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दास का एक साल: आरबीआई गवर्नर का सबको साथ लेकर चलने के मंत्र पर भरोसा

प्रशासनिक अधिकारी से केंद्रीय बैंक के मुखिया बने दास ने 12 जनवरी 2018 को कार्यभार संभाला. आरबीआई की स्वायत्तता पर बहस के बीच गवर्नर डॉ उर्जित पटेल के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद इस पर पर दास को लाया गया.

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दास का एक साल: आरबीआई गवर्नर का सबको साथ लेकर चलने के मंत्र पर भरोसा
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Published : Dec 11, 2019, 11:49 PM IST

मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक साल पहले पदभार संभालने के समय सभी को साथ साथ लेकर चलने और बातचीत के जरिये समस्याओं के हल का वादा किया था. पिछले एक साल पर निगाह डालने से दिखता है कि वह उस पर कायम रहे. उनकी अगुवाई में आरबीआई ने एक तरफ जहां आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये अबतक पांच बार नीतिगत दर में कटौती की वहीं कर्ज के ब्याज को रेपो से बाह्य दरों से जोड़े जाने जैसे सुधारों को भी आगे बढ़ाया है.

प्रशासनिक अधिकारी से केंद्रीय बैंक के मुखिया बने दास ने 12 दिसंबर 2018 को कार्यभार संभाला. आरबीआई की स्वायत्तता पर बहस के बीच गवर्नर डॉ उर्जित पटेल के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद इस पर पर दास को लाया गया.

उर्जित पटेल ने हालांकि व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दिया था लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि आरबीआई की स्वायत्तता और अतिरिक्त नकदी सरकार को हस्तांतरित करने जैसे विभिन्न मुद्दों पर वित्त मंत्रालय के साथ कथित मतभेद के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया था.

सरकार को रिजर्व बैंक के पास पड़ी अतिरिक्त नकदी के हस्तांतरण का ऐतिहासिक फैसला, संकट में फंसे कुछ सरकारी बैंकों को आरबीआई की निगरानी से बाहर करना और जून में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति को लेकर नए नियम लाना , दास के कार्यकाल की कुछ बड़ी उपलब्धियां हैं. फरवरी 2019 के बाद से दास की अगुवाई में आरबीआई ने सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये रेपो दर में इस साल अबतक कुल पांच बार में 1.35 प्रतिशत अंक की कटौती की है.

इसमें अगस्त महीने में पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में 0.35 प्रतिशत की कटौती शामिल है. इस कटौती के बाद रेपो दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 5.15 प्रतिशत पर पहुंच गया. हालांकि इन सबके बावजूद केंद्रीय बैंक ने वृद्धि अनुमान में उल्लेखनीय रूप से 2.40 प्रतिशत की कमी की है.

इस महीने की शुरूआत में केंद्रीय बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को यथावत रख निवेशकों और बाजार को झटका दिया. आरबीआई के केंद्रीय बैंक के सदस्य सचिन चतुर्वेदी ने दास को ऐसा शख्स बताया जिसने व्यवहारिकता, प्रतिबद्धता और पारदर्शिता लायी.

उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा, "गवर्नर कई तरीके से सरकार और अन्य पक्षों को साथ लाने और निदेशक मंडल को समन्वय वाला मंच बनाने में सफल रहे."

ये भी पढ़ें: एयर इंडिया ने पूंजी जुटाने के लिये सरकार से 2,400 करोड़ रुपये की गारंटी मांगी

चतुर्वेदी के अनुसार छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की बैठकों में दास ने यह सुनिश्चित किया कि निदेशक मंडल के सभी सदस्य अपनी बातें रखें और उसके बाद उनप मुद्दों पर चर्चा करायी. तमिलनाडु कैडर के 1980 बैच के आईएएस अधिकारी दास आरबीआई में आने से पहले आर्थिक मामलों के सचिव रहे.

इससे पहले, उन्होंने कई पदों पर कार्य किये. पहले दिन से ही उन्होंने सभी पक्षों के साथ तालमेल सुनिश्चित किया. चाहे वह बैंक हो या एनबीएफसी, एमएसइर्म, उद्योग मंडल या फिर साख निर्धारण एजेंसियां, उन्होंने सभी को साथ लेते हुए आरबीआई के विचारों को लेकर सहमति बनाने का प्रयास किया. पटेल के कार्यकाल में इन चीजों का अभाव था. सोशल मीडिया पर सक्रिय दास संबद्ध पक्षों की आशंकाओं को दूर करने के लिये काम करते रहे हैं.

