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सम्राट अशोक के शिलालेख पर बनी मजार, 20 साल में 2300 वर्षों का इतिहास बदलने के खिलाफ BJP देगी धरना

2300 साल पहले सम्राट अशोक ने रोहतास के चंदन पहाड़ी पर एक लघु शिलालेख (Inscription Of Emperor Ashoka) स्थापित किया जिसका उद्देश्य 'धम्म प्रचार' के 256 दिन (बौद्ध धर्म) पूरे होने पर एक संदेश था लेकिन 2002 तक आते आते अब इसका रंग बदल चुका है. शिलालेख अब कजरिया बाबा की मजार बन गई है. यह बौद्ध धर्म की जगह मुस्लिम समुदाय का प्रतीक बनकर रह गई है. आखिर ये कैसे और क्यों हुआ पढ़ें.

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Published : Sep 29, 2022, 9:40 PM IST

रोहतास: बिहार के रोहतास से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इतिहास को ही बदलने की कोशिश कर डाली है और साथ ही कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. दरअसल रोहतास की चंदन पहाड़ी ( Inscription Of Emperor Ashoka On Chandan Hill) में स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार (Mazar Built On Inscription Of Emperor Ashoka) बना दिया गया है. पूरे देश में अशोक के ऐसे आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है. इस शिलालेख को चूने से पोत दिया गया है और अब चादर चढ़ाई जाती है.

पढ़ें- सासाराम में अशोक के शिलालेख पर बने मजार नहीं हटे तो BJP करेगी आंदोलन- हरिभूषण ठाकुर बचौल

सम्राट अशोक के शिलालेख को बना दिया मजार: वहीं सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने शिलालेख को अतिक्रमण कर मजार बना दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. स्थानीय बुद्धिजीवियों से लेकर अन्य लोगों ने इसे जल्द से जल्द अतिक्रमणमुक्त कराने की मांग की है. दरअसल सासाराम के चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को कजरिया बाबा का मजार बता कर उसे एक ताले में बंद कर दिया गया है.

"साल 2002 में उसमें लोहे का गेट लगा. उसका कारण था कि कुछ लोगों ने कहा कि इसमें कजरिया बाबा की समाधि है. नवंबर 1875 ई में अलेक्जैंडर कन्निघम भारत आए थे उन्होंने अपनी पुस्तक में इस शिलालेख का जिक्र किया है. कई भाषाओं में इसका ट्रांसलेशन किया गया है. 20 साल पहले तक सबके लिए यह शिलालेख सुलभ था. अभी वर्तमान में बिहार में एक और शिलालेख कैमूर में मिला है. सम्राट अशोक के शिलालेख पर चूना पोतकर धूमिल कर दिया गया है."- डॉ. राजेंद्र सिंह,शिक्षाविद व प्रोफेसर, SP जैन कालेज, सासाराम

क्या है विवाद: 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने रोहतास के मुख्‍यालय सासाराम शहर पर एक शिलालेख उत्कीर्ण कराया था. यह शिलालेख पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य स्थित कैमूर पहाड़ी में अवस्थित है. ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे देश में ऐसे मात्र आठ शिलालेख हैं. बिहार में यह एकमात्र शिलालेख है. फिर भी सरकार और शासन के नाक के नीचे 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 20 साल में मिटा दिया गया. इस दौरान जिला प्रशासन को कई बार पत्र लिख कर बताया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. वर्ष 2008, 2012 और 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन DM ने SDM सासाराम को निर्देशित किया था. तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना. आज यहां बड़ी इमारत बन गई है. अब कोई पर्यटक या शोधकर्ता चाहकर भी इस शिलालेख को नहीं देख सकता है क्योंकि यहां एक लोहे की गेट लगवा दी गई है जिसमें ताला लगा रहता है.

कई पुस्तकों में है इस शिलालेख का जिक्र: दरअसल जिला मुख्यालय सासाराम स्थित चंदन पहाड़ी पर स्थित ईसा पूर्व 300 साल पुराना सम्राट अशोक का लघु शिलालेख अधिक्रमित है. उसे कजरिया बाबा का मजार घोषित किया जा रहा है. कुछ लोगों ने इस शिलालेख के ऊपर हरे रंग की चादर चढ़ा दी है और उसके आगे गेट लगाकर ताला बंद कर दिया है. स्थानीय बुद्धिजीवियों ने भी अपने अपने विचार दिए हैं. उनका कहना है कि 1875 में ही अलेक्ज़ैंडर कन्निघम जब भारत यात्रा पर आए थे, उस समय उसने इस शिलालेख को देखा था. उन्होंने अपनी पुस्तक में भी इसे वर्णित किया था. विश्व इतिहास कि यह एक धरोहर है और दुनिया के कई शोधकर्ता एवं इतिहासकारों ने अपने अपने किताबों में इसे स्थान दिया है. साथ ही इस शिलालेख में अंकित शब्दों को पढ़ा भी गया है. जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव की बात लिखी गई है.

'सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना': वहीं इस मामले पर जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU parliamentary board chairman Upendra Kushwaha) ने ट्वीट किया है. उन्होंने कहा हा कि सासाराम अवस्थित सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना है. अबतक इसका निपटारा न होना अफसोसजनक है लेकिन अब जल्दी ही हो जाएगा.

"यह विवाद काफी पुराना है. अबतक निपटारा नहीं होना अफसोसजनक. जिला अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों से मैंने बात की है. सभी ने आश्वस्त किया है. केन्द्र सरकार से भी अपेक्षा है कि इसके विकास की समग्र योजना बनाए."- उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष

कई बार सरकार को पत्राचार कर दी गई जानकारी: एसपी जैन कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष और इस इलाके पौराणिक गतिविधियों पर शोध कर रहे डॉ. राजेंद्र सिंह का कहना है कि वर्ष 2002 में ही कुछ लोगों ने उसे अतिक्रमित कर 'कजरिया बाबा' का मजार बना दिया. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के द्वारा कई बार बिहार सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को पत्राचार किया गया लेकिन कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया जा सका.

कटघरे में स्थानीय प्रशासन: वहीं एसपी जैन कॉलेज के प्रोफेसर और इस शिलालेख के संबंध में विशेष जानकारी रखने वाले अलाउद्दीन अजीजी का कहना है कि उसी पहाड़ पर चंद-तन पीर की मजार भी है लेकिन जब से उसकी देखरेख कुछ गलत लोगों के हाथों में चली गई तब से जबरन शिलालेख को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. शिलालेख को चूना से पोत कर मजार घोषित किया जा रहा है जबकि ऐसी कोई बात नहीं है. उन्होंने स्थानीय प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा किया है. अलाउद्दीन अजीजी ने कहा कि यह हम सब की जवाबदेही है कि 2300 साल पुराने इतिहास को सहेजा जा सके. इस्लाम तो 1400 साल पहले आया, जबकि यह शिलालेख 2300 पुराना है.

"इसका मजार से कोई वास्ता नहीं है. अप्रिय तत्वों ने यह तमाशा खड़ा किया है लेकिन सरकार और पुरातात्विक विभाग भी इसको लेकर सक्रिय नहीं है. कोई कैसे ताला लगा सकता है. सरकार ताला तुड़वा दे. शिलालेख की हिफाजत होनी चाहिए."- अलाउद्दीन अजीजी, शिक्षाविद व प्रोफेसर, SP जैन कालेज, सासाराम

1 अक्टूबर को बीजेपी देगी धरना: ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के इतने बड़े स्थल के प्रति प्रशासनिक उदासीनता देखने को मिल रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता व बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी (BJP Leader Samrat Choudhary ) ने शिलालेख को मजार बना दिए जाने पर आपत्ति व्यक्त की है. उन्होंने घोषणा की है कि 1 अक्टूबर को वह सासाराम जाएंगे और शिलालेख को मुक्त कराने के लिए खुद धरने पर बैठेंगे. जब से लालू-नीतीश की सरकार बनी, तब से शिलालेखों पर तालाबंदी हो रही है. इन्हीं की शह पर आज दूसरे समुदाय के लोगों ने शिलालेखों पर कब्जा कर तालाबंदी करने का काम किया है, जिसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.

"सरकार तुष्टीकरण की नीति अपना रही है. भारत सरकार के द्वारा कई बार पत्राचार के बावजूद स्थानीय प्रशासन लापरवाही बरत रही है. सम्राट अशोक के शिलालेख के अस्तित्व पर संकट आ गया है. 1 अक्टूबर को हम सासाराम जाएंगे और शिलालेख को मुक्त कराने के लिए खुद धरने पर बैठेंगे."- सम्राट चौधरी, नेता प्रतिपक्ष, बिहार विधान परिषद



2300 साल पुरानी विरासत पर अतिक्रमण: बहरहाल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा बार-बार पत्राचार के बावजूद स्थानीय प्रशासन इस पर काम करना नहीं चाहती. वर्षों पहले एएसआई द्वारा लगाए गए बोर्ड को भी लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया है. आज चक्रवर्ती सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर संकट दिख रहा है. जिसे उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लिखवाया था.


