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कन्हैया कुमार ने लोकसभा चुनाव के दौरान PM पर किया सीधा हमला, अपने ही गढ़ में चखा हार का स्वाद

बिहार के बेगूसराय के छोटे से गांव से निकलकर जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष और बेगूसराय संसदीय सीट पर मजबूत दावेदारी पेश कर कन्हैया कुमार ने काफी कम समय में बड़ा नाम कमाया. देखना होगा कि आने वाले साल में उनका राजनीतिक करियर कितना आगे बढ़ पाता है.

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Published : Dec 31, 2019, 11:42 PM IST

Updated : Jan 1, 2020, 5:25 PM IST

कन्हैया कुमार
कन्हैया कुमार

बेगूसराय: कन्हैया कुमार देश की बेहद चर्चित शख्सियत हैं. भारत की सियासत में इस नाम के सहारे वामपंथियों ने नया मुकाम हासिल करने की रणनीति बनाई थी. बीजेपी के विरोधियों को ये शख्स तुरुप का इक्का नजर आ रहा था. लेकिन, वामपंथियों का गढ़ मानी जाने वाली बेगूसराय लोकसभा सीट पर भाकपा नेता कन्हैया कुमार को बीजेपी के गिरिराज सिंह ने चार लाख से भी ज्यादा वोट से पटखनी दे दी.

मसनदपुर में कन्हैया कुमार का पैतृक घर
जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार का पैतृक घर बेगूसराय जिले के बिहट स्थित मसनदपुर है. गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई पूरी कर कन्हैया ने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के जेएनयू तक का सफर तय किया. यहां अपनी काबिलियत की बदौलत वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.

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कन्हैया कुमार

कन्हैया पर लगे देशद्रोह के आरोप
हालांकि उसी दौरान कन्हैया पर देशद्रोह के आरोप लगे और इसके बाद वो सुर्खियों में आ गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने के कारण वो बीजेपी विरोधी पार्टियों की पसंद भी बन गए. शायद यही कारण था कि लोकसभा चुनाव के दौरान कन्हैया के समर्थन में प्रचार के लिए मोदी-विरोधी कई फिल्म स्टार बेगूसराय पहुंचे.

कन्हैया कुमार पर ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

वोटों के ध्रुवीकरण ने कन्हैया को चखाया हार का स्वाद
बेगूसराय में चुनाव के शुरुआती दौर में आरजेडी के तनवीर हसन, बीजेपी के गिरिराज सिंह और सीपीआई के कन्हैया कुमार के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला. लेकिन धीरे-धीरे वोटों के ध्रुवीकरण ने मुकाबले को एकतरफा कर दिया. इस कारण कन्हैया के बेगूसराय से भी हार का सामना करना पड़ा.

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NRC और CAA खिलाफ प्रदर्शन में कन्हैया कुमार

कम समय में कन्हैया कुमार ने कमाया बड़ा नाम
बिहार के बेगूसराय के छोटे से गांव से निकलकर जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष और बेगूसराय संसदीय सीट पर मजबूत दावेदारी पेश कर कन्हैया कुमार ने काफी कम समय में बड़ा नाम कमाया. देखना होगा कि आने वाले साल में उनका राजनीतिक करियर कितना आगे बढ़ पाता है.

बेगूसराय: कन्हैया कुमार देश की बेहद चर्चित शख्सियत हैं. भारत की सियासत में इस नाम के सहारे वामपंथियों ने नया मुकाम हासिल करने की रणनीति बनाई थी. बीजेपी के विरोधियों को ये शख्स तुरुप का इक्का नजर आ रहा था. लेकिन, वामपंथियों का गढ़ मानी जाने वाली बेगूसराय लोकसभा सीट पर भाकपा नेता कन्हैया कुमार को बीजेपी के गिरिराज सिंह ने चार लाख से भी ज्यादा वोट से पटखनी दे दी.

मसनदपुर में कन्हैया कुमार का पैतृक घर
जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार का पैतृक घर बेगूसराय जिले के बिहट स्थित मसनदपुर है. गांव के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई पूरी कर कन्हैया ने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के जेएनयू तक का सफर तय किया. यहां अपनी काबिलियत की बदौलत वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.

