पटना : बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी एकता की बैठक का गवाह बने देशभर के नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया. देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 15 दलों के प्रतिनिधियों ने बैठक में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की. नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए तमाम दल एकजुट हुए थे. बैठक के पहले नेता खासे उत्साहित थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल की एक शर्त ने नेताओं को मुश्किल में डाल दिया. सहमति नहीं बनने के चलते बैठक के बाद कोई राजनीतिक प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया और बैठक के लिए अगली तारीख मुकर्रर की गई.
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दो दर्जन नेताओं ने बैठक में लिया भाग: लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बुलावे पर दो दर्जन से ज्यादा नेता बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे थे. नेताओं ने बैठक के दौरान अपनी अपनी राय रखी, लेकिन बैठक को लेकर ना तो ठोस एजेंडा तय किया जा सका, ना ही किसी एक एजेंडे पर सहमति बनी. बैठक के दौरान आपसी हितों के टकराव को लेकर नेताओं के बीच कहासुनी भी हुई. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने मंसूबे पहले ही जाहिर कर दिए थे. केजरीवाल ने केंद्र सरकार के अध्यादेश को लेकर चर्चा की मांग की थी, लेकिन अध्यादेश के मसले पर कोई चर्चा नहीं हुई.
अध्यादेश पर चर्चा नहीं होने से केजरीवाल नाखुश: अध्यादेश पर चर्चा नहीं होने के कारण केजरीवाल संवाददाता सम्मेलन से पहले ही उठ कर चले गए. अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश दिल्ली सरकार के खिलाफ लाया है, उसे लेकर कोई आम सहमति बने और राज्यसभा में वोटिंग के दौरान भाजपा को हराया जा सके. केजरीवाल का प्रस्ताव यह भी था कि वोटिंग के दौरान कांग्रेस वाक आउट कर जाए. इस पर भी कांग्रेस की ओर से सकारात्मक जवाब नहीं मिला.
दिल्ली पहुंचकर केजरीवाल के तेवर सख्त: दिल्ली लौटने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने रुख में और सख्ती दिखाई है. केजरीवाल ने कांग्रेस को कहा कि अध्यादेश को लेकर पहले कांग्रेस पार्टी अपना रुख स्पष्ट करे. अगर वह अध्यादेश के मसले पर हमारा साथ देती है. तभी हम विपक्षी एकता को लेकर होने वाली बैठक में शामिल होने को लेकर विचार करेंगे. आपको बता दें कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है. दिल्ली और पंजाब में आप पार्टी की सरकार भी है. पार्टी के कुल 10 राज्यसभा सांसद और एक लोकसभा में सदस्य हैं.
राज्यसभा में आप की मजबूत दखल: अरविंद केजरीवाल की पार्टी राज्यसभा में मजबूत दखल रखती है और तमाम विपक्षी दलों से अध्यादेश के मसले पर राज्यसभा में भाजपा के खिलाफ समर्थन चाहती है. आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता बबलू प्रकाश का मानना है कि विपक्ष दलों को मुद्दों के आधार पर सहमति बनानी चाहिए. अगर राज्यों के हितों का नुकसान होता है और अरविंद केजरीवाल समर्थन की बात करते हैं तो उस पर विमर्श होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो शिमला में होने वाली बैठक से हमारी पार्टी दूरी बना लेगी.
"विपक्ष दलों को मुद्दों के आधार पर सहमति बनानी चाहिए. अगर राज्यों के हितों का नुकसान होता है और अरविंद केजरीवाल समर्थन की बात करते हैं तो उस पर विमर्श होना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो शिमला में होने वाली बैठक से हमारी पार्टी दूरी बना लेगी" - बबलू प्रकाश, प्रवक्ता, आप
शिमला जाने पर आप का रुख स्पष्ट नहीं: कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा है कि अलग-अलग राज्यों के नेताओं की अलग-अलग मांग है और उस पर विमर्श किया जाएगा. अभी सवाल महागठबंधन की एकता का है. जब सदन में अध्यादेश पर वोटिंग होगी. उस समय विमर्श किया जाएगा, लेकिन उससे पहले शिमला में विपक्षी नेताओं को एकजुटता दिखानी चाहिए. वहीं राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि "अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी एकता में साथ देने की बात कही है. शिमला वह जाएंगे कि नहीं वही बता सकते हैं, लेकिन उन्होंने बैठक में हिस्सा लेकर संकेत दे दिया है".
"अलग-अलग राज्यों के नेताओं की अलग-अलग मांग है और उस पर विमर्श किया जाएगा. अभी सवाल महागठबंधन की एकता का है. जब सदन में अध्यादेश पर वोटिंग होगी. उस समय विमर्श किया जाएगा, लेकिन उससे पहले शिमला में विपक्षी नेताओं को एकजुटता दिखानी चाहिए"- राजेश राठौर, मुख्य प्रवक्ता, कांग्रेस
विपक्षी एकता के लिए केजरीवाल चुनौती: वहीं वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी एकता के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की लड़ाई है और कांग्रेस से अरविंद केजरीवाल अध्यादेश के मसले पर समर्थन चाहती हैं. ऐसे में कांग्रेस की ओर से भी रुख स्पष्ट नहीं किया गया है और केजरीवाल ने शिमला की बैठक को लेकर असहमति जताई है. आने वाले दिनों में ममता बनर्जी के रुख भी कड़े देखने को मिल सकते हैं.