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मूल निवासियों के अस्तित्व को बचाने के लिए मनाया जाता है आदिवासी दिवस

विश्व आदिवासी दिवस हर साल नौ अगस्त को मनाया जाता है. आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस दिन को पूरी दुनिया में त्योहार के रूप में मनाया जाता है. कोरोना महामारी के कारण इस अवसर पर लोग ऑनलाइन चर्चाएं कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई है. कैसे आदिवासी समुदाय ने इस पृथ्वी पर अपना वर्चस्व कायम किया...

2020 International Tribal day
विश्व आदिवासी दिवस 2020
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Published : Aug 9, 2020, 4:15 PM IST

Updated : Aug 9, 2020, 7:57 PM IST

हैदराबाद : हर साल नौ अगस्त को आदिवासी समुदाय द्वारा विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. यह दुनिया की स्वदेशी जनता के बारे में जागरुकता पैदा करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए मनाया जाता है.

थीम- इस साल विश्व आदिवासी दिवस की थी है- कोविड-19 और स्वदेशी जनता का लचीलापन.

इतिहास- दुनियाभर में आदिवासी समूह बेरोजगारी, बाल श्रम और अन्य समस्याओं का शिकार हो रहे थे. इसलिए संयुक्त राष्ट्र को आदिवासियों के हालात देखकर यूएनडब्लूजीआईपी (स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह) संगठन बनाने की आवश्यकता पड़ी. दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पहली बार अंतरराष्ट्रीय जनजातीय दिवस मनाने का निर्णय लिया गया और साल 1982 में स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने के लिए चिह्नित किया गया.

कौन हैं स्वदेशी लोग?
स्वदेशी लोग एक विशेष स्थान पर रहने वाले मूल निवासी हैं अर्थात आदिवासी लोग उस क्षेत्र के पहले निवासी हैं. उन्होंने अपने क्षेत्र से जुड़ी परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को जिंदा रखा है. अंटार्कटिका को छोड़कर, दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोगों का निवास है. चूंकि इन आदिवासी लोगों को अक्सर धमकियां दी जाती हैं और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर दो हफ्तों में एक स्वदेशी भाषा मिट जाती है. इससे आदिवासी लोगों के जाखिम का पता लगता है. इसलिए, पर्यावण की रक्षा और संरक्षण के लिए उनके महत्व और योगदान को पहचानने के लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है.

भारत में जनजातियां
भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत भारत में जनजातीय समुदायों को मान्यता दी गई है. इसलिए संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त जनजातियों को 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में जाना जाता है. भारत में लगभाग 645 प्रकार की अलग-अलग जनजातियां हैं. हालांकि, इस लेख में हम केवल प्रमुख नामों पर ही ध्यान केंद्रत कर रहे हैं.

कोविड-19 और स्वदेशी लोग
पूरी दुनिया कोरोना महामारी का सामना कर रही है. ऐसे समय में स्वदेशी लोगों और उनके पहचान की रक्षा करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. आदिवासी क्षेत्रों में दुनिया की 80% जैव विविधता पाई जाती है. वह हमें इस बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं कि प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को कैसे पुनर्जीवित किया जाए और भविष्य की महामारियों के जोखिम को कैसे कम किया जाए.

आदिवासी लोग इस महामारी के लिए खुद समाधान की तलाश कर रहे हैं. वह पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं का उपयोग कर रहे हैं, जैसे स्वैच्छिक अलगाव और अपने क्षेत्रों को बंद करना, साथ ही साथ निवारक उपाय भी. एक बार फिर उन्होंने परिस्थितियों को अनुकूलन करने की अपनी क्षमता दिखाई है.

उनकी चुनौतियां, हमारी चुनौतियां हैं

आदिवासी समुदाय पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खराब पहुंच, बीमारियों की उच्च दर, आवश्यक सेवाओं तक पहुंच की कमी, स्वच्छता और अन्य प्रमुख निवारक उपायों, जैसे स्वच्छ पानी, साबुन, कीटाणुनाशक आदि के अभाव का अनुभव कर रहे हैं.

इसी तरह उनके लिए स्थानीय चिकित्सा सुविधाएं अक्सर कम सुविधा और कम स्टाफ वाली होती हैं. यहां तक कि जब आदिवासी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचती भी हैं तो भेदभाव का सामना करना पड़ता है. स्वदेशी भाषाओं में सेवाओं और सुविधाओं को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है जो आदिवासी लोगों की विशिष्ट स्थिति के लिए उपयुक्त है.

