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तिरुवल्लूर ट्रेन हादसे को क्यों नहीं रोक पाया 'कवच', जानें क्या है यह तकनीक, कैसे करती है काम

कवच तकनीक: लोग सवाल उठा रहे हैं कि कावराईपेट्टई में हुए रेल हादसे में 'कवच' तकनीक काम क्यों नहीं आई. आखिर क्या है 'कवच' तकनीक?

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By ETV Bharat Tech Team

Published : 3 hours ago

What is Kavach technology
क्या है कवच तकनीक (फोटो - ANI Photo)

हैदराबाद: बागमती एक्सप्रेस ट्रेन कर्नाटक के मैसूर से तमिलनाडु के पेरामपुर होते हुए बिहार के दरभंगा जा रही थी, तभी शुक्रवार रात 8.30 बजे तिरुवल्लूर जिले के कुम्मिडिपोंडी के पास कवरपेट्टई में यह ट्रेन एक मालगाड़ी से टकरा गई. लोगों के बीच सवाल है कि 'कवच' सुरक्षा तकनीक भारतीय रेलवे की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है.

दक्षिण रेलवे के महाप्रबंधक आर.एन. सिंह ने दुर्घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि सिग्नल मिलने के बाद वैकल्पिक मार्ग अपनाने के कारण का पता लगाने के लिए जांच चल रही है. ऐसी आपदाओं को रोकने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी बहस होती है. ऐसी ही एक प्रमुख प्रौद्योगिकी है भारत की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली जिसे 'कवच' कहा जाता है. यहां हम आपको बता रहे हैं कि रेलवे सुरक्षा 'कवच' प्रौद्योगिकी कितनी मजबूत है.

क्या है 'कवच'?
ट्रेन में लगाई जाने वाली 'कवच' तकनीक सिग्नल की खराबी या टकराव का पता लगाती है और स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह ट्रेन की गति सीमा की निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि वे सिग्नल पर ठीक से प्रतिक्रिया दें. यदि लोको पायलट ऐसा नहीं कर सकता है, तो कवच इसे संभाल लेता है और मानवीय भूल या सिग्नल विफलता के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकती है.

कवच के उपकरण
लोको शील्ड: यह ट्रेन इंजन में स्थापित एक कंप्यूटर सिस्टम है.

स्टेशन शील्ड: यह रेलवे स्टेशन में स्थापित एक कंप्यूटर सिस्टम है.

रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफ़ायर (RFID) टैग: इन्हें ट्रेन में निश्चित अंतराल पर असाइन किया जाता है.

जीपीएस: ट्रेन का सटीक स्थान निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है.

क्या 'कवच' से कावरैपेट्टई दुर्घटना को रोका जा सकता था?

हालांकि दुर्घटना का सटीक कारण जाने बिना निश्चित रूप से कुछ कहना असंभव है, लेकिन Kavach निम्नलिखित कारणों से दुर्घटनाओं को रोक सकता है.

सिग्नल ओवररन (एसपीएडी): जब ट्रेन लाल सिग्नल पार करती है तो कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है.

उच्च गति: यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें निर्दिष्ट गति सीमा के भीतर रहें. यह तकनीक उन ट्रेनों पर नज़र रखती है, जो हाई स्पीड के कारण पटरी से उतर जाती हैं.

आमने-सामने की टक्कर: यदि एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें पाई जाती हैं तो 'कवच' तकनीक आपातकालीन उपाय के रूप में ट्रेनों को रोक सकती है.

कवच प्रौद्योगिकी की वर्तमान स्थिति
अप्रैल तक दक्षिण मध्य रेलवे जोन के 1,445 किलोमीटर और 134 स्टेशनों पर कवच लागू किया जा चुका है. यह भारत के कुल 68,000 किलोमीटर लंबे रेलवे नेटवर्क का एक छोटा सा हिस्सा है. हालांकि यह सुधार बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन यह सुरक्षा सुविधा अन्य 1,200 किलोमीटर तक स्थापित की जा चुकी है.

चुनौतियां और क्या है भविष्य
कवच उपकरण की स्थापना और प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन पर प्रति किलोमीटर 50 लाख रुपये की लागत आने का अनुमान है. यह योजना अभी तक केवल कुछ ही स्थानों पर लागू की गई है. हालांकि, हाल ही में हुई दुर्घटना भारतीय रेलवे में 'कवच' के शीघ्र कार्यान्वयन की आवश्यकता को उजागर करती है.

