लखनऊ: देश के आठवें प्रधानमंत्री रहे वीपी सिंह की आज पुण्यतिथि है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का उन्होंने बड़ा कदम उठाया. रिपोर्ट लागू हुई तो देशभर में उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन वह सामाजिक न्याय के लिए लागू की गई मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लेकर पीछे नहीं हटे. इसके अलावा भी कई अन्य फैसलों को लेकर उनकी चर्चा आज भी होती है.
इलाहाबाद के राजघराने परिवार से था ताल्लुक
पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून, 1931 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) के राजघराने वाले परिवार में हुआ था. वह छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रखते थे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ में भी वे पदाधिकारी रहे.
वर्ष 1961 में कांग्रेस से जुड़े, 1980 में बने यूपी के सीएम
वीपी सिंह राजनीति में प्रवेश करने के समय सन् 1961 में कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए थे. वह 1969 में विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. इसके बाद वीपी सिंह 1980 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. अपने कामकाज करने के तरीके से वह लोगों की पसंद बनते चले गए. गरीबों के मसीहा के रूप में उन्होंने काम किया.
सीएम रहते वीपी सिंह ने डाकुओं के सफाए का चलाया था अभियान
अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने डाकुओं के खात्मे का संकल्प लिया. डाकुओं के खिलाफ उनके द्वारा चलाए गए अभियान का असर था कि कई महत्वपूर्ण डाकूओं ने आत्मसमर्पण किया था, जिसमें फूलन देवी का नाम उल्लेखनीय है. इसके बाद 28 जून 1982 तक वे मुख्यमंत्री रहे.
राजीव गांधी से शुरू हुआ था टकराव
इसके बाद वीपी सिंह 29 जनवरी, 1983 को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री बने. विश्वनाथ प्रताप सिंह राज्यसभा के भी सदस्य रहे. 01 दिसंबर, 1984 को वित्त मंत्री बने थे. यह वह दौर था, जब उनका तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ टकराव शुरू हो गया था और यहीं से उन्होंने कांग्रेस की मुखालिफत करनी शुरू कर दी. उस दौरान वीपी सिंह को सूचना मिली कि भारतीयों द्वारा विदेशी बैंकों में काफी मात्रा में पैसा जमा करवाया जा रहा है.
अमेरिका की संस्था को दिया था जासूसी का काम
इसके बाद उन्होंने अमेरिका की एक संस्था को इसकी जासूसी का काम दिया, जिससे यह पता लगाया जा सके कि पैसा किसका लगा है. इस पूरे घटनाक्रम के बाद घोटाला सामने आया और राजीव गांधी सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया.
1989 में कांग्रेस से अलग हुए और पीएम बने
इसके बाद 1989 के चुनाव हुए और वीपी सिंह ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाया और चुनाव मैदान में उतरे. चुनाव में सफलता मिली और वह दो दिसंबर, 1982 को देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने उस मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर दी, जिसे पूर्ववर्ती सरकार लागू करने से बचती रही. रिपोर्ट लागू होने के बाद उनका देशभर में विरोध हुआ और हिंसा तक हुई.
कहे गए सामाजिक न्याय के मसीहा
प्रधानमंत्री के रूप में वीपी सिंह की छवि एक मजबूत और सामाजिक राजनीतिक दूरदर्शी व्यक्त की थी. उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके देश में वंचित समाज के लोगों को सत्ता में हिस्सेदारी पर मुहर लगा दी थी, जिसका हर तरफ विरोध हुआ, लेकिन वे अपने इस फैसले से पीछे नहीं हटे. 10 नवंबर 1990 तक वे प्रधानमंत्री रहे. 27 नवंबर 2008 को उनका निधन दिल्ली के एक अस्पताल में हो गया.
'सामाजिक न्याय की अवधारणा को लागू किया'
वरिष्ठ पत्रकार राजबहादुर सिंह कहते हैं कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की शख्सियत भारतीय राजनीति के इतिहास में एक अलग प्रकार की शख्सियत है, जिनके जिक्र से आप खुद को अलग नहीं कर सकते. उनका जिक्र आने पर आपको प्रतिक्रिया देनी ही होगी. वह चाहे नकारात्मक या सकारात्मक. एक बात जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता, वह यह है कि सामाजिक न्याय की जिस अवधारणा को उन्होंने धरती पर उतारा, वह मंडल कमीशन को लागू करना था. उसका राजनीतिक लाभ कितना हुआ, यह एक अलग किस्म का विषय है.
