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पूर्वी लद्दाख के दुर्गम इलाकों में कैसे भारतीय सेना ने टैंकों को तैनात किया, जानें

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Published : Jun 30, 2020, 9:14 PM IST

Updated : Jun 30, 2020, 9:22 PM IST

सुदूर पूर्वी लद्दाख जहां ऑक्सीजन के भारी कमी है. क्योंकि उंचाई को देखकर लोगों के होश उड़ जाते हैं. वहां सैकड़ों टी -72 और टी -90 टैंकों को तैनात करना एक विशाल कार्य है, जिसे भारत ने कई वर्षों में पूरा किया है. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की खास रिपोर्ट.

कॉन्सेप्ट इमेज
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नई दिल्ली: हिमालय में स्थित पूर्वी लद्धाख का वह इलाका जहां की रातें बेहद सर्द होती हैं. वहां का वातावरण काफी कष्टकारी होता है. ऐसे में 50 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाले लम्बरिंग टैंक को इलाकों में तैनात करना आसान काम नहीं होता है.

पूर्वी लद्दाख में दो प्रकार की टोपोग्राफी ( प्राकृतिक और आर्टिफिशियल स्थिति) शामिल हैं. एक जो पूरी तरह से बंजर चट्टानी भूमि और दूसरी आसमान को छूती दुर्गम पहाड़ी. भारी बर्फबारी और दुर्गम पहाड़ी दोनों को मिला दें तो यहां के इलाके और भी ज्यादा खतरनाक नजर आते हैं. यहां ठंड का मतलब सिर्फ और सिर्फ आधिक से अधिक ठंड और भारी बर्फबारी है.

वहीं दूसरी ओर यहां ऊंचे पहाड़ों के बीच घाटियां मौजूद हैं. इस क्षेत्र के विशाल मैदान चुशुल या डेमचोक में पठारी मैदान हैं, जो टैंक युद्ध के लिए आदर्श इलाके हैं. यही कारण है कि अन्य हथियार प्लेटफार्मों के साथ भारतीय सेना के लगभग 200 टैंक तैनात हैं जो भारत और चीन के बीच एक सीमा पर चल रही तनावपूर्ण स्थिति के बीच मुख्य केंद्र बने हुए हैं. हालांकि अधिक ऊंचाई पर हैंडलिंग टैंक को उतारने के लिए विमान में 45 टन के टैंक को पैक करना आसान है, यह कहना बेहद सरल है.

गौरतलब है कि 2014 के बाद से लद्दाख में छोटी टैंकों की मौजूदगी थी. इसके बाद 2015 में लेह हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में टैंकों को 11,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर लेकर उड़ान भरना शुरू हुई और वहां से गर्मियों की शुरुआत से पूर्वी लद्दाख में उनकी तैनाती की जगह पहुंचाना शुरू हुआ.

2015-16 में फिर से हमने सिर्फ एक बार ग्लोबमास्टर सी -17 में टी -72 टैंक लेकर उड़ान भरी. बाद में हमने सी -17 में दो टैंक लेकर उड़ान भरी. यह प्रक्रिया एक वर्ष से अधिक समय तक चली.

एक सेवारत वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा कि इस क्षेत्र में T-90 के तैनात किए जाने से हम किसी भी प्रकार के टैंक युद्ध या किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं, यहां टैंक काम में आएंगे. उन्होंने कहा कि यह टैंक पहले भी ऑपरेशन में भी सक्रिय रूप से शामिल थे और अब जो हो रहा है वह भी उसमें भी सक्रिय रहेंगे. यह टैंक अपनी विस्फोटक शक्ति के साथ तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि टी -72 और टी -90 सहित सैकड़ों टैंक अब पूर्वी लद्दाख के अत्यंत ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किए गए हैं. इन टैंको के साथ लगभग 3,000 बख्तरबंद कर्मी भी मौजूद हैं.

भारत में टी -72, टी -90 और अर्जुन टैंक का मिश्रण है. रूसी टी -72 टैंकों पर तीन दशकों से अधिक समय तक चलने वाले भारत का मुख्य आधार अब डीआरडीओ द्वारा निर्मित मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन और टी -90 टैंक है.

पढ़ें - भारत-चीन सीमा विवाद : शीर्ष सैन्य अधिकारियों के बीच तीसरे दौर की वार्ता जारी

टैंकों की अचानक मौजूदगी ने चीन को अचंभित कर दिया था. 21 जुलाई 2016 को नाराजगी व्यक्त करते हुए चीन के स्वामित्व वाले मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय टैंकों की रिपोर्टों का जवाब दिया था.

भारत-चीन सीमा के पास टैंकों की तैनाती से चीनी व्यापार समुदाय के भीतर बेचैनी पैदा कर सकती है. हालांकि यह हैरान करने वाला है कि चीन की सीमा के पास टैंकों की तैनाती करते समय, भारत अभी भी चीनी निवेश को लुभाने का प्रयास कर रहा है.

मामले में प्रतिक्रिया देते हुए चीन के तत्कालीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने बीजिंग में कहा था कि दोनों देशों को संबंधित समझौतों और सर्वसम्मति का पालन करना चाहिए, सीमा क्षेत्र की शांति और शांति बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए और द्विपक्षीय विश्वास कर उचित समाधान के लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए, लेकिन चार वर्ष बाद भारत में चीनी व्यापार को लेकर लोगों में हताशा की भावना है.

