जयपुर. गुलाबी शहर के रहने वाले देवकरण सैनी इन दिनों ना सिर्फ जर्मन भाषा सीखा रहे हैं, बल्कि युवाओं को विदेशों में करियर की तलाश पूरी करने के लिए मदद भी कर रहे हैं. एक लैंग्वेज कोच के रूप में अपना सफर शुरु करने वाले देवकरण हाल में यूरोप के पांच देशों की यात्रा के बाद स्वदेश लौटे हैं. अपने अनुभव को लेकर उन्होंने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में बताया कि कैसे यूरोपियन देश आज के दौर में स्किल और अनस्किल्ड मैन पावर क्राइसिस से गुजर रहे हैं. उनके मुताबिक बेरोजगार युवाओं के लिए यूरोपीय देशों की यह जरूरत एक अवसर के रूप में बेहतर मौका साबित हो सकती है. जर्मनी , स्विट्जरलैंड , हंगरी , आस्ट्रिया और लाइसटेंन्सटाइन जैसे देशों को हाल में घूम कर आए देवकरण बताते हैं कि भाषा सीखने बाद ये देश अनस्किल्ड मैनपावर को ट्रेनिंग देकर उपयोग कर रहे हैं. इसके लिए बड़े पैकेज भी ऑफर किए जा रहे हैं.
विदेशी भाषा ज्ञान मददगार : अंग्रेजी की बुनियादी नॉलेज के साथ यदि कोई व्यक्ति किसी एक भाषा पर अपनी बेहतर पकड़ रखता है , तो उसके लिए मिलियन यूरो की कमाई कोई बड़ी चुनौती नहीं है. देवकरण बताते हैं कि आज के वक्त में स्पेनिश , जर्मन , फ्रेंच , जेपनीज और इटालियन भाषा को सीखने वालों की डिमांड ज्यादा है. यूरोप के कई देशों में जर्मन भाषा बोली जाती है ,तो स्पेनिश अमेरिकी देशों में लोकप्रिय है. वहीं फ्रेंच भाषा भी दुनिया के कई देशों में बोली जा रही है. लिहाजा इन भाषाओं को सीखने वाले लोगों की डिमांड भी उसी के मुताबिक है. ऐसे में अगर कोई आईटीआई , पॉलिटेक्निक कोर्स या इंजीनियरिंग कर चुका है , तो ऐसे लोगों के लिए जॉब प्लेसमेंट कोई बड़ी मुश्किल बात नहीं है. मेडिकल फील्ड के साथ-साथ स्किल इंडिया के कॉर्सेज भी विदेशों में मान्यता रखते हैं. खास तौर पर मेडिकल फील्ड में नर्स और वार्ड ब्वॉय की ज्यादा डिमांड है. इंजीनियर्स के साथ ही पॉलिटेक्निक कोर्स किए हुए युवा भी सीधा प्लेसमेंट पा रहे हैं. देवकरण के मुताबिक यूरोपीय देशों में महीने की पगार के रूप में कम से कम 2200 से लेकर 2500 यूरो तक मिल जाते हैं.
12 देशों से जुड़े हैं स्टूडेंट्स : देवकरण सैनी के मुताबिक आज उनके पास भाषा को सीखने के लिए भारत के अलग-अलग राज्यों के छात्र तो आ ही रहे हैं. इसके अलावा भी बांग्लादेश , अफगानिस्तान , पाकिस्तान जैसे करीब 12 देशों से छात्र जर्मन भाषा का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं. इन सभी के लिए भाषा को सीखने का मकसद विदेश में जॉब हासिल करना ही है. वे बताते हैं कि कोरोना के बाद से उन्होंने ऑनलाइन क्लासेज शुरु की , जो उनके लिए बड़ा अवसर साबित हुई है. अपनी विदेश यात्रा के अनुभव के आधार पर उन्होंने बाहर रह रहे लोगों का अनुभव भी जाना. वे बताते हैं कि उन्होंने यहां जर्मन स्पीकर्स क्लब शुरू किया है , साथ ही जर्मन भाषा की पत्रिका भी वह निकाल रहे हैं. जिसके जरिए उन्हें बड़ी तादाद में लोगों से जुड़ने का अवसर मिला है.
भारत में भी अनेक अवसर : देवकरण सैनी के मुताबिक विदेशों के साथ-साथ भारत में विदेशी भाषा के ज्ञान के दम पर नौकरी हासिल करने वालों की बड़ी तादाद है. यह लोग 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियों के लिए भारत में रहकर ही काम कर रहे हैं. उनके मुताबिक इन कंपनियों में पुरुषों के साथ-साथ वर्क फ्रॉम होम करने वाली महिलाओं के लिए भी बराबर के अवसर उपलब्ध हैं.