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बैंकों के डूब चुके 1.75 लाख करोड़ में 75,000 करोड़ रुपये वापस आए

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Published : May 4, 2019, 1:23 PM IST

मार्च तक, विभिन्न दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता न्यायाधिकरणों के पास 1,143 मामले लंबित थे और इनमें से 32 प्रतिशत मामले 270 दिन से अधिक समय से लंबित हैं.

बैंकों के डूब चुके 1.75 लाख करोड़ में 75,000 करोड़ रुपये वापस आए

मुंबई: बैंकों को 2018-19 में 1.75 लाख करोड़ रुपये के 94 बड़े एनपीए खातों के समाधान करने में 75,000 करोड़ रुपये यानी 43 प्रतिशत राशि ही मिली है. इन मामलों में बैकों को अपने दावों से 57 प्रतिशत कम राशि प्राप्त हुई. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

यह आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने दिवाला कानून ने तीसरे साल में कदम रखा है. मार्च तक, विभिन्न दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता न्यायाधिकरणों के पास 1,143 मामले लंबित थे और इनमें से 32 प्रतिशत मामले 270 दिन से अधिक समय से लंबित हैं.

ये भी पढ़ें- रिजर्व बैंक के नियमों पर अमल के बाद ही भुगतान सेवा शुरू होगी: व्हाट्सऐप

इन 94 मामलों के समाधान में औसतन 324 दिन लगे जबकि इसके लिए निर्धारित समयसीमा 270 दिन है.

क्रिसिल और उद्योग मंडल एसोचैम के संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, "राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की विभिन्न पीठों द्वारा दिवाला प्रकिया के तहत 2018-19 में सिर्फ 94 मामलों में निपटान हुआ है. इन मामलों में वित्त कर्जदाताओं ने 1,75,000 करोड़ रुपये का दावा किया था , इसकी तुलना में उन्हें जमा किए दावे का सिर्फ 43 प्रतिशत यानी 75,000 करोड़ रुपये की वसूली हुई है."

इसमें कहा गया है कि कुछ बड़े खातों का समाधान 400 से अधिक दिन में नहीं हो सका क्योंकि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) की रूपरेखा पर अब भी काम चल रहा है.

अध्ययन के मुताबिक, आईबीसी के सफल क्रियान्वयन के लिए कुछ प्रमुख दिक्कतों को दूर किया जाना जरूरी है. इनमें समयसीमा का पालन, पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा, कर्जदाताओं का वर्गीकरण और प्राथमिकता समेत अन्य बातें शामिल हैं.

मुंबई: बैंकों को 2018-19 में 1.75 लाख करोड़ रुपये के 94 बड़े एनपीए खातों के समाधान करने में 75,000 करोड़ रुपये यानी 43 प्रतिशत राशि ही मिली है. इन मामलों में बैकों को अपने दावों से 57 प्रतिशत कम राशि प्राप्त हुई. एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.

यह आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने दिवाला कानून ने तीसरे साल में कदम रखा है. मार्च तक, विभिन्न दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता न्यायाधिकरणों के पास 1,143 मामले लंबित थे और इनमें से 32 प्रतिशत मामले 270 दिन से अधिक समय से लंबित हैं.

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इन 94 मामलों के समाधान में औसतन 324 दिन लगे जबकि इसके लिए निर्धारित समयसीमा 270 दिन है.

क्रिसिल और उद्योग मंडल एसोचैम के संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, "राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की विभिन्न पीठों द्वारा दिवाला प्रकिया के तहत 2018-19 में सिर्फ 94 मामलों में निपटान हुआ है. इन मामलों में वित्त कर्जदाताओं ने 1,75,000 करोड़ रुपये का दावा किया था , इसकी तुलना में उन्हें जमा किए दावे का सिर्फ 43 प्रतिशत यानी 75,000 करोड़ रुपये की वसूली हुई है."

इसमें कहा गया है कि कुछ बड़े खातों का समाधान 400 से अधिक दिन में नहीं हो सका क्योंकि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) की रूपरेखा पर अब भी काम चल रहा है.

अध्ययन के मुताबिक, आईबीसी के सफल क्रियान्वयन के लिए कुछ प्रमुख दिक्कतों को दूर किया जाना जरूरी है. इनमें समयसीमा का पालन, पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा, कर्जदाताओं का वर्गीकरण और प्राथमिकता समेत अन्य बातें शामिल हैं.

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बैंकों को 94 फंसे कर्ज खातों के समाधान में 1.75 लाख करोड़ के मुकाबले 75,000 करोड़ रुपये मिले

मुंबई: बैंकों को 2018-19 में 1.75 लाख करोड़ रुपये के 94 बड़े एनपीए खातों के समाधान करने में 75,000 करोड़ रुपये यानी 43 प्रतिशत राशि ही मिली है.  इन मामलों में बैकों को अपने दावों से 57 प्रतिशत कम राशि प्राप्त हुई.  एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. 

यह आंकड़े इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने दिवाला कानून ने तीसरे साल में कदम रखा है. मार्च तक, विभिन्न दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता न्यायाधिकरणों के पास 1,143 मामले लंबित थे और इनमें से 32 प्रतिशत मामले 270 दिन से अधिक समय से लंबित हैं. 

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इन 94 मामलों के समाधान में औसतन 324 दिन लगे जबकि इसके लिए निर्धारित समयसीमा 270 दिन है.    

क्रिसिल और उद्योग मंडल एसोचैम के संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, "राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की विभिन्न पीठों द्वारा दिवाला प्रकिया के तहत 2018-19 में सिर्फ 94 मामलों में निपटान हुआ है. इन मामलों में वित्त कर्जदाताओं ने 1,75,000 करोड़ रुपये का दावा किया था , इसकी तुलना में उन्हें जमा किए दावे का सिर्फ 43 प्रतिशत यानी 75,000 करोड़ रुपये की वसूली हुई है."

इसमें कहा गया है कि कुछ बड़े खातों का समाधान 400 से अधिक दिन में नहीं हो सका क्योंकि दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता सहिंता (आईबीसी) की रूपरेखा पर अब भी काम चल रहा है. 

अध्ययन के मुताबिक,  आईबीसी के सफल क्रियान्वयन के लिए कुछ प्रमुख दिक्कतों को दूर किया जाना जरूरी है. इनमें समयसीमा का पालन, पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा, कर्जदाताओं का वर्गीकरण और प्राथमिकता समेत अन्य बातें शामिल हैं. 


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