उनकी कार्य शैली से परिचित एक व्यक्ति ने कहा, "वह पिछले आठ साल से आर्थिक नीति निर्माण से जुड़े रहे है. अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं होने के बाद भी आर्थिक मामलों में उनका पूरा दखल दिखा."

दास ने सेंट स्टीफंस से इतिहास में बीए आनर्स की डिग्री हासिल की है. आरबीआई के कर्मचारी भी मानते हैं कि गवर्नर एक संतुलित व्यक्ति हैं और उनके संपर्क करना भी आसान है. उनके एक साल के कार्यकाल में एनबीएफसी क्षेत्र में चिंता, बैंक क्षेत्र की सेहत और आर्थिक वृद्धि में तीव्र गिरावट कुछ बड़ी चुनौतियां हैं जिसे यथाशीघ्र निपटने की जरूरत थी.

पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक में घोटाले से सहकारी बैंकों पर दोहरा नियमन को लेकर सवाल उठें और डीएचएफएल का समय पर समाधान एक अन्य चुनौती थी. आरबीआई के 25वें गवर्नर का पदभार संभालने के बाद महज 15 दिनों में ही दास ने केंद्रीय बैंक के लिये आर्थिक पूंजी के निर्धारण के जटिल मुद्दे पर विचार के लिये सरकार के साथ विचार-विमर्श कर पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया.

समिति ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसके बाद आरबीआई केंद्रीय निदेशक मंडल ने सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये. इसमें 2018-19 के लिये 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष तथा 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल था. दास सरकार के साथ बातचीत खुला रखने को लेकर अधिक सतर्क रहे हैं और उन्होंने कई बार इसे रेखांकित भी किया.

उन्होंने कहा था, "...आरबीआई और सरकार के बीच काफी बातचीत होती है. लेकिन जहां निर्णय लेने का सवाल है, वह आरबीआई लेता और आरबीआई निर्णय लेने के मामले में 100 प्रतिशत स्वायत्त संस्थान है."

दास ने सितंबर में कहा था, "मेरे निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करता."

उन्होंने यह भी कहा कि आरबीआई सभी को खुश करने के लिये नहीं बैठा है. कार्यभार संभालने के एक महीने के भीतर ही दास ने मौजूदा एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) के कर्ज को एक बारगी पुनर्गठन की अनुमति भी. इन कंपनियों ने कर्ज लौटाने में चूक की थी लेकिन ये एनपीए (फंसे कर्ज) नहीं थे.

वहीं दूसरी तरफ तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा के संदर्भ में उन्होंने जनवरी में और व्यवहारिक रुख अपनाया. कुल 11 बैंकों में से तीन ...बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स को नियामकीय पाबंदियों से अलग कर दिया.

दास ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सात जून को बैंकों द्वारा दबाव वाली संपत्ति के समाधान की रूपरेखा को संशोधित किया. न्यायालय ने 12 फरवरी 2018 को आरबीआई के परिपत्र को दो अप्रैल 2019 को खारिज कर करते हुए इसे उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया था.

सुधारों के मोर्चे पर आरबीआई गवर्नर ने यह सुनिश्चित किया कि बैंक कर्ज के ब्याज को लेकर रेपो आधारित बाह्य मानक को अपनाये. इसका मकसद नीतिगत दर में कटौती का लाभ तत्काल ग्राहकों तक पहुंचाना था. साथ ही भुगतन को सुगम बनाने के लिये आरबीआई ने जनवरी 2020 से एनईएफटी सुविधा जनवरी 2020 से सातों दिन 24 घंटे करने का निर्णय किया है.

मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक साल पहले पदभार संभालने के समय सभी को साथ साथ लेकर चलने और बातचीत के जरिये समस्याओं के हल का वादा किया था. पिछले एक साल पर निगाह डालने से दिखता है कि वह उस पर कायम रहे. उनकी अगुवाई में आरबीआई ने एक तरफ जहां आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये अबतक पांच बार नीतिगत दर में कटौती की वहीं कर्ज के ब्याज को रेपो से बाह्य दरों से जोड़े जाने जैसे सुधारों को भी आगे बढ़ाया है.

प्रशासनिक अधिकारी से केंद्रीय बैंक के मुखिया बने दास ने 12 दिसंबर 2018 को कार्यभार संभाला. आरबीआई की स्वायत्तता पर बहस के बीच गवर्नर डॉ उर्जित पटेल के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद इस पर पर दास को लाया गया.

उर्जित पटेल ने हालांकि व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दिया था लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि आरबीआई की स्वायत्तता और अतिरिक्त नकदी सरकार को हस्तांतरित करने जैसे विभिन्न मुद्दों पर वित्त मंत्रालय के साथ कथित मतभेद के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया था.

