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जेलों में बंद कैदियों की मदद करें सरकार व न्यायपालिका : राष्ट्रपति मुर्मू

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को उन कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला जो 20-25 साल या अपना पूरा जीवन जेल में बिता देते हैं. ऐसे कैदियों के पास सीमित संसाधन और अपनी रिहाई का कोई इंतजाम नहीं कर पाने की वजह से उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ती है.

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Published : Nov 26, 2022, 7:45 PM IST

नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को उन कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला जो 20-25 साल या अपना पूरा जीवन जेल में बिता देते हैं. ऐसे कैदियों के पास सीमित संसाधन और अपनी रिहाई का कोई इंतजाम नहीं कर पाने की वजह से उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ती है. राष्ट्रपति मुर्मू ने संविधान दिवस समारोह में संबोधित कर कहा कि जब वह विधायक थीं, तब उन्हें होम स्टैंडिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था और कैदियों की हालत देखने के लिए उन्होंने राज्य भर में दौरा किया था. वह जेलों का दौरा कीं और फिर स्थिति को सुधारने के लिए बैठकें भी कीं. इस सब के बाद चीजें वैसी बेहतर नहीं कर पायीं जैसा उन्होंने सोचा था.

उन्होंने कहा कि जेल में लोग अपने मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों से अनभिज्ञ होते हैं और संसाधनों की कमी के कारण उन्हें छुड़ाने कोई नहीं आता. इसके अलावा उन्हें समाज के तानों और हेय दृष्टि का डर भी होने लगता है. उन्होंने न्यायपालिका और सरकार से इस बारे में विचार करने और ऐसे लोगों की मदद करने का आग्रह किया. उन्होंने महिलाओं की भूमिका को भी सामने रखा.

उन्होंने कहा कि हालांकि, चीजों में सुधार हुआ है, लेकिन संतुष्ट होने का कोई कारण नहीं है. राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, "मैं न्यायपालिका से महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का आग्रह करती हूं." अपनी जीवन यात्रा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका जन्म गांव में हुआ जहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं होती थी और डॉक्टरों, शिक्षकों और वकीलों को भगवान माना जाता है.

नई दिल्ली : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को उन कैदियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला जो 20-25 साल या अपना पूरा जीवन जेल में बिता देते हैं. ऐसे कैदियों के पास सीमित संसाधन और अपनी रिहाई का कोई इंतजाम नहीं कर पाने की वजह से उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ती है. राष्ट्रपति मुर्मू ने संविधान दिवस समारोह में संबोधित कर कहा कि जब वह विधायक थीं, तब उन्हें होम स्टैंडिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था और कैदियों की हालत देखने के लिए उन्होंने राज्य भर में दौरा किया था. वह जेलों का दौरा कीं और फिर स्थिति को सुधारने के लिए बैठकें भी कीं. इस सब के बाद चीजें वैसी बेहतर नहीं कर पायीं जैसा उन्होंने सोचा था.

उन्होंने कहा कि जेल में लोग अपने मौलिक अधिकारों, मौलिक कर्तव्यों से अनभिज्ञ होते हैं और संसाधनों की कमी के कारण उन्हें छुड़ाने कोई नहीं आता. इसके अलावा उन्हें समाज के तानों और हेय दृष्टि का डर भी होने लगता है. उन्होंने न्यायपालिका और सरकार से इस बारे में विचार करने और ऐसे लोगों की मदद करने का आग्रह किया. उन्होंने महिलाओं की भूमिका को भी सामने रखा.

उन्होंने कहा कि हालांकि, चीजों में सुधार हुआ है, लेकिन संतुष्ट होने का कोई कारण नहीं है. राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, "मैं न्यायपालिका से महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का आग्रह करती हूं." अपनी जीवन यात्रा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका जन्म गांव में हुआ जहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं होती थी और डॉक्टरों, शिक्षकों और वकीलों को भगवान माना जाता है.

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