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गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने से किसान परेशान, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया बचाव का तरीका

Yellow Rust Disease In Wheat Crop: गेहूं की फसल पर पीला रतुआ की बीमारी का असर देखने को मिल रहा है. जिसके चलते किसानों की चिंता बढ़ने लगी है. ऐसे में गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि किन बातों का ध्यान रख इस बीमारी से बचा जा सकता है.

Yellow Rust Disease In Wheat Crop
Yellow Rust Disease In Wheat Crop
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Mar 5, 2024, 7:18 PM IST

गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने से किसान परेशान, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया बचाव का तरीका

करनाल: गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है. जिससे किसानों की चिंता बढ़ रही है. किसानों का कहना है कि अगर समय रहते इसका प्रबंध ना किया गया, तो ये गेहूं के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालेगा.

क्या होता है पीला रतुआ रोग? गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि पीला रतुआ गेहूं में लगने वाला एक मुख्य रोग है. जिससे गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ता है. इस बीमारी से गेहूं के पौधों पर पीले रंग का पाउडर लग जाता है. पहले ये बीमारी खेत के एक हिस्से में फैलती है. फिर पूरे खेत में ये फैल जाती है. इससे फसल का रंग पीला पड़ जाता है. इस बीमारी से गेहूं की पैदावार कम हो जाती है.

क्यों होता है पीला रतुआ रोग? कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि जिस खेत में किसान पीले रतवे के प्रकोप के बीज लगाता है. उस खेत में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. जिस खेत में ज्यादा नमी होती है. उस खेत में भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है. किसान कई बार पैदावार ज्यादा निकालने के लिए खेत में ज्यादा यूरिया डाल देते हैं. उससे खेत में नमी बनी रहती है. जिससे पीले रतवे की बीमारी गेहूं में लग जाती है.

क्या होता पीला रतुआ रोग का प्रभाव? पीला रतुआ रोग फसल के उत्पादन पर असर डालता है. अगर समय रहते इसका प्रबंध ना किया जाए, तो ये खेत में 40 से 50% तक उत्पादन पर प्रभाव डाल देता है. यह एक प्रकार का फंगीसाइड होता है. जो पौधों को अपने प्रकोप से सुख देता है. पौधे का जो रस होता है. उसको ये चूस लेता है और पौधा सूख जाता है. जिसके चलते उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

कैसे करें नियंत्रित? डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि किसान गेहूं की ऐसी किस्म चयन करें. जिसमें बीमारी का प्रकोप कम होता है. उसके बावजूद भी किसान अपने खेत में इस बीमारी को देखते हैं, तो उसके लिए 200 मिलीलीटर प्रॉपिकॉनाजोले नामक दवाई में 200 लीटर पानी मिलकर स्प्रे करें. ऐसा करने से पीला रतुआ रोग पर काबू पाया जा सकता है.

पीला रतुआ रोग को रोकने के लिए नई किस्म की जा रही तैयार: कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि पीले रतवे के प्रभाव को देखते हुए गेहूं के नए बीज तैयार किए जा रहे हैं. इसके ऊपर अभी गेहूं संस्थान के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि वो जल्द ही गेहूं के ऐसे बीज को तैयार करेंगे. जिसमें पीला रतुआ रोग का प्रभाव ना के बराबर रहे. मौजूदा समय में जो भी बीज संस्थान तैयार करते हैं. उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है. जिसके चलते गेहूं पर बीमारियों का प्रभाव कम देखने को मिलता है.

ये भी पढ़ें- चीन को पछाड़ गेहूं उत्पादन में पहले नंबर पर कब्जा कर पाएगा भारत? कृषि वैज्ञानिक बोले- इस बार बनाएंगे नया रिकॉर्ड

ये भी पढ़ें- भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान ने किसानों के लिए जारी की एडवाइजरी, 114 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य

गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग लगने से किसान परेशान, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया बचाव का तरीका

करनाल: गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है. जिससे किसानों की चिंता बढ़ रही है. किसानों का कहना है कि अगर समय रहते इसका प्रबंध ना किया गया, तो ये गेहूं के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालेगा.

क्या होता है पीला रतुआ रोग? गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि पीला रतुआ गेहूं में लगने वाला एक मुख्य रोग है. जिससे गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ता है. इस बीमारी से गेहूं के पौधों पर पीले रंग का पाउडर लग जाता है. पहले ये बीमारी खेत के एक हिस्से में फैलती है. फिर पूरे खेत में ये फैल जाती है. इससे फसल का रंग पीला पड़ जाता है. इस बीमारी से गेहूं की पैदावार कम हो जाती है.

क्यों होता है पीला रतुआ रोग? कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि जिस खेत में किसान पीले रतवे के प्रकोप के बीज लगाता है. उस खेत में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. जिस खेत में ज्यादा नमी होती है. उस खेत में भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है. किसान कई बार पैदावार ज्यादा निकालने के लिए खेत में ज्यादा यूरिया डाल देते हैं. उससे खेत में नमी बनी रहती है. जिससे पीले रतवे की बीमारी गेहूं में लग जाती है.

क्या होता पीला रतुआ रोग का प्रभाव? पीला रतुआ रोग फसल के उत्पादन पर असर डालता है. अगर समय रहते इसका प्रबंध ना किया जाए, तो ये खेत में 40 से 50% तक उत्पादन पर प्रभाव डाल देता है. यह एक प्रकार का फंगीसाइड होता है. जो पौधों को अपने प्रकोप से सुख देता है. पौधे का जो रस होता है. उसको ये चूस लेता है और पौधा सूख जाता है. जिसके चलते उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

कैसे करें नियंत्रित? डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि किसान गेहूं की ऐसी किस्म चयन करें. जिसमें बीमारी का प्रकोप कम होता है. उसके बावजूद भी किसान अपने खेत में इस बीमारी को देखते हैं, तो उसके लिए 200 मिलीलीटर प्रॉपिकॉनाजोले नामक दवाई में 200 लीटर पानी मिलकर स्प्रे करें. ऐसा करने से पीला रतुआ रोग पर काबू पाया जा सकता है.

पीला रतुआ रोग को रोकने के लिए नई किस्म की जा रही तैयार: कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि पीले रतवे के प्रभाव को देखते हुए गेहूं के नए बीज तैयार किए जा रहे हैं. इसके ऊपर अभी गेहूं संस्थान के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि वो जल्द ही गेहूं के ऐसे बीज को तैयार करेंगे. जिसमें पीला रतुआ रोग का प्रभाव ना के बराबर रहे. मौजूदा समय में जो भी बीज संस्थान तैयार करते हैं. उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है. जिसके चलते गेहूं पर बीमारियों का प्रभाव कम देखने को मिलता है.

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