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कन्हैया कुमार

कन्हैया पर लगे देशद्रोह के आरोप
हालांकि उसी दौरान कन्हैया पर देशद्रोह के आरोप लगे और इसके बाद वो सुर्खियों में आ गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने के कारण वो बीजेपी विरोधी पार्टियों की पसंद भी बन गए. शायद यही कारण था कि लोकसभा चुनाव के दौरान कन्हैया के समर्थन में प्रचार के लिए मोदी-विरोधी कई फिल्म स्टार बेगूसराय पहुंचे.

कन्हैया कुमार पर ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

वोटों के ध्रुवीकरण ने कन्हैया को चखाया हार का स्वाद
बेगूसराय में चुनाव के शुरुआती दौर में आरजेडी के तनवीर हसन, बीजेपी के गिरिराज सिंह और सीपीआई के कन्हैया कुमार के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला. लेकिन धीरे-धीरे वोटों के ध्रुवीकरण ने मुकाबले को एकतरफा कर दिया. इस कारण कन्हैया के बेगूसराय से भी हार का सामना करना पड़ा.

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NRC और CAA खिलाफ प्रदर्शन में कन्हैया कुमार

कम समय में कन्हैया कुमार ने कमाया बड़ा नाम
बिहार के बेगूसराय के छोटे से गांव से निकलकर जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष और बेगूसराय संसदीय सीट पर मजबूत दावेदारी पेश कर कन्हैया कुमार ने काफी कम समय में बड़ा नाम कमाया. देखना होगा कि आने वाले साल में उनका राजनीतिक करियर कितना आगे बढ़ पाता है.

Intro:एंकर- लोकसभा चुनाव के दौरान देश की सबसे हॉट सीट में शुमार बेगूसराय संसदीय सीट पर जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ,सीपीआई प्रत्याशी के रूप में दांव आजमाने मैदान में उतरे।कन्हैया कुमार का मुकाबला बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह और महागठबंधन के प्रत्याशी तनवीर हसन से था। शुरुआत में तो यह मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा था लेकिन बाद में कन्हैया के स्टार प्रचारकों के विवादित बयान और बीजेपी के प्रति वोटों का ध्रुवीकरण मुकाबले को एकतरफा कर गया ,अंततः कन्हैया कुमार को गिरिराज सिंह के हाथों चार लाख से भी ज्यादा वोट से शिकस्त खानी पड़ी। एक रिपोर्ट


