के सीईओ सुनील कुमार चौधरी, आशा देवी, रेमन्त कुमार मिश्र और मधुबनी पेंटिंग के दर्जनों कलाकारों से मुलाकात की.
मधुबनी पेंटिंग को आगे बढ़ाने की इच्छाः बैरीओ फैरेल एओ ने मधुबनी पेंटिंग के दर्जनों कलाकारों से मुलाकात कर उनसे बातचीत की. इस दौरान उन्होंने मधुबनी पेंटिंग बनाने की बारीकियों को देखा और समझा. दोनों विदेशी मेहमानों को मिथिला पेंटिंग से बना दुपट्टे से सम्मानित किया गया है. उन्होंने कहा कि हम मधुबनी पेंटिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने को लेकर इच्छुक हैं. इसीलिए मधुबनी पेंटिंग व मिथिला पेंटिंग को देखने के लिए आए हैं. मिथिला पेंटिंग विश्व विख्यात है. यह भारत की एक अनोखी मिसाल है. उन्होंने कलाकारों के काम की काफी प्रशंसा की. उनदोनों के साथ प्रवीण चौहान (आर्ट क्यूरेटर) भी उपस्थित थे. मिथिला पेंटिंग के कलाकारों में काफी खुशी देखने को मिली.
क्या है मिथिला पेंटिंगः स्थानीय कलाकारों का कहना है कि ये चित्रकला राजा जनक समय से प्रचलन में है. राजा जनक ने राम-सीता के विवाह के दौरान महिला कलाकारों से इसे बनवाया था. मिथिलांचल के कई गांवों की महिलाएं इस कला में दक्ष हैं. अपने असली रूप में तो ये पेंटिंग गांवों की मिट्टी से लीपी गई झोपड़ियों में देखने को मिलती थी, लेकिन इसे अब कपड़े या फिर पेपर के कैनवास पर बनाया जाने लगा. समय के साथ-साथ इस विधा में एक समुदाय के लोगों द्वारा राजा शैलेश के जीवन वृतान्त का चित्रण भी किया जाने लगा. इस समुदाय के लोग राजा सैलेश को अपने देवता के रूप में पूजते भी हैं.
रंगोली के रूप में इस कला में हुई थी शुरुआतः शुरुआत में रंगोली के रूप में इसे बनाया जाता था. बाद में यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ों, दीवारों और कागज पर उतर आई. मिथिला की औरतों ने इस घरेलू चित्रकला को शुरू किया. बाद में पुरुषों ने भी इसे अपना लिया. वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को आगे बढ़ाया.
बौआ देवी ने मिथिला पेंटिंग को दी पहचानः बिहार के मधुबनी जिले के एक छोटे गांव में रहने वाली बौआ देवी का जन्म 25 दिसंबर 1942 में हुआ था. वे महज पांचवी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाई और 12 साल की उम्र में उनकी शादी करा दी गई. चित्रकला का शौक उन्हें पहले से था और शादी के बाद भी अपने घर के आंगन में दीवारों और दरवाजों पर वे मिथिला पेंटिंग किया करती थी.बौआ देवी ने बताया कि दिन में घर में काफी काम काज होता था, जिस वजह से उन्हें समय नहीं मिल पाता था और रात में वे अपनी चित्रकला का काम करती थी. साल 1966-67 के समय अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड के डिजाइनर भास्कर कुलकर्णी उनके गांव पहुंचे थे, जब उन्हें पता चला कि बौआ देवी मिथिला पेंटिंग करती हैं तो वे उनके घर पहुंचे. डिजाइनर भास्कर कुलकर्णी को बौआ देवी का काम काफी पसंद आया.
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