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Naxalite Pramod Mishra Arrested : कौन है माओवादी प्रमोद मिश्रा ? जिसपर 1 करोड़ के ईनाम का था प्रस्ताव - Naxalite Pramod Mishra

CPI Maoist Politburo member और उसका शीर्ष नेता प्रमोद मिश्रा को सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम ने उसके सहयोगी के साथ गिरफ्तार किया है. ये उसकी दूसरी बार गिरफ्तारी है. इस बार वह बिहार के गया से दबोचा गया. आखिर कौन है माओवादी प्रमोद मिश्रा जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर-

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Published : Aug 10, 2023, 5:42 PM IST

गया : बिहार के गया में एक ही परिवार के चार लोगों को फांसी पर लटकाने वाले नक्सली प्रमोद मिश्रा को सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम ने गिरफ्तार किया है. प्रमोद मिश्रा के साथ उसका सहयोगी अनिल यादव भी पकड़ा गया है. दोनों टिकारी प्रखंड के जरही टोला में अपने रिश्तेदार के घर आए थे. तभी उसे गिरफ्तार कर लिया गया. टॉप माओवादी प्रमोद मिश्रा और ईस्टर्न रिजनल ब्यूरो मिसिर बेसरा के बीच विवाद था. यही वजह है कि वो सारंड के जंगल को छोड़कर यहां वहां भटक रहा था.

ये भी पढ़ें- Naxalite Pramod Mishra Arrested : चार लोगों को फंदे पर लटकाने वाला नक्सली प्रमोद मिश्रा गिरफ्तार

2008 में भी हुई थी गिरफ्तारी : नक्सली प्रमोद मिश्रा को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया है. तब 2008 में भी इसे धनबाद के विनोद नगर मुहल्ले से गिरफ्तार किया गया था. तब ये अपने रिश्तेदार के घर पर था. लगभग 9 साल की कार्रवाई के बाद जेल में बंद प्रमोद मिश्रा को साल 2017 में छपरा कोर्ट से रिहा कर दिया गया था. इसपर छपरा, औरंगाबाद, गया और झारखंड के धनबाद में कुल 22 नक्सली वारदातों के मामले दर्ज थे.

2004 से खूनी डगर पर प्रमोद ! : इसके माओवादी बनने के सफर की शुरूआत साल 2004 से होती है. साल 2004 में ये माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया का शीर्ष नेता था. जब इस कमेटी का गठन हुआ तो प्रमोद को पार्टी ने केंद्रीय समिति का सदस्य बना दिया. यहीं से आगे बढ़ते हुए साल 2007 में ये पोलित ब्यूरो का सदस्य बना. इसकी घोषणा पार्टी की 9वीं कांग्रेस में हुई थी.

कई मामले में नाम शामिल : उसे मजबूत जिम्मेदारी संगठन की ओर से दी गई. इसे पंजाब, जम्मू कश्मीर और हरियाण समेत देश के दूसरे राज्यों में आंदोलन को तेज करने के लिए जिम्मेदारी दी गई. 2006 में इसका नाम यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट की कंट्री रिपोट्स ऑन टेररिज्म में आ चुका था. लेकिन 11 मई 2008 को धनबाद के विनोद नगर से गिरफ्तार हो जाने की वजह से इसकी उड़ान थम गई.

4 लोगों को फांसी पर लटकाने का आरोप : 2017 में साक्ष्य की कमी का फायदा देते हुए छपरा की कोर्ट से बरी कर दिया गया. जेल से छूटते ही फिर से इसने कई राज्यों में नक्सली वारदातों को अंजाम दिया. बिहार के गया में साल 2021 में इसने एक ही परिवार के 4 लोगों को फांसी पर लटका दिया. इसका ये जघन्यतम कुकृत्य था. जिसके बाद इसपर इनाम की राशि बढ़ाई जाने लगी. इसके खिलाफ बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त आंध्र प्रदेश में भी केस दर्ज किए गए थे.

विवाद के चलते धरा गया खूंखार माओवादी : इसकी चाहत ईस्टर्न रिजनल ब्यूरो बनने की थी. हालांकि इसपर मिसिर बेसरा काबिज हो गया. प्रमोद मिश्रा और मिसिर बेसरा के बीच इसको लेकर विवाद था. तब इसका मुख्यालय झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंड में हुआ करता था. लेकिन विवाद के चलते इसे वहां से हटना पड़ा. कुछ लोग इसके और बेसरा के भागने की वजह बिहार-झारखंड सीमा पर हुई कार्रवाई को बताया जाता है.