जोखिम के बीच भी आदिवासी लोगों की पारंपरिक जीवनशैली उनके लचीलेपन का एक स्रोत है और इस समय संक्रमण के प्रसार को रोकने में खतरा भी पैदा कर सकती है. उदाहरण के लिए, अधिकांश आदिवासी समुदाय विशेष अवसरों जैसे फसलों की कटाई, जन्मदिन आदि को मनाने के लिए नियमित रूप से बड़ी पारंपरिक सभाओं का आयोजन करते हैं. कुछ स्वदेशी समुदाय संयुक्त परिवार के साथ रहते हैं, जो उनके परिवारों, विशेष रूप से बुजुर्गों को जोखिम में डालते हैं.

आदिवासी समुदायों के प्रमुख मुद्दे
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा 2018 में संयुक्त रूप से जारी की गई संक्षिप्त नीति के अनुसार, भारत में आदिवासी समुदाय के लोग तीन गुना अधिक बीमारियों का सामना कर रहे हैं.

  • कोविड-19 सूचना और परीक्षण किट, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
  • खाद्य असुरक्षा, आजीविका और बेरोजगारी को नुकसान
  • लघु वनोपज (एमएफपी) और गैर इमारती लकड़ी के उत्पादन (एनटीएफपी) से आजीविका को नुकसान
  • वन अधिकारों की गैर-मान्यता

आदिवासी समुदाय के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • पृथ्वी पर आदिवासी लोगों की कुल आबादी लगभग 470 मिलियन है. इसके अलावा, दुनिया में 100 से अधिक जनजातियां ऐसी हैं जिनसे कभी संपर्क नहीं हो पाया है.
  • दुनिया में बोली जाने वाली 7,000 भाषाओं में से 4,000 आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती हैं.
  • आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं. वह पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, पक्षियों और जानवरों की उपासना करते हैं. वह इस प्रकार अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ रहते हैं और उनका पारिस्थितिक ज्ञान बहुत अच्छा है.
  • जनजातीय लोगों ने जीने का असाधारण कौशल विकसित किया है. यह जानकर आश्चर्य होता है कि अंडमान की जनजातियां साल 2004 की सुनामी से प्रभावित नहीं हुई थीं. इस दौरान वह तुरंत ऊंचे मैदान में पहुंच गए जिससे उनकी जान बच गई. इस घटना से उनके ज्ञान का पता लगाया जा सकता है.
  • भारत में आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी का 8.6% है. उन्हें भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति के रूप में लक्षित किया गया है.
  • भारत के कुछ आदिवासी समूहों में गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील, संथाल, खासी, गारो, ग्रेट अंडमानी, अंगामी, भूटिया, चेंचू, कोडवा, टोडा, मीना, बिरहोर और कई अन्य शामिल हैं.
  • आदिवासी समुदाय से संबंधित लोग अपने घरों, खेतों और पूजा स्थलों पर झंडा लगाते हैं. वे अन्य समुदायों से अलग सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि को प्रतीक मानते हैं.

भारत के विभिन्न राज्यों में आदिवासी आबादी
झारखंड- 26.2%, पश्चिम बंगाल- 5.49%, बिहार- 0.99%, सिक्किम- 33.08%, मेघालय- 86.0%, त्रिपुरा- 31.08%, मिजोरम- 94.04%, मणिपुर- 35.01%, नागालैंड- 86.05%, असम- 12.04%, अरुणाचल प्रदेश- 68.08%, उत्तर प्रदेश- 0.07%.

राष्ट्रीय अवकाश की मांग
कुछ दिन पहले आदिवासी समुदाय के लोगों व संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की थी. आदिवासी लोगों के महत्व को देखते हुए, हंसराज मीणा और जनजातीय सेना जैसे कई आदिवासी नेता सरकार से इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने का आग्रह कर रहे हैं.

आदिवासी जन-जीवन पर बाहरी लोगों का प्रभाव
आदिवासी क्षेत्रों में नए लोगों की आमद के कारण उनके सामाजिक संबंधों और जनजातीय विश्वास प्रणालियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. कई समुदायों में, प्रवास के कारण भी बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है. सामाजिक नियंत्रण और अधिकार के पारंपरिक रूप कम प्रभावी हैं क्योंकि आदिवासी लोग अपने नियंत्रण से परे राजनीतिक रूप से आर्थिक बलों पर निर्भर हैं. सामान्य तौर पर, पारंपरिक मुखियाओं के पास अब गांव के मामलों में उनकी भूमिका के लिए आधिकारिक समर्थन नहीं है, हालांकि कई लोग अभी भी ग्रामीणों के मामलों में काफी प्रभाव रखते हैं.