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यह सही है कि उन्होंने एक धुन बना दी और उसी पर आज भी राजनीति हो रही है. आगे भी इसी धुन के इर्द-गिर्द राजनीति होती रहेगी. किसी में इतना साहस नहीं हुआ कि इसका विरोध करें. उनकी आलोचना तो लोगों ने की, लेकिन उसी धुन के इर्द-गिर्द चलते रहे. एनडीए सरकार ने प्रमोशन में भी आरक्षण लागू किया, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सही नहीं माना.
'लिए कई उल्लेखनीय फैसले'
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर एसके द्विवेदी कहते हैं कि वीपी सिंह विषद राजनीतिज्ञ थे. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. देश के आठवें प्रधानमंत्री रहे हैं और उनके कार्यकाल में उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं, जिनका मुख्य रूप से जिक्र किया जाना उचित है. जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने डाकुओं के आत्मसमर्पण के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया था और फूलन देवी जैसे डाकू का समर्पण उन्हीं के कार्यकाल के दौरान हुआ था. यह उनकी सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी.
'मिस्टर क्लीन की थी छवि '
प्रोफेसर एसके द्विवेदी कहते हैं कि वीपी सिंह की एक ईमानदार राजनेता की छवि थी. मिस्टर क्लीन के नाम से वे जाने जाते थे. बाद में जब वे केंद्र सरकार में मंत्री थे तो बोफोर्स का मुद्दा सामने आया था. उसी के विरोध में राजीव गांधी सरकार से उन्होंने इस्तीफा दिया था. उसके बाद उन्होंने जनता दल का गठन किया था और 1989 में कांग्रेस विरोधी मुहिम चलाई थी, जिसमें उन्होंने बोफोर्स को मुख्य मुद्दा रखा. इससे उन्हें काफी समर्थन मिला था. चुनाव में सफलता मिली और बाद में बीजेपी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था.
'आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद गिरी थी सरकार'
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर एसके द्विवेदी ने बताया कि बीजेपी के साथ भी इनके मतभेद हो गए थे. आडवाणी की रथ यात्रा को लेकर भी तमाम विरोध हुआ. भाजपा रथ यात्रा निकालना चाहती थी और वीपी सिंह रथ यात्रा के विरोध में थे. फिर आडवाणी की गिरफ्तारी हुई और भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन इनकी जो उपलब्धि थी, वह मंडल कमीशन को लागू करने की रही थी. यह बहुत उल्लेखनीय कार्य था. इनके कार्यकाल के दौरान इसके द्वारा उन्होंने सामाजिक न्याय की स्थापना की थी.
'ठाकुर होकर भी बहुजन नायक के रूप में देखे गए वीपी सिंह'
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि मुझे लगता है कि वीपी सिंह को भारतीय राजनीति में ठाकुर होते हुए भी बहुजन नायक के तौर पर देखा जाता है. इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू नहीं किया था, जिसके बाद 1990 में वीपी सिंह ने जनता दल बनाई. अपने एजेंडे को चुनावी मुद्दा में रखा था. सरकार में आने के बाद उन्होंने इस काम को किया. एक तरह से पूरे भारत की राजनीति में एक बदलाव आ गया था. उसके पहले की सरकार खासकर कांग्रेस की सरकार मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने से बचती आ रही थी.
सामाजिक न्याय के मसीहा हैं वीपी सिंह
प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि भारतीय संविधान में जो आरक्षण का अधिकार था, जिसे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने किया था, लेकिन उस समय ओबीसी के लिए नहीं हो पाया था. बाकी सरकारें उसे लागू करने से बच रहीं थी और उस दौरान की जो खेतिहर जातियां थी, उनकी तरफ से मांग लगातार हो रही थी, लेकिन किसी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया था. बाद में वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए यह बड़ा काम किया था तो वीपी सिंह को आज सामाजिक न्याय के मसीहा के तौर पर देखा जाता है और इससे पूरा राजनीतिक बदलाव हुआ.