गयाः बिहार के गया में विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में गैर हिन्दू का प्रवेश निषेध है. हाल ही में बिहार सरकार में मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी के विष्णुपद मंदिर गर्भगृह में प्रवेश के बाद सियासी घमासान (Controversy On Non Hindu Entry In Gaya Vishnupad Temple) मचा हुआ है और इसका काफी विरोध हो रहा है. धार्मिक जानकारों का कहना है कि यह परंपरा पहली बार टूटी है. मंदिर से जुड़े जानकारों ने बताया कि ऐतिहासिक बात यह है कि इस परंपरा को तोड़ने की हिमाकत अंग्रेजी हुकूमत भी नहीं कर पाये (Gaya Vishnupad Temple Garbhagriha) थे. करीबन एक सौ साल गैर हिन्दुओं खासकर विदेशी श्रद्धालु के दर्शन के लिए दो छती झरोखा तैयार किया गया था.
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"एक अंग्रेज शासक के काफी आग्रह के बाद दो छती झरोखे का निर्माण कराया गया था. यहीं से अहिंदू श्रद्धालु गर्भगृह का दर्शन करते हैं. काफी संख्या में आने वाले विदेशी श्रद्धालुओं जो कि अहिंदू होते हैं, उन्हें इसी दो छती झरोखे से विष्णुपद मंदिर गर्भ ग्रह का दर्शन करने का मौका दिया जाता है."- शंभूलाल विट्ठल, अध्यक्ष, विष्णुपद मंदिर प्रबंधक कारिणी समिति
राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर ने बनवाया था दो छती झरोखाः विष्णुपद मंदिर से जुड़े लोगों ने गैर हिन्दू को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने का साहस नहीं किया था. एक अंग्रेज शासक के आग्रह एक सौ साल पहले विष्णुपद मंदिर गर्भगृह के मुख्य गेट से करीब 100 मीटर की दूरी पर दो छती झरोखे का निर्माण कराया गया था. यह निर्माण राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर की ओर से कराया गया था. निर्माण के बाद से ही इसे दो छती झरोखा के नाम से जाना जाता है.
बोर्ड में लिखा है-अहिंदू दर्शन के लिए स्थानः विष्णुपद मंदिर गर्भगृह से करीब एक सौ मीटर की दूरी पर यह दो छत्ती झरोखा आज भी मौजूद है और यहां से अहिंदू दर्शन कर सकते हैं. यानि गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं है, पर दूर से गर्भगृह के दर्शन का ऐसे अहिंदू श्रद्धालुओं को मौका दिया जाता है.
विदेशी यहीं से करते हैं दर्शनः काफी संख्या में विदेशों से आने वाले अहिंदू इसी झरोखे से दूर से गर्भगृह का दर्शन करते हैं. वर्ष 1922 में इसका निर्माण कराया गया था. निर्माण के बाद लगाए गए बोर्ड में सारी बातों का उल्लेख किया गया है. इसमें लिखा है कि हिंदी संवत के अनुसार वर्ष 1979 और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1922 में इसका निर्माण राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के द्वारा कराया गया था. दो छती झरोखे से अहिंदू श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं.
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