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इस गांव में बाढ़ से बचाव के लिए ग्रामीण तैयार रखते हैं खुद की नाव...

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Published : Jul 8, 2022, 8:24 PM IST

गोरखपुर में एक ऐसा गांव है, जहां बाढ़ से बचाव के लिए ग्रामीण घर में खुद की नाव रखते हैं. इतना ही नहीं, जिला प्रशासन भी इनकी नाव से मदद लेता है और उसके बदले में नाविकों को किराया भी दिया जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने एडीएम राजेश कुमार सिंह से जाना कैसे ग्रामीण करते हैं बाढ़ से अपना बचाव.

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बहरामपुर गांव

गोरखपुर: बाढ़ की आपदा से निपटने में जिले का एक गांव खुद में ही सक्षम है. राप्ती नदी के किनारे बहरामपुर गांव नदी के उत्तरी और दक्षिणी दो टोले में बटा हुआ है. यह हर वर्ष बाढ़ की चपेट में आता है. तेज बारिश से नदी का जलस्तर जैसे ही बढ़ता है तो नदी के किनारे के इस गांव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है. लोगों को अपने ठिकाने के लिए नदी के बंधे का सहारा लेना पड़ता है.

इसके बाद भी ग्रामीणों को अपनी सुरक्षा और सामानों के बचाव के लिए नाव की जरूरत पड़ती है. उसी के चलते ग्रामीण प्रशासन की वजह खुद पर ही निर्भर हो गए हैं. इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां के हरेक घर बड़ी-छोटी नाव मौजूद है. लोगों ने बताया है कि उनके गांव में करीब 50 नाव मदद के लिए मौजूद हैं.

गांव के हर घर में मौजूद है नाव.

गांव के हर घर में मौजूद है नाव: जुलाई और अगस्त के महीने में यह क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आता है. इसके चलते बहरामपुर गांव में लोग अपनी नाव की मरम्मत कर उसे दुरुस्त करने में जुट गए हैं और ग्रामीण मोर्चाबंदी के लिए अब तैयार हो रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों से जानकारी ली. उन्होंने बताया कि एक नाव की मरम्मत पर करीब 2 हजार रुपये का खर्च आता है. ग्रामीण इसके लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहते हैं. वहीं, जिला प्रशासन भी बाढ़ से बचाव की तैयारियों में जुट गया है. अपर जिलाधिकारी वित्त और राजस्व राजेश कुमार सिंह के ऊपर सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी है. उन्होंने बताया कि जिले में छोटी-बड़ी करीब 270 नावें हैं, जिनकी लिस्ट तैयार कर ली गई है. इनके नाविकों को भी तैयार कर लिया गया. बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए नाव की कमी नहीं होने पाएगी और न ही नाविकों की.

यह भी पढ़ें: श्री राम एयरपोर्ट के निर्माण की समय-सीमा बढ़ी, अब 2023 तक बनकर होगा तैयार

अपर जिलाधिकारी राजेश कुमार सिंह ने आगे कहा, कि जिनसे भी नाव ली जाती है उसका उन्हें किराया दिया जाता है. नाविक को भी पारिश्रमिक मिलता है. वहीं, बहरामपुर गांव में लोग निजी तौर पर नाव रखते हैं और उसके संचालन करते हैं. इस क्षेत्र में निषाद समाज के लोग जो मछुआरा और मत्स्य पालन जैसे कार्यों में लगे होते हैं. यहां के सभी ग्रामीण अपनी नाव तैयार रखते हैं. बाढ़ बचाओ और खुद की सुरक्षा में उस नाव का उपयोग करते हैं. अगर इन नाविकों से मदद ली जाती है तो उसका इन्हें किराया भी दिया जाता है. उन्होंने कहा कि गोरखपुर की आकृति एक कटोरी जैसी है. पहाड़ी नदियों से होकर आने वाला पानी यहां बहाव की जगह विस्तार और फैलाव लेता है, जो बाढ़ का कारण बनता है. नदी का दायरा भी यहां काफी लंबा है. इसी के चलते सभी तैयारियों को मुकम्मल किया गया है.

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गोरखपुर: बाढ़ की आपदा से निपटने में जिले का एक गांव खुद में ही सक्षम है. राप्ती नदी के किनारे बहरामपुर गांव नदी के उत्तरी और दक्षिणी दो टोले में बटा हुआ है. यह हर वर्ष बाढ़ की चपेट में आता है. तेज बारिश से नदी का जलस्तर जैसे ही बढ़ता है तो नदी के किनारे के इस गांव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है. लोगों को अपने ठिकाने के लिए नदी के बंधे का सहारा लेना पड़ता है.

इसके बाद भी ग्रामीणों को अपनी सुरक्षा और सामानों के बचाव के लिए नाव की जरूरत पड़ती है. उसी के चलते ग्रामीण प्रशासन की वजह खुद पर ही निर्भर हो गए हैं. इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां के हरेक घर बड़ी-छोटी नाव मौजूद है. लोगों ने बताया है कि उनके गांव में करीब 50 नाव मदद के लिए मौजूद हैं.

गांव के हर घर में मौजूद है नाव.

गांव के हर घर में मौजूद है नाव: जुलाई और अगस्त के महीने में यह क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आता है. इसके चलते बहरामपुर गांव में लोग अपनी नाव की मरम्मत कर उसे दुरुस्त करने में जुट गए हैं और ग्रामीण मोर्चाबंदी के लिए अब तैयार हो रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने ग्रामीणों से जानकारी ली. उन्होंने बताया कि एक नाव की मरम्मत पर करीब 2 हजार रुपये का खर्च आता है. ग्रामीण इसके लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहते हैं. वहीं, जिला प्रशासन भी बाढ़ से बचाव की तैयारियों में जुट गया है. अपर जिलाधिकारी वित्त और राजस्व राजेश कुमार सिंह के ऊपर सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी है. उन्होंने बताया कि जिले में छोटी-बड़ी करीब 270 नावें हैं, जिनकी लिस्ट तैयार कर ली गई है. इनके नाविकों को भी तैयार कर लिया गया. बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए नाव की कमी नहीं होने पाएगी और न ही नाविकों की.

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अपर जिलाधिकारी राजेश कुमार सिंह ने आगे कहा, कि जिनसे भी नाव ली जाती है उसका उन्हें किराया दिया जाता है. नाविक को भी पारिश्रमिक मिलता है. वहीं, बहरामपुर गांव में लोग निजी तौर पर नाव रखते हैं और उसके संचालन करते हैं. इस क्षेत्र में निषाद समाज के लोग जो मछुआरा और मत्स्य पालन जैसे कार्यों में लगे होते हैं. यहां के सभी ग्रामीण अपनी नाव तैयार रखते हैं. बाढ़ बचाओ और खुद की सुरक्षा में उस नाव का उपयोग करते हैं. अगर इन नाविकों से मदद ली जाती है तो उसका इन्हें किराया भी दिया जाता है. उन्होंने कहा कि गोरखपुर की आकृति एक कटोरी जैसी है. पहाड़ी नदियों से होकर आने वाला पानी यहां बहाव की जगह विस्तार और फैलाव लेता है, जो बाढ़ का कारण बनता है. नदी का दायरा भी यहां काफी लंबा है. इसी के चलते सभी तैयारियों को मुकम्मल किया गया है.

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