सरकार को रिजर्व बैंक के पास पड़ी अतिरिक्त नकदी के हस्तांतरण का ऐतिहासिक फैसला, संकट में फंसे कुछ सरकारी बैंकों को आरबीआई की निगरानी से बाहर करना और जून में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति को लेकर नए नियम लाना , दास के कार्यकाल की कुछ बड़ी उपलब्धियां हैं. फरवरी 2019 के बाद से दास की अगुवाई में आरबीआई ने सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये रेपो दर में इस साल अबतक कुल पांच बार में 1.35 प्रतिशत अंक की कटौती की है.

इसमें अगस्त महीने में पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में 0.35 प्रतिशत की कटौती शामिल है. इस कटौती के बाद रेपो दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 5.15 प्रतिशत पर पहुंच गया. हालांकि इन सबके बावजूद केंद्रीय बैंक ने वृद्धि अनुमान में उल्लेखनीय रूप से 2.40 प्रतिशत की कमी की है.

इस महीने की शुरूआत में केंद्रीय बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को यथावत रख निवेशकों और बाजार को झटका दिया. आरबीआई के केंद्रीय बैंक के सदस्य सचिन चतुर्वेदी ने दास को ऐसा शख्स बताया जिसने व्यवहारिकता, प्रतिबद्धता और पारदर्शिता लायी.

उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा, "गवर्नर कई तरीके से सरकार और अन्य पक्षों को साथ लाने और निदेशक मंडल को समन्वय वाला मंच बनाने में सफल रहे."

ये भी पढ़ें: एयर इंडिया ने पूंजी जुटाने के लिये सरकार से 2,400 करोड़ रुपये की गारंटी मांगी

चतुर्वेदी के अनुसार छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की बैठकों में दास ने यह सुनिश्चित किया कि निदेशक मंडल के सभी सदस्य अपनी बातें रखें और उसके बाद उनप मुद्दों पर चर्चा करायी. तमिलनाडु कैडर के 1980 बैच के आईएएस अधिकारी दास आरबीआई में आने से पहले आर्थिक मामलों के सचिव रहे.

इससे पहले, उन्होंने कई पदों पर कार्य किये. पहले दिन से ही उन्होंने सभी पक्षों के साथ तालमेल सुनिश्चित किया. चाहे वह बैंक हो या एनबीएफसी, एमएसइर्म, उद्योग मंडल या फिर साख निर्धारण एजेंसियां, उन्होंने सभी को साथ लेते हुए आरबीआई के विचारों को लेकर सहमति बनाने का प्रयास किया. पटेल के कार्यकाल में इन चीजों का अभाव था. सोशल मीडिया पर सक्रिय दास संबद्ध पक्षों की आशंकाओं को दूर करने के लिये काम करते रहे हैं.

उनकी कार्य शैली से परिचित एक व्यक्ति ने कहा, "वह पिछले आठ साल से आर्थिक नीति निर्माण से जुड़े रहे है. अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं होने के बाद भी आर्थिक मामलों में उनका पूरा दखल दिखा."

दास ने सेंट स्टीफंस से इतिहास में बीए आनर्स की डिग्री हासिल की है. आरबीआई के कर्मचारी भी मानते हैं कि गवर्नर एक संतुलित व्यक्ति हैं और उनके संपर्क करना भी आसान है. उनके एक साल के कार्यकाल में एनबीएफसी क्षेत्र में चिंता, बैंक क्षेत्र की सेहत और आर्थिक वृद्धि में तीव्र गिरावट कुछ बड़ी चुनौतियां हैं जिसे यथाशीघ्र निपटने की जरूरत थी.

पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक में घोटाले से सहकारी बैंकों पर दोहरा नियमन को लेकर सवाल उठें और डीएचएफएल का समय पर समाधान एक अन्य चुनौती थी. आरबीआई के 25वें गवर्नर का पदभार संभालने के बाद महज 15 दिनों में ही दास ने केंद्रीय बैंक के लिये आर्थिक पूंजी के निर्धारण के जटिल मुद्दे पर विचार के लिये सरकार के साथ विचार-विमर्श कर पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया.

समिति ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसके बाद आरबीआई केंद्रीय निदेशक मंडल ने सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये. इसमें 2018-19 के लिये 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष तथा 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल था. दास सरकार के साथ बातचीत खुला रखने को लेकर अधिक सतर्क रहे हैं और उन्होंने कई बार इसे रेखांकित भी किया.

उन्होंने कहा था, "...आरबीआई और सरकार के बीच काफी बातचीत होती है. लेकिन जहां निर्णय लेने का सवाल है, वह आरबीआई लेता और आरबीआई निर्णय लेने के मामले में 100 प्रतिशत स्वायत्त संस्थान है."

