बालोद : कोरोना काल में कई लोगों की जिंदगी में भूचाल लाया. कितनों ने अपनों के जाने का दर्द सहा, वहीं कई युवाओं को संकट काल में अपनी नौकरी गंवानी पड़ी.इसी में से एक थे बालोद जिले के निवासी देवेंद्र सिन्हा. लेकिन 26 साल के युवा के जीवन में आए इस संकटकाल को उनकी पत्नी के आइडिया ने ओझल कर दिया. विपरित समय में देवेंद्र की पत्नी ने दीप्ति ने उन्हें ऊंची उड़ान के लिए प्रेरित किया. दीप्ति के दिए हौसले के बाद देवेंद्र ने फूलों की खेती में हाथ आजमाया और सफलता की ऊंचाई छुई.
नौकरी छूटी तो पत्नी ने दिया हौसला: बालोद जिले के एक छोटे से गांव गुरेदा के देवेंद्र सिन्हा की स्थिति तब बिगड़ी जब कोरोना संक्रमण काल में उनकी नौकरी चली गई. बेरोजगार होने के बाद देवेंद्र को उसकी पत्नी दीप्ति सिन्हा ने हौसला दिया. पत्नी दीप्ति को गेंदे की खेती करने का थोड़ा बहुत अनुभव अपने पिता से मिला था.जिसके बाद उन्होंने अपने पति को फूलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया. बीते दो वर्षों में सिन्हा परिवार फूलों की खेती करके लाखों रुपए की इनकम कर रहा है.
ईटीवी भारत को बताया संघर्ष का दौर : देवेंद्र सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि कोरोना संक्रमण काल में जब उनकी नौकरी गई तो वो पूरी तरह टूट गए थे. इसके बाद पत्नी ने सहारा दिया. पत्नी के पिताजी गेंदे की खेती करते थे. इसलिए पत्नी को गेंदे की खेती का अनुभव था. फिर उसने खेती का आइडिया दिया. गवर्नमेंट की वेबसाइट में सरकारी मदद के बारे में सर्च किया. इसके बाद हमने खेती करनी शुरू की.
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मिट्टी को समझना कठिन : देवेंद्र की मानें तो गुलाब की खेती के लिए काली मिट्टी उपयुक्त नहीं रहती. इसमें लाल मिट्टी की आवश्यकता होती है. लाल मिट्टी का चयन तो किया लेकिन इसके लिए मुरुम को बेहतर समझा.क्योंकि मुरुम पानी कम सोखता है. जिससे पौधे सड़ते नहीं हैं.लिहाजा लाल मिट्टी की जगह मुरुम का इस्तेमाल किया.जिसमें सफलता मिली.पहले इस बात का डर सता रहा था कि लाल मिट्टी की व्यवस्था कहां से करुंगा.फिर विकल्प के तौर पर मुरुम का इस्तेमाल किया और ये सफल रहा.
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जब मैंने खेती करना शुरू की तो इसकी लागत को लेकर मैं परेशान था. गुलाब की खेती में सबसे महत्वपूर्ण चीज है पॉली हाउस. जिसकी लागत 52 लाख के करीब है. इसे मैंने सब्सिडी में लोन लेकर लगवाया. इसके बाद कम से कम 20 लाख रुपए की लागत मुझे खुद से लगानी पड़ी. इस तरह से 70 लाख की लागत से फूलों की खेती शुरु हुई. आज इस काबिल बन पाया हूं कि अब अपना लोन अच्छे से चुका पा रहा हूं. मैं और मेरा पूरा परिवार इस खेती से काफी खुश है - देवेंद्र सिन्हा, फूल उत्पादक किसान
सरकार से मिला सहयोग : देवेंद्र ने बताया कि फूलों की खेती के लिए उन्हें सरकार से काफी मदद मिली है. पहले तो लोन मिला, उसके बाद 50% सब्सिडी मिली. फूलों की खेती के लिए यहां एक बेहतर बाजार उपलब्ध है. सरकार भी सहयोग कर रही है तो हमें पारंपरिक कृषि से अपने कुछ जमीन के हिस्सों में फूल की खेती भी करनी चाहिए. ड्रिप सिंचाई से मैं सिंचाई करता हूं.पहले 65 डिसमिल से शुरू किया था. आज एक एकड़ तक कर पा रहा हूं.
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बालोद से ओडिशा जाते हैं फूल : देवेंद्र और उसकी पत्नी ने बताया कि उनके खेतों के गुलाबों की महक ओडिशा तक जाती है. पहले बाजार के तौर पर दुर्ग भिलाई को अपनाया था. गुलाब बालोद से कटकर दुर्ग भिलाई के बाजारों में जाता है. फिर हाई डिमांड के बाद माल ओडिशा जाने लगा. लेकिन यदि पास में मंडी और बाजार हो तो ओडिशा भेजने की जरुरत नहीं पड़ेगी. गुलाब के फूलों की मांग ओडिशा में काफी ज्यादा है. इसलिए बड़ी खेती ओडिशा भेज दिया करता हूं.इसके बाद वहां से ऑनलाइन माध्यम से फूलों के एवज में भुगतान भी मिल जाता है. छोटे फूल वजन में जाते हैं और जो बड़े दंडी वाले फूल हैं, उनको नग के हिसाब से बेचा जाता है.
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2 एकड़ में रजनीगंधा फसल हो रही तैयार : फूलों की खेती और उसमें हो रहे लाभ से लगातार प्रेरित होकर देवेंद्र सिन्हा और उनके परिवार ने अब और आगे बढ़ते हुए दो एकड़ के अपने खेतों को रजनीगंधा के फूलों के लिए चुना है. उन्होंने रजनीगंधा की बुवाई की और 40 दिन बाद फसल तैयार है. आने वाले दिनों में रजनीगंधा भी तैयार हो जाएंगे और इनकम देने लगेंगे. सिन्हा परिवार लगभग 10 मजदूरों को परमानेंट रोजगार दे रहे हैं. उनके लिए प्रोविडेंट फंड की व्यवस्था भी इन्होंने की है. देवेंद्र गोबर खाद के साथ-साथ फर्टिलाइजर और खुद के बनाए खाद का उपयोग भी करते हैं. देवेंद्र गुलाब की खेती में जिले में अव्वल आकर पूरे प्रदेश और केंद्र में इस जिले को रिप्रेजेंट कर रहे हैं.
दूसरे किसानों के लिए बने प्रेरणा : देवेंद्र इलाके के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा साबित हो रहे हैं. देवेंद्र के बगिया के गुलाब से ओडिशा भी महक रहा है. अब देवेंद्र बालोद जिले को उद्यानिकी के क्षेत्र में रिप्रेजेंट कर रहे हैं.बालोद जिले के देवेंद्र सिन्हा और उनके पिता भुवनेश्वर सिन्हा एकमात्र ऐसे किसान हैं, जिन्होंने फूलों की खेती में लगातार मेहनत कर नाम और पैसा दोनों कमाया है. आज यह परिवार ग्राम गुरेदा में एक एकड़ की खेती में गुलाब की खेती कर रहा है. लगन से मेहनत कर इस काबिल बन चुके हैं कि खेती के लिए लिया गया लाखों रुपए का कर्ज अब यह चुका पाने में सक्षम हो गए हैं.
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