Body:vo- जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष व बेगूसराय से लोकसभा चुनाव के दौरान सीपीआई के उम्मीदवार रहे कन्हैया कुमार का पैतृक घर बेगूसराय जिले के बिहट स्थित मसनदपुर है। छोटे से गांव मसनदपुर के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई पूरी कर कन्हैया ने उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के जेएनयू तक का सफर तय किया । अपनी वाकपटुता और काबिलियत की बदौलत कन्हैया छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। इसी दौरान जेएनयू कैंपस में विवादित नारा मामले में कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का आरोप लगा,कन्हैया कुमार का नाम जुड़ते ही बेगूसराय जिला अचानक सुर्खियों में आया ।कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का भले ही आरोप लगा हो लेकिन धीरे-धीरे कन्हैया कुमार वैसे लोगों और वैसे पार्टियों की आंख के तारे बन गए जो बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार से इत्तेफाक नहीं रखते थे ।देश के राजनीतिक पटल पर मोदी और बीजेपी के विरोध का बड़ा चेहरा कन्हैया को लोग मानने लगे इसी बीच कन्हैया के अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने जन्म लिया और लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमाने कन्हैया कुमार ने बेगूसराय संसदीय सीट को चुना। बेगूसराय संसदीय सीट कन्हैया को इसलिए मुनासिब लगा क्योंकि जातीय आधार पर देखें तो यह संसदीय सीट भूमिहार बहुल है, वहीं दूसरी ओर वोट बैंक की बात करें तो कम्युनिस्टों के वोट बैंक के हिसाब से बेगूसराय संसदीय सीट को मिनी मास्को समझा जाता है ,ऐसे में कन्हैया के शुभचिंतकों ने कन्हैया कुमार को सीपीआई प्रत्याशी के तौर पर बेगूसराय से चुनाव मैदान में उतार दिया ।इसी बीच बीजेपी के फायर ब्रांड नेता व तत्कालीन नवादा सांसद गिरिराज सिंह नवादा से बेटिकट कर दिए गए और अचानक शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर बेगूसराय से प्रत्याशी बना दिए गए। इधर कन्हैया कुमार को महागठबंधन का साथ नहीं मिला और तेजस्वी यादव के निर्देश पर राजद के वरीय नेता तनवीर हसन ने राजद प्रत्याशी के रूप में चुनाव में एंट्री मारी ।वैसे तनवीर हसन विगत चुनाव में भी बीजेपी के तत्कालीन सांसद भोला सिंह के खिलाफ राजद के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके थे और मामूली मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। बेगूसराय संसदीय सीट पर तीनों प्रत्याशियों के नाम तय होने के साथ ही चुनावी तापमान बढ़ने लगा ।एक तरफ कन्हैया कुमार के स्टार प्रचारक के तौर पर जेएनयू छात्र संघ की नेत्री कन्हैया की सहयोगी शहला राशिद ,गुजरात के बीजेपी के धुर विरोधी विधायक जिग्नेश मेवानी, फिल्म स्टार प्रकाश राज, फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी, गीतकार और डायरेक्टर जावेद अख्तर ,राजनीति के चाणक्य योगेंद्र यादव, सीताराम येचुरी समेत कई बड़ी हस्ती लगातार गिरिराज सिंह के खिलाफ और कन्हैया कुमार के समर्थन में बेगूसराय में पसीना बहा रहे थे ,वहीं दूसरी ओर बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह लगातार अपनी बयानबाजी से सुर्खी में बने हुए थे खास करके हिंदूवादी चेहरा होने के कारण धीरे-धीरे हिंदू मतों की गोलबंदी गिरिराज सिंह के पक्ष में होने लगी ।गिरिराज सिंह के लिए एनडीए के सभी बड़े नेताओं की रैली आयोजित हुई जिसमें अमित शाह की रैली से लोग काफी प्रभावित हुए।इसी बीच कन्हैया के सहयोगी शहला रशीद का एक विवादित बयान चुनावी सभा में सामने आया जिसमें उन्होंने मंच से यह आरोप लगाया कि हर शाम पैसे वाले हिंदू और मुसलमान होटल में एक साथ बैठकर शराब पीते हैं और बीफ खाते हैं। शहला राशिद के इस बयान को गिरिराज सिंह ने अपना हथियार बना लिया और मुस्लिम और हिंदु मतों का बड़ी तेजी से ध्रुवीकरण हो गया। खास बात यह रही कि मुस्लिम चेहरा होने के बावजूद भी राजद प्रत्याशी तनवीर हसन मुस्लिम समुदाय के लिए पहली पसंद नहीं थे ।ज्यादातर मुस्लिमों का मत कन्हैया कुमार को मिला यही वजह रही की मतगणना के समय राजद के तनवीर हसन कहीं से रेस में नहीं दिखे। कन्हैया कुमार को लगभग पौने तीन लाख बोट मिले , बावजूद इसके गिरिराज सिंह के प्रचंड बहुमत के सामने कन्हैया को प्राप्त मत बौना साबित हो गया। गिरिराज सिंह और कन्हैया के बीच मतों का अंतर चार लाख के पार पहुंच गया। इस बाबत ईटीवी भारत संवाददाता आशीष ने विश्लेषण के दौरान सीपीआई के बड़े नेता अनिल अनजान से विशेष वार्ता की और कन्हैया कुमार के हार के प्रमुख कारण का जानने का प्रयाश किया,जिस पर सीपीआई नेता का स्पष्ट कहना था कि चुनाव के समय पुलवामा जैसी घटना और बीजेपी की धनबल, प्रचार तंत्र और और झूठे मूठे अफवाहों के चक्कर में फस कर लोग गुमराह हो गए ,जिस वजह से कन्हैया कुमार को इतना मत प्राप्त नहीं हो पाया जितनी पार्टी अपेक्षा कर रही थी। वन टू वन विथ अनिल अनजान,सीपीआई नेता


Conclusion:fvo- बहरहाल जो भी हो बेगूसराय जिले के छोटे से गांव से निकलकर जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष और बेगूसराय संसदीय सीट पर मजबूत दावेदारी प्रस्तुत कर कन्हैया कुमार ने काफी कम समय में बड़ी उपलब्धि हासिल की है अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले समय में बेगूसराय के आम लोग और मतदाता कन्हैया कुमार पर कितना भरोसा कर सकते हैं।।
Last Updated : Jan 1, 2020, 5:25 PM IST
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