दास ने सितंबर में कहा था, "मेरे निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करता."

उन्होंने यह भी कहा कि आरबीआई सभी को खुश करने के लिये नहीं बैठा है. कार्यभार संभालने के एक महीने के भीतर ही दास ने मौजूदा एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) के कर्ज को एक बारगी पुनर्गठन की अनुमति भी. इन कंपनियों ने कर्ज लौटाने में चूक की थी लेकिन ये एनपीए (फंसे कर्ज) नहीं थे.

वहीं दूसरी तरफ तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा के संदर्भ में उन्होंने जनवरी में और व्यवहारिक रुख अपनाया. कुल 11 बैंकों में से तीन ...बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स को नियामकीय पाबंदियों से अलग कर दिया.

दास ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सात जून को बैंकों द्वारा दबाव वाली संपत्ति के समाधान की रूपरेखा को संशोधित किया. न्यायालय ने 12 फरवरी 2018 को आरबीआई के परिपत्र को दो अप्रैल 2019 को खारिज कर करते हुए इसे उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया था.

सुधारों के मोर्चे पर आरबीआई गवर्नर ने यह सुनिश्चित किया कि बैंक कर्ज के ब्याज को लेकर रेपो आधारित बाह्य मानक को अपनाये. इसका मकसद नीतिगत दर में कटौती का लाभ तत्काल ग्राहकों तक पहुंचाना था. साथ ही भुगतन को सुगम बनाने के लिये आरबीआई ने जनवरी 2020 से एनईएफटी सुविधा जनवरी 2020 से सातों दिन 24 घंटे करने का निर्णय किया है.

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मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक साल पहले पदभार संभालने के समय सभी को साथ साथ लेकर चलने और बातचीत के जरिये समस्याओं के हल का वादा किया था. पिछले एक साल पर निगाह डालने से दिखता है कि वह उस पर कायम रहे. उनकी अगुवाई में आरबीआई ने एक तरफ जहां आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये अबतक पांच बार नीतिगत दर में कटौती की वहीं कर्ज के ब्याज को रेपो से बाह्य दरों से जोड़े जाने जैसे सुधारों को भी आगे बढ़ाया है.

प्रशासनिक अधिकारी से केंद्रीय बैंक के मुखिया बने दास ने 12 दिसंबर 2018 को कार्यभार संभाला. आरबीआई की स्वायत्तता पर बहस के बीच गवर्नर डॉ उर्जित पटेल के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद इस पर पर दास को लाया गया.

उर्जित पटेल ने हालांकि व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दिया था लेकिन विशेषज्ञों का कहना था कि आरबीआई की स्वायत्तता और अतिरिक्त नकदी सरकार को हस्तांतरित करने जैसे विभिन्न मुद्दों पर वित्त मंत्रालय के साथ कथित मतभेद के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया था.

सरकार को रिजर्व बैंक के पास पड़ी अतिरिक्त नकदी के हस्तांतरण का ऐतिहासिक फैसला, संकट में फंसे कुछ सरकारी बैंकों को आरबीआई की निगरानी से बाहर करना और जून में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति को लेकर नए नियम लाना , दास के कार्यकाल की कुछ बड़ी उपलब्धियां हैं. फरवरी 2019 के बाद से दास की अगुवाई में आरबीआई ने सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये रेपो दर में इस साल अबतक कुल पांच बार में 1.35 प्रतिशत अंक की कटौती की है.

इसमें अगस्त महीने में पेश मौद्रिक नीति समीक्षा में 0.35 प्रतिशत की कटौती शामिल है. इस कटौती के बाद रेपो दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 5.15 प्रतिशत पर पहुंच गया. हालांकि इन सबके बावजूद केंद्रीय बैंक ने वृद्धि अनुमान में उल्लेखनीय रूप से 2.40 प्रतिशत की कमी की है.

इस महीने की शुरूआत में केंद्रीय बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को यथावत रख निवेशकों और बाजार को झटका दिया. आरबीआई के केंद्रीय बैंक के सदस्य सचिन चतुर्वेदी ने दास को ऐसा शख्स बताया जिसने व्यवहारिकता, प्रतिबद्धता और पारदर्शिता लायी.

उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा, "गवर्नर कई तरीके से सरकार और अन्य पक्षों को साथ लाने और निदेशक मंडल को समन्वय वाला मंच बनाने में सफल रहे."