इसका मुख्य कारण बीजिंग द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार करके पड़ोसी क्षेत्रों पर कब्जा करने पर तुला हुआ है. इसके तहत चीन ने 15 जून को सीमा के पास गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर क्रूर हमला कर संबंधित क्षेत्रों पर कब्जा करने की कोशिश की.

नई दिल्ली: हिमालय में स्थित पूर्वी लद्धाख का वह इलाका जहां की रातें बेहद सर्द होती हैं. वहां का वातावरण काफी कष्टकारी होता है. ऐसे में 50 किमी प्रति घंटे की गति से चलने वाले लम्बरिंग टैंक को इलाकों में तैनात करना आसान काम नहीं होता है.

पूर्वी लद्दाख में दो प्रकार की टोपोग्राफी ( प्राकृतिक और आर्टिफिशियल स्थिति) शामिल हैं. एक जो पूरी तरह से बंजर चट्टानी भूमि और दूसरी आसमान को छूती दुर्गम पहाड़ी. भारी बर्फबारी और दुर्गम पहाड़ी दोनों को मिला दें तो यहां के इलाके और भी ज्यादा खतरनाक नजर आते हैं. यहां ठंड का मतलब सिर्फ और सिर्फ आधिक से अधिक ठंड और भारी बर्फबारी है.

वहीं दूसरी ओर यहां ऊंचे पहाड़ों के बीच घाटियां मौजूद हैं. इस क्षेत्र के विशाल मैदान चुशुल या डेमचोक में पठारी मैदान हैं, जो टैंक युद्ध के लिए आदर्श इलाके हैं. यही कारण है कि अन्य हथियार प्लेटफार्मों के साथ भारतीय सेना के लगभग 200 टैंक तैनात हैं जो भारत और चीन के बीच एक सीमा पर चल रही तनावपूर्ण स्थिति के बीच मुख्य केंद्र बने हुए हैं. हालांकि अधिक ऊंचाई पर हैंडलिंग टैंक को उतारने के लिए विमान में 45 टन के टैंक को पैक करना आसान है, यह कहना बेहद सरल है.

गौरतलब है कि 2014 के बाद से लद्दाख में छोटी टैंकों की मौजूदगी थी. इसके बाद 2015 में लेह हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में टैंकों को 11,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर लेकर उड़ान भरना शुरू हुई और वहां से गर्मियों की शुरुआत से पूर्वी लद्दाख में उनकी तैनाती की जगह पहुंचाना शुरू हुआ.

2015-16 में फिर से हमने सिर्फ एक बार ग्लोबमास्टर सी -17 में टी -72 टैंक लेकर उड़ान भरी. बाद में हमने सी -17 में दो टैंक लेकर उड़ान भरी. यह प्रक्रिया एक वर्ष से अधिक समय तक चली.

एक सेवारत वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा कि इस क्षेत्र में T-90 के तैनात किए जाने से हम किसी भी प्रकार के टैंक युद्ध या किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं, यहां टैंक काम में आएंगे. उन्होंने कहा कि यह टैंक पहले भी ऑपरेशन में भी सक्रिय रूप से शामिल थे और अब जो हो रहा है वह भी उसमें भी सक्रिय रहेंगे. यह टैंक अपनी विस्फोटक शक्ति के साथ तैयार हैं.

उन्होंने कहा कि टी -72 और टी -90 सहित सैकड़ों टैंक अब पूर्वी लद्दाख के अत्यंत ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किए गए हैं. इन टैंको के साथ लगभग 3,000 बख्तरबंद कर्मी भी मौजूद हैं.

भारत में टी -72, टी -90 और अर्जुन टैंक का मिश्रण है. रूसी टी -72 टैंकों पर तीन दशकों से अधिक समय तक चलने वाले भारत का मुख्य आधार अब डीआरडीओ द्वारा निर्मित मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) अर्जुन और टी -90 टैंक है.

पढ़ें - भारत-चीन सीमा विवाद : शीर्ष सैन्य अधिकारियों के बीच तीसरे दौर की वार्ता जारी

टैंकों की अचानक मौजूदगी ने चीन को अचंभित कर दिया था. 21 जुलाई 2016 को नाराजगी व्यक्त करते हुए चीन के स्वामित्व वाले मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय टैंकों की रिपोर्टों का जवाब दिया था.

भारत-चीन सीमा के पास टैंकों की तैनाती से चीनी व्यापार समुदाय के भीतर बेचैनी पैदा कर सकती है. हालांकि यह हैरान करने वाला है कि चीन की सीमा के पास टैंकों की तैनाती करते समय, भारत अभी भी चीनी निवेश को लुभाने का प्रयास कर रहा है.

मामले में प्रतिक्रिया देते हुए चीन के तत्कालीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने बीजिंग में कहा था कि दोनों देशों को संबंधित समझौतों और सर्वसम्मति का पालन करना चाहिए, सीमा क्षेत्र की शांति और शांति बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए और द्विपक्षीय विश्वास कर उचित समाधान के लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए, लेकिन चार वर्ष बाद भारत में चीनी व्यापार को लेकर लोगों में हताशा की भावना है.

इसका मुख्य कारण बीजिंग द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार करके पड़ोसी क्षेत्रों पर कब्जा करने पर तुला हुआ है. इसके तहत चीन ने 15 जून को सीमा के पास गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर क्रूर हमला कर संबंधित क्षेत्रों पर कब्जा करने की कोशिश की.

Last Updated : Jun 30, 2020, 9:22 PM IST
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