हैदराबाद : हर साल नौ अगस्त को आदिवासी समुदाय द्वारा विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. यह दुनिया की स्वदेशी जनता के बारे में जागरुकता पैदा करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए मनाया जाता है.

थीम- इस साल विश्व आदिवासी दिवस की थी है- कोविड-19 और स्वदेशी जनता का लचीलापन.

इतिहास- दुनियाभर में आदिवासी समूह बेरोजगारी, बाल श्रम और अन्य समस्याओं का शिकार हो रहे थे. इसलिए संयुक्त राष्ट्र को आदिवासियों के हालात देखकर यूएनडब्लूजीआईपी (स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह) संगठन बनाने की आवश्यकता पड़ी. दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पहली बार अंतरराष्ट्रीय जनजातीय दिवस मनाने का निर्णय लिया गया और साल 1982 में स्वदेशी जनसंख्या पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक के दिन को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने के लिए चिह्नित किया गया.

कौन हैं स्वदेशी लोग?
स्वदेशी लोग एक विशेष स्थान पर रहने वाले मूल निवासी हैं अर्थात आदिवासी लोग उस क्षेत्र के पहले निवासी हैं. उन्होंने अपने क्षेत्र से जुड़ी परंपराओं और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को जिंदा रखा है. अंटार्कटिका को छोड़कर, दुनिया के हर महाद्वीप में स्वदेशी लोगों का निवास है. चूंकि इन आदिवासी लोगों को अक्सर धमकियां दी जाती हैं और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उनके अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर दो हफ्तों में एक स्वदेशी भाषा मिट जाती है. इससे आदिवासी लोगों के जाखिम का पता लगता है. इसलिए, पर्यावण की रक्षा और संरक्षण के लिए उनके महत्व और योगदान को पहचानने के लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है.

भारत में जनजातियां
भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत भारत में जनजातीय समुदायों को मान्यता दी गई है. इसलिए संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त जनजातियों को 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में जाना जाता है. भारत में लगभाग 645 प्रकार की अलग-अलग जनजातियां हैं. हालांकि, इस लेख में हम केवल प्रमुख नामों पर ही ध्यान केंद्रत कर रहे हैं.

कोविड-19 और स्वदेशी लोग
पूरी दुनिया कोरोना महामारी का सामना कर रही है. ऐसे समय में स्वदेशी लोगों और उनके पहचान की रक्षा करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. आदिवासी क्षेत्रों में दुनिया की 80% जैव विविधता पाई जाती है. वह हमें इस बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं कि प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को कैसे पुनर्जीवित किया जाए और भविष्य की महामारियों के जोखिम को कैसे कम किया जाए.

आदिवासी लोग इस महामारी के लिए खुद समाधान की तलाश कर रहे हैं. वह पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं का उपयोग कर रहे हैं, जैसे स्वैच्छिक अलगाव और अपने क्षेत्रों को बंद करना, साथ ही साथ निवारक उपाय भी. एक बार फिर उन्होंने परिस्थितियों को अनुकूलन करने की अपनी क्षमता दिखाई है.

उनकी चुनौतियां, हमारी चुनौतियां हैं

आदिवासी समुदाय पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खराब पहुंच, बीमारियों की उच्च दर, आवश्यक सेवाओं तक पहुंच की कमी, स्वच्छता और अन्य प्रमुख निवारक उपायों, जैसे स्वच्छ पानी, साबुन, कीटाणुनाशक आदि के अभाव का अनुभव कर रहे हैं.

इसी तरह उनके लिए स्थानीय चिकित्सा सुविधाएं अक्सर कम सुविधा और कम स्टाफ वाली होती हैं. यहां तक कि जब आदिवासी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचती भी हैं तो भेदभाव का सामना करना पड़ता है. स्वदेशी भाषाओं में सेवाओं और सुविधाओं को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है जो आदिवासी लोगों की विशिष्ट स्थिति के लिए उपयुक्त है.

जोखिम के बीच भी आदिवासी लोगों की पारंपरिक जीवनशैली उनके लचीलेपन का एक स्रोत है और इस समय संक्रमण के प्रसार को रोकने में खतरा भी पैदा कर सकती है. उदाहरण के लिए, अधिकांश आदिवासी समुदाय विशेष अवसरों जैसे फसलों की कटाई, जन्मदिन आदि को मनाने के लिए नियमित रूप से बड़ी पारंपरिक सभाओं का आयोजन करते हैं. कुछ स्वदेशी समुदाय संयुक्त परिवार के साथ रहते हैं, जो उनके परिवारों, विशेष रूप से बुजुर्गों को जोखिम में डालते हैं.