चतुर्वेदी के अनुसार छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति की बैठकों में दास ने यह सुनिश्चित किया कि निदेशक मंडल के सभी सदस्य अपनी बातें रखें और उसके बाद उनप मुद्दों पर चर्चा करायी. तमिलनाडु कैडर के 1980 बैच के आईएएस अधिकारी दास आरबीआई में आने से पहले आर्थिक मामलों के सचिव रहे.

इससे पहले, उन्होंने कई पदों पर कार्य किये. पहले दिन से ही उन्होंने सभी पक्षों के साथ तालमेल सुनिश्चित किया. चाहे वह बैंक हो या एनबीएफसी, एमएसइर्म, उद्योग मंडल या फिर साख निर्धारण एजेंसियां, उन्होंने सभी को साथ लेते हुए आरबीआई के विचारों को लेकर सहमति बनाने का प्रयास किया. पटेल के कार्यकाल में इन चीजों का अभाव था. सोशल मीडिया पर सक्रिय दास संबद्ध पक्षों की आशंकाओं को दूर करने के लिये काम करते रहे हैं.

उनकी कार्य शैली से परिचित एक व्यक्ति ने कहा, "वह पिछले आठ साल से आर्थिक नीति निर्माण से जुड़े रहे है. अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं होने के बाद भी आर्थिक मामलों में उनका पूरा दखल दिखा."

दास ने सेंट स्टीफंस से इतिहास में बीए आनर्स की डिग्री हासिल की है. आरबीआई के कर्मचारी भी मानते हैं कि गवर्नर एक संतुलित व्यक्ति हैं और उनके संपर्क करना भी आसान है. उनके एक साल के कार्यकाल में एनबीएफसी क्षेत्र में चिंता, बैंक क्षेत्र की सेहत और आर्थिक वृद्धि में तीव्र गिरावट कुछ बड़ी चुनौतियां हैं जिसे यथाशीघ्र निपटने की जरूरत थी.

पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी बैंक में घोटाले से सहकारी बैंकों पर दोहरा नियमन को लेकर सवाल उठें और डीएचएफएल का समय पर समाधान एक अन्य चुनौती थी. आरबीआई के 25वें गवर्नर का पदभार संभालने के बाद महज 15 दिनों में ही दास ने केंद्रीय बैंक के लिये आर्थिक पूंजी के निर्धारण के जटिल मुद्दे पर विचार के लिये सरकार के साथ विचार-विमर्श कर पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया.

समिति ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. उसके बाद आरबीआई केंद्रीय निदेशक मंडल ने सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये हस्तांतरित किये. इसमें 2018-19 के लिये 1,23,414 करोड़ रुपये का अधिशेष तथा 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल था. दास सरकार के साथ बातचीत खुला रखने को लेकर अधिक सतर्क रहे हैं और उन्होंने कई बार इसे रेखांकित भी किया.

उन्होंने कहा था, "...आरबीआई और सरकार के बीच काफी बातचीत होती है. लेकिन जहां निर्णय लेने का सवाल है, वह आरबीआई लेता और आरबीआई निर्णय लेने के मामले में 100 प्रतिशत स्वायत्त संस्थान है."

दास ने सितंबर में कहा था, "मेरे निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करता."

उन्होंने यह भी कहा कि आरबीआई सभी को खुश करने के लिये नहीं बैठा है. कार्यभार संभालने के एक महीने के भीतर ही दास ने मौजूदा एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) के कर्ज को एक बारगी पुनर्गठन की अनुमति भी. इन कंपनियों ने कर्ज लौटाने में चूक की थी लेकिन ये एनपीए (फंसे कर्ज) नहीं थे.

वहीं दूसरी तरफ तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा के संदर्भ में उन्होंने जनवरी में और व्यवहारिक रुख अपनाया. कुल 11 बैंकों में से तीन ...बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स को नियामकीय पाबंदियों से अलग कर दिया.

दास ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद सात जून को बैंकों द्वारा दबाव वाली संपत्ति के समाधान की रूपरेखा को संशोधित किया. न्यायालय ने 12 फरवरी 2018 को आरबीआई के परिपत्र को दो अप्रैल 2019 को खारिज कर करते हुए इसे उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया था.

सुधारों के मोर्चे पर आरबीआई गवर्नर ने यह सुनिश्चित किया कि बैंक कर्ज के ब्याज को लेकर रेपो आधारित बाह्य मानक को अपनाये. इसका मकसद नीतिगत दर में कटौती का लाभ तत्काल ग्राहकों तक पहुंचाना था. साथ ही भुगतन को सुगम बनाने के लिये आरबीआई ने जनवरी 2020 से एनईएफटी सुविधा जनवरी 2020 से सातों दिन 24 घंटे करने का निर्णय किया है.

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