1 करोड़ के ईनाम का था प्रस्ताव : सारंडा में रहते हुए कई नक्सली वारदात, नरसंहार और माओवादी हमले में प्रमोद मिश्रा का नाम आया था. इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिहार सरकार ने 1 करोड़ रुपए की इनामी राशि इसके माथे पर घोषित करने का प्रस्ताव भी भेज दिया था. लेकिन उससे पहले ही उसे दबोच लिया गया.

गया : बिहार के गया में एक ही परिवार के चार लोगों को फांसी पर लटकाने वाले नक्सली प्रमोद मिश्रा को सुरक्षा बलों की संयुक्त टीम ने गिरफ्तार किया है. प्रमोद मिश्रा के साथ उसका सहयोगी अनिल यादव भी पकड़ा गया है. दोनों टिकारी प्रखंड के जरही टोला में अपने रिश्तेदार के घर आए थे. तभी उसे गिरफ्तार कर लिया गया. टॉप माओवादी प्रमोद मिश्रा और ईस्टर्न रिजनल ब्यूरो मिसिर बेसरा के बीच विवाद था. यही वजह है कि वो सारंड के जंगल को छोड़कर यहां वहां भटक रहा था.

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2008 में भी हुई थी गिरफ्तारी : नक्सली प्रमोद मिश्रा को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया है. तब 2008 में भी इसे धनबाद के विनोद नगर मुहल्ले से गिरफ्तार किया गया था. तब ये अपने रिश्तेदार के घर पर था. लगभग 9 साल की कार्रवाई के बाद जेल में बंद प्रमोद मिश्रा को साल 2017 में छपरा कोर्ट से रिहा कर दिया गया था. इसपर छपरा, औरंगाबाद, गया और झारखंड के धनबाद में कुल 22 नक्सली वारदातों के मामले दर्ज थे.

2004 से खूनी डगर पर प्रमोद ! : इसके माओवादी बनने के सफर की शुरूआत साल 2004 से होती है. साल 2004 में ये माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया का शीर्ष नेता था. जब इस कमेटी का गठन हुआ तो प्रमोद को पार्टी ने केंद्रीय समिति का सदस्य बना दिया. यहीं से आगे बढ़ते हुए साल 2007 में ये पोलित ब्यूरो का सदस्य बना. इसकी घोषणा पार्टी की 9वीं कांग्रेस में हुई थी.

कई मामले में नाम शामिल : उसे मजबूत जिम्मेदारी संगठन की ओर से दी गई. इसे पंजाब, जम्मू कश्मीर और हरियाण समेत देश के दूसरे राज्यों में आंदोलन को तेज करने के लिए जिम्मेदारी दी गई. 2006 में इसका नाम यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट की कंट्री रिपोट्स ऑन टेररिज्म में आ चुका था. लेकिन 11 मई 2008 को धनबाद के विनोद नगर से गिरफ्तार हो जाने की वजह से इसकी उड़ान थम गई.

4 लोगों को फांसी पर लटकाने का आरोप : 2017 में साक्ष्य की कमी का फायदा देते हुए छपरा की कोर्ट से बरी कर दिया गया. जेल से छूटते ही फिर से इसने कई राज्यों में नक्सली वारदातों को अंजाम दिया. बिहार के गया में साल 2021 में इसने एक ही परिवार के 4 लोगों को फांसी पर लटका दिया. इसका ये जघन्यतम कुकृत्य था. जिसके बाद इसपर इनाम की राशि बढ़ाई जाने लगी. इसके खिलाफ बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त आंध्र प्रदेश में भी केस दर्ज किए गए थे.

विवाद के चलते धरा गया खूंखार माओवादी : इसकी चाहत ईस्टर्न रिजनल ब्यूरो बनने की थी. हालांकि इसपर मिसिर बेसरा काबिज हो गया. प्रमोद मिश्रा और मिसिर बेसरा के बीच इसको लेकर विवाद था. तब इसका मुख्यालय झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंड में हुआ करता था. लेकिन विवाद के चलते इसे वहां से हटना पड़ा. कुछ लोग इसके और बेसरा के भागने की वजह बिहार-झारखंड सीमा पर हुई कार्रवाई को बताया जाता है.

1 करोड़ के ईनाम का था प्रस्ताव : सारंडा में रहते हुए कई नक्सली वारदात, नरसंहार और माओवादी हमले में प्रमोद मिश्रा का नाम आया था. इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिहार सरकार ने 1 करोड़ रुपए की इनामी राशि इसके माथे पर घोषित करने का प्रस्ताव भी भेज दिया था. लेकिन उससे पहले ही उसे दबोच लिया गया.

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