रेल मंत्रालय की योजनाएं
भारतीय रेलवे का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 44,000 किलोमीटर की दूरी पर 'कवच' तकनीक लागू करना है. दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा जैसे प्रमुख रूट्स को प्राथमिकता दी जाएगी. रेल मंत्रालय ने कहा कि यह विस्तार 'मिशन रफ़्तार' योजना के तहत होगा, जिसका उद्देश्य भारतीय रेलवे की गति और सुरक्षा में सुधार करना है.

हैदराबाद: बागमती एक्सप्रेस ट्रेन कर्नाटक के मैसूर से तमिलनाडु के पेरामपुर होते हुए बिहार के दरभंगा जा रही थी, तभी शुक्रवार रात 8.30 बजे तिरुवल्लूर जिले के कुम्मिडिपोंडी के पास कवरपेट्टई में यह ट्रेन एक मालगाड़ी से टकरा गई. लोगों के बीच सवाल है कि 'कवच' सुरक्षा तकनीक भारतीय रेलवे की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है.

दक्षिण रेलवे के महाप्रबंधक आर.एन. सिंह ने दुर्घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि सिग्नल मिलने के बाद वैकल्पिक मार्ग अपनाने के कारण का पता लगाने के लिए जांच चल रही है. ऐसी आपदाओं को रोकने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी बहस होती है. ऐसी ही एक प्रमुख प्रौद्योगिकी है भारत की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी) प्रणाली जिसे 'कवच' कहा जाता है. यहां हम आपको बता रहे हैं कि रेलवे सुरक्षा 'कवच' प्रौद्योगिकी कितनी मजबूत है.

क्या है 'कवच'?
ट्रेन में लगाई जाने वाली 'कवच' तकनीक सिग्नल की खराबी या टकराव का पता लगाती है और स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह ट्रेन की गति सीमा की निगरानी करता है और सुनिश्चित करता है कि वे सिग्नल पर ठीक से प्रतिक्रिया दें. यदि लोको पायलट ऐसा नहीं कर सकता है, तो कवच इसे संभाल लेता है और मानवीय भूल या सिग्नल विफलता के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकती है.

कवच के उपकरण
लोको शील्ड: यह ट्रेन इंजन में स्थापित एक कंप्यूटर सिस्टम है.

स्टेशन शील्ड: यह रेलवे स्टेशन में स्थापित एक कंप्यूटर सिस्टम है.

रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफ़ायर (RFID) टैग: इन्हें ट्रेन में निश्चित अंतराल पर असाइन किया जाता है.

जीपीएस: ट्रेन का सटीक स्थान निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है.

क्या 'कवच' से कावरैपेट्टई दुर्घटना को रोका जा सकता था?

हालांकि दुर्घटना का सटीक कारण जाने बिना निश्चित रूप से कुछ कहना असंभव है, लेकिन Kavach निम्नलिखित कारणों से दुर्घटनाओं को रोक सकता है.

सिग्नल ओवररन (एसपीएडी): जब ट्रेन लाल सिग्नल पार करती है तो कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है.

उच्च गति: यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें निर्दिष्ट गति सीमा के भीतर रहें. यह तकनीक उन ट्रेनों पर नज़र रखती है, जो हाई स्पीड के कारण पटरी से उतर जाती हैं.

आमने-सामने की टक्कर: यदि एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें पाई जाती हैं तो 'कवच' तकनीक आपातकालीन उपाय के रूप में ट्रेनों को रोक सकती है.

कवच प्रौद्योगिकी की वर्तमान स्थिति
अप्रैल तक दक्षिण मध्य रेलवे जोन के 1,445 किलोमीटर और 134 स्टेशनों पर कवच लागू किया जा चुका है. यह भारत के कुल 68,000 किलोमीटर लंबे रेलवे नेटवर्क का एक छोटा सा हिस्सा है. हालांकि यह सुधार बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन यह सुरक्षा सुविधा अन्य 1,200 किलोमीटर तक स्थापित की जा चुकी है.

चुनौतियां और क्या है भविष्य
कवच उपकरण की स्थापना और प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन पर प्रति किलोमीटर 50 लाख रुपये की लागत आने का अनुमान है. यह योजना अभी तक केवल कुछ ही स्थानों पर लागू की गई है. हालांकि, हाल ही में हुई दुर्घटना भारतीय रेलवे में 'कवच' के शीघ्र कार्यान्वयन की आवश्यकता को उजागर करती है.

रेल मंत्रालय की योजनाएं
भारतीय रेलवे का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 44,000 किलोमीटर की दूरी पर 'कवच' तकनीक लागू करना है. दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा जैसे प्रमुख रूट्स को प्राथमिकता दी जाएगी. रेल मंत्रालय ने कहा कि यह विस्तार 'मिशन रफ़्तार' योजना के तहत होगा, जिसका उद्देश्य भारतीय रेलवे की गति और सुरक्षा में सुधार करना है.

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