आदिवासी समुदायों के प्रमुख मुद्दे
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा 2018 में संयुक्त रूप से जारी की गई संक्षिप्त नीति के अनुसार, भारत में आदिवासी समुदाय के लोग तीन गुना अधिक बीमारियों का सामना कर रहे हैं.

  • कोविड-19 सूचना और परीक्षण किट, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
  • खाद्य असुरक्षा, आजीविका और बेरोजगारी को नुकसान
  • लघु वनोपज (एमएफपी) और गैर इमारती लकड़ी के उत्पादन (एनटीएफपी) से आजीविका को नुकसान
  • वन अधिकारों की गैर-मान्यता

आदिवासी समुदाय के बारे में कुछ रोचक तथ्य

  • पृथ्वी पर आदिवासी लोगों की कुल आबादी लगभग 470 मिलियन है. इसके अलावा, दुनिया में 100 से अधिक जनजातियां ऐसी हैं जिनसे कभी संपर्क नहीं हो पाया है.
  • दुनिया में बोली जाने वाली 7,000 भाषाओं में से 4,000 आदिवासी लोगों द्वारा बोली जाती हैं.
  • आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा करते हैं. वह पहाड़ों, नदियों, पेड़ों, पक्षियों और जानवरों की उपासना करते हैं. वह इस प्रकार अपने प्राकृतिक परिवेश के साथ रहते हैं और उनका पारिस्थितिक ज्ञान बहुत अच्छा है.
  • जनजातीय लोगों ने जीने का असाधारण कौशल विकसित किया है. यह जानकर आश्चर्य होता है कि अंडमान की जनजातियां साल 2004 की सुनामी से प्रभावित नहीं हुई थीं. इस दौरान वह तुरंत ऊंचे मैदान में पहुंच गए जिससे उनकी जान बच गई. इस घटना से उनके ज्ञान का पता लगाया जा सकता है.
  • भारत में आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी का 8.6% है. उन्हें भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति के रूप में लक्षित किया गया है.
  • भारत के कुछ आदिवासी समूहों में गोंड, मुंडा, हो, बोडो, भील, संथाल, खासी, गारो, ग्रेट अंडमानी, अंगामी, भूटिया, चेंचू, कोडवा, टोडा, मीना, बिरहोर और कई अन्य शामिल हैं.
  • आदिवासी समुदाय से संबंधित लोग अपने घरों, खेतों और पूजा स्थलों पर झंडा लगाते हैं. वे अन्य समुदायों से अलग सूर्य, चंद्रमा, तारे आदि को प्रतीक मानते हैं.

भारत के विभिन्न राज्यों में आदिवासी आबादी
झारखंड- 26.2%, पश्चिम बंगाल- 5.49%, बिहार- 0.99%, सिक्किम- 33.08%, मेघालय- 86.0%, त्रिपुरा- 31.08%, मिजोरम- 94.04%, मणिपुर- 35.01%, नागालैंड- 86.05%, असम- 12.04%, अरुणाचल प्रदेश- 68.08%, उत्तर प्रदेश- 0.07%.

राष्ट्रीय अवकाश की मांग
कुछ दिन पहले आदिवासी समुदाय के लोगों व संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की थी. आदिवासी लोगों के महत्व को देखते हुए, हंसराज मीणा और जनजातीय सेना जैसे कई आदिवासी नेता सरकार से इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने का आग्रह कर रहे हैं.

आदिवासी जन-जीवन पर बाहरी लोगों का प्रभाव
आदिवासी क्षेत्रों में नए लोगों की आमद के कारण उनके सामाजिक संबंधों और जनजातीय विश्वास प्रणालियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. कई समुदायों में, प्रवास के कारण भी बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है. सामाजिक नियंत्रण और अधिकार के पारंपरिक रूप कम प्रभावी हैं क्योंकि आदिवासी लोग अपने नियंत्रण से परे राजनीतिक रूप से आर्थिक बलों पर निर्भर हैं. सामान्य तौर पर, पारंपरिक मुखियाओं के पास अब गांव के मामलों में उनकी भूमिका के लिए आधिकारिक समर्थन नहीं है, हालांकि कई लोग अभी भी ग्रामीणों के मामलों में काफी प्रभाव रखते हैं.

Last Updated : Aug 9, 2020, 7:57 PM IST
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