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जारी रहेगा EWS आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट की मुहर

केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था. आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया.

Supreme Courts verdict on Centers 10 percent EWS quota today
SC में केंद्र के 10 प्रतिशत EWS कोटा को चुनौती वाली याचिकाओं पर फैसला आज
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Published : Nov 7, 2022, 7:13 AM IST

Updated : Nov 7, 2022, 11:36 AM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा है. 5 जजों की बेंच में से चार जजों ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना है. सुप्रीम कोर्ट में इसे मोदी सरकार की बड़ी जीत मानी जा रही है.

दरअसल, केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था. आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 5 जजों की बेंच में तीन जजों ने EWS आरक्षण के समर्थन में फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट और सीजेआई यूयू ललित ने EWS आरक्षण पर अपनी असहमति जताई.

इन तीन जजों ने समर्थन में सुनाया फैसला
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण के फैसले को सही ठहराया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपनी राय सुनाते हुए कहा कि सवाल बड़ा ये था कि क्या EWS आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. क्या इससे SC /ST/ ObC को बाहर रखना मूल भावना के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि EWS कोटा संविधान का उल्लंघन नही करता. EWS आरक्षण सही है. ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा, मैंने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की राय पर सहमति जताई है.

बता दें, शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है. शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे 'पिछले दरवाजे से' आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेलाएम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं. तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है.

दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया. उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

ये भी पढ़ें- महिला आरक्षण विधेयक पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब, 6 हफ्ते की दी मोहलत

शीर्ष अदालत ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की. ‘जनहित अभियान’ द्वारा 2019 में दायर की गई प्रमुख याचिका सहित लगभग सभी याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई थी. केंद्र सरकार ने एक फैसले के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में ईडब्ल्यूएस कोटा कानून को चुनौती देने वाले लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कुछ याचिकाएं दायर की थीं. केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को बरकरार रखा है. 5 जजों की बेंच में से चार जजों ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना है. सुप्रीम कोर्ट में इसे मोदी सरकार की बड़ी जीत मानी जा रही है.

दरअसल, केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था. आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 5 जजों की बेंच में तीन जजों ने EWS आरक्षण के समर्थन में फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट और सीजेआई यूयू ललित ने EWS आरक्षण पर अपनी असहमति जताई.

इन तीन जजों ने समर्थन में सुनाया फैसला
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण के फैसले को सही ठहराया. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपनी राय सुनाते हुए कहा कि सवाल बड़ा ये था कि क्या EWS आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. क्या इससे SC /ST/ ObC को बाहर रखना मूल भावना के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि EWS कोटा संविधान का उल्लंघन नही करता. EWS आरक्षण सही है. ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा, मैंने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की राय पर सहमति जताई है.

बता दें, शीर्ष अदालत ने सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी सवाल पर 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है. शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलीलें रखी थीं और ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए इसे 'पिछले दरवाजे से' आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया था.

पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेलाएम त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं. तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण का आधार नहीं हो सकता है और शीर्ष अदालत को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा यदि वह इस आरक्षण को बनाए रखने का फैसला करता है.

दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि इसके तहत प्रदान किया गया आरक्षण अलग है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया. उन्होंने कहा था कि इसलिए, संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.

ये भी पढ़ें- महिला आरक्षण विधेयक पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब, 6 हफ्ते की दी मोहलत

शीर्ष अदालत ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की. ‘जनहित अभियान’ द्वारा 2019 में दायर की गई प्रमुख याचिका सहित लगभग सभी याचिकाओं में संविधान संशोधन (103वां) अधिनियम 2019 की वैधता को चुनौती दी गई थी. केंद्र सरकार ने एक फैसले के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में ईडब्ल्यूएस कोटा कानून को चुनौती देने वाले लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कुछ याचिकाएं दायर की थीं. केंद्र ने 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम से दाखिले और सरकारी सेवाओं में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Nov 7, 2022, 11:36 AM IST
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