रोहतास: बिहार के रोहतास से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने इतिहास को ही बदलने की कोशिश कर डाली है और साथ ही कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं. दरअसल रोहतास की चंदन पहाड़ी ( Inscription Of Emperor Ashoka On Chandan Hill) में स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के ऐतिहासिक शिलालेख पर मजार (Mazar Built On Inscription Of Emperor Ashoka) बना दिया गया है. पूरे देश में अशोक के ऐसे आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है. इस शिलालेख को चूने से पोत दिया गया है और अब चादर चढ़ाई जाती है.

पढ़ें- सासाराम में अशोक के शिलालेख पर बने मजार नहीं हटे तो BJP करेगी आंदोलन- हरिभूषण ठाकुर बचौल

सम्राट अशोक के शिलालेख को बना दिया मजार: वहीं सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने शिलालेख को अतिक्रमण कर मजार बना दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है. स्थानीय बुद्धिजीवियों से लेकर अन्य लोगों ने इसे जल्द से जल्द अतिक्रमणमुक्त कराने की मांग की है. दरअसल सासाराम के चंदन पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख को कजरिया बाबा का मजार बता कर उसे एक ताले में बंद कर दिया गया है.

"साल 2002 में उसमें लोहे का गेट लगा. उसका कारण था कि कुछ लोगों ने कहा कि इसमें कजरिया बाबा की समाधि है. नवंबर 1875 ई में अलेक्जैंडर कन्निघम भारत आए थे उन्होंने अपनी पुस्तक में इस शिलालेख का जिक्र किया है. कई भाषाओं में इसका ट्रांसलेशन किया गया है. 20 साल पहले तक सबके लिए यह शिलालेख सुलभ था. अभी वर्तमान में बिहार में एक और शिलालेख कैमूर में मिला है. सम्राट अशोक के शिलालेख पर चूना पोतकर धूमिल कर दिया गया है."- डॉ. राजेंद्र सिंह,शिक्षाविद व प्रोफेसर, SP जैन कालेज, सासाराम

क्या है विवाद: 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने रोहतास के मुख्‍यालय सासाराम शहर पर एक शिलालेख उत्कीर्ण कराया था. यह शिलालेख पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य स्थित कैमूर पहाड़ी में अवस्थित है. ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे देश में ऐसे मात्र आठ शिलालेख हैं. बिहार में यह एकमात्र शिलालेख है. फिर भी सरकार और शासन के नाक के नीचे 2300 साल पुरानी विरासत को मात्र 20 साल में मिटा दिया गया. इस दौरान जिला प्रशासन को कई बार पत्र लिख कर बताया गया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. वर्ष 2008, 2012 और 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन DM ने SDM सासाराम को निर्देशित किया था. तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना. आज यहां बड़ी इमारत बन गई है. अब कोई पर्यटक या शोधकर्ता चाहकर भी इस शिलालेख को नहीं देख सकता है क्योंकि यहां एक लोहे की गेट लगवा दी गई है जिसमें ताला लगा रहता है.

कई पुस्तकों में है इस शिलालेख का जिक्र: दरअसल जिला मुख्यालय सासाराम स्थित चंदन पहाड़ी पर स्थित ईसा पूर्व 300 साल पुराना सम्राट अशोक का लघु शिलालेख अधिक्रमित है. उसे कजरिया बाबा का मजार घोषित किया जा रहा है. कुछ लोगों ने इस शिलालेख के ऊपर हरे रंग की चादर चढ़ा दी है और उसके आगे गेट लगाकर ताला बंद कर दिया है. स्थानीय बुद्धिजीवियों ने भी अपने अपने विचार दिए हैं. उनका कहना है कि 1875 में ही अलेक्ज़ैंडर कन्निघम जब भारत यात्रा पर आए थे, उस समय उसने इस शिलालेख को देखा था. उन्होंने अपनी पुस्तक में भी इसे वर्णित किया था. विश्व इतिहास कि यह एक धरोहर है और दुनिया के कई शोधकर्ता एवं इतिहासकारों ने अपने अपने किताबों में इसे स्थान दिया है. साथ ही इस शिलालेख में अंकित शब्दों को पढ़ा भी गया है. जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक सद्भाव की बात लिखी गई है.

'सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना': वहीं इस मामले पर जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (JDU parliamentary board chairman Upendra Kushwaha) ने ट्वीट किया है. उन्होंने कहा हा कि सासाराम अवस्थित सम्राट अशोक शिलालेख से संबंधित विवाद काफी पुराना है. अबतक इसका निपटारा न होना अफसोसजनक है लेकिन अब जल्दी ही हो जाएगा.

"यह विवाद काफी पुराना है. अबतक निपटारा नहीं होना अफसोसजनक. जिला अधिकारी सहित अन्य अधिकारियों से मैंने बात की है. सभी ने आश्वस्त किया है. केन्द्र सरकार से भी अपेक्षा है कि इसके विकास की समग्र योजना बनाए."- उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष

कई बार सरकार को पत्राचार कर दी गई जानकारी: एसपी जैन कॉलेज के हिंदी के विभागाध्यक्ष और इस इलाके पौराणिक गतिविधियों पर शोध कर रहे डॉ. राजेंद्र सिंह का कहना है कि वर्ष 2002 में ही कुछ लोगों ने उसे अतिक्रमित कर 'कजरिया बाबा' का मजार बना दिया. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के द्वारा कई बार बिहार सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को पत्राचार किया गया लेकिन कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया जा सका.

कटघरे में स्थानीय प्रशासन: वहीं एसपी जैन कॉलेज के प्रोफेसर और इस शिलालेख के संबंध में विशेष जानकारी रखने वाले अलाउद्दीन अजीजी का कहना है कि उसी पहाड़ पर चंद-तन पीर की मजार भी है लेकिन जब से उसकी देखरेख कुछ गलत लोगों के हाथों में चली गई तब से जबरन शिलालेख को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. शिलालेख को चूना से पोत कर मजार घोषित किया जा रहा है जबकि ऐसी कोई बात नहीं है. उन्होंने स्थानीय प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा किया है. अलाउद्दीन अजीजी ने कहा कि यह हम सब की जवाबदेही है कि 2300 साल पुराने इतिहास को सहेजा जा सके. इस्लाम तो 1400 साल पहले आया, जबकि यह शिलालेख 2300 पुराना है.

"इसका मजार से कोई वास्ता नहीं है. अप्रिय तत्वों ने यह तमाशा खड़ा किया है लेकिन सरकार और पुरातात्विक विभाग भी इसको लेकर सक्रिय नहीं है. कोई कैसे ताला लगा सकता है. सरकार ताला तुड़वा दे. शिलालेख की हिफाजत होनी चाहिए."- अलाउद्दीन अजीजी, शिक्षाविद व प्रोफेसर, SP जैन कालेज, सासाराम

1 अक्टूबर को बीजेपी देगी धरना: ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के इतने बड़े स्थल के प्रति प्रशासनिक उदासीनता देखने को मिल रही है. वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता व बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी (BJP Leader Samrat Choudhary ) ने शिलालेख को मजार बना दिए जाने पर आपत्ति व्यक्त की है. उन्होंने घोषणा की है कि 1 अक्टूबर को वह सासाराम जाएंगे और शिलालेख को मुक्त कराने के लिए खुद धरने पर बैठेंगे. जब से लालू-नीतीश की सरकार बनी, तब से शिलालेखों पर तालाबंदी हो रही है. इन्हीं की शह पर आज दूसरे समुदाय के लोगों ने शिलालेखों पर कब्जा कर तालाबंदी करने का काम किया है, जिसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.

"सरकार तुष्टीकरण की नीति अपना रही है. भारत सरकार के द्वारा कई बार पत्राचार के बावजूद स्थानीय प्रशासन लापरवाही बरत रही है. सम्राट अशोक के शिलालेख के अस्तित्व पर संकट आ गया है. 1 अक्टूबर को हम सासाराम जाएंगे और शिलालेख को मुक्त कराने के लिए खुद धरने पर बैठेंगे."- सम्राट चौधरी, नेता प्रतिपक्ष, बिहार विधान परिषद



2300 साल पुरानी विरासत पर अतिक्रमण: बहरहाल भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा बार-बार पत्राचार के बावजूद स्थानीय प्रशासन इस पर काम करना नहीं चाहती. वर्षों पहले एएसआई द्वारा लगाए गए बोर्ड को भी लोगों ने उखाड़ कर फेंक दिया है. आज चक्रवर्ती सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर संकट दिख रहा है. जिसे उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लिखवाया था.


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