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कालीबाड़ी मंदिर में ढोल नगाड़ों के साथ मां काली का पूजन

दिल्ली मंदिर मार्ग पर स्थित कालीबाड़ी मंदिर में महाष्टमी के दिन विशेष धूम देखने को मिलती है. यहां मां काली की विशेष पूजा होती है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 3 hours ago

कालीबाड़ी मंदिर में मां काली की विशेष पूजा
कालीबाड़ी मंदिर में मां काली की विशेष पूजा (ETV BHARAT)

नई दिल्ली: शारदीय नवरात्र में मां काली के पूजन का विशेष महात्मय है. देशभर में दुर्गाअष्टमी की तैयारियां जोरों पर हैं. राजधानी दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित कालीबाड़ी मंदिर में महाष्टमी के दिन विशेष धूम देखने को मिलती है. मंदिर में देवी काली की प्रतिमा को कोलकाता के प्रमुख कालीघाट काली मंदिर की प्रतिमा के समान बनाया गया है.

काली मंदिर का अष्टमी पूजन बेहद खास : दुर्गा पूजा के दौरान यहां पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं. यहां अष्टमी पूजन बेहद अलग होता है. 30 वर्षों से यहां कोलकाता से एक विशेष मंडली आती है, जो काली पूजन पर सांस्कृतिक ढोल नगाड़े बजाती है. मंदिर का इतिहास, मान्यता, पूजन भंडारण आदि जानकारियों के लिए 'ETV भारत' ने मंदिर के पुजारी से विशेष बातचीत की. आइए, जानते हैं उन्होंने क्या बताया?

मंदिर में अष्टमी पूजन की तैयारियां : पुजारी मदनमोहन भट्टाचार्य ने बताया कि सप्तमी से मंदिर में रौनक दिखने लगती है. सुबह कलश पूजन के साथ मां काली को निमंत्रण दिया जाता है. इस दिन शाम को बेल के पड़े की पूजा की जाती है. इसके बाद अष्टमी के दिन सुबह से मां काली की आरती के साथ पंडाल में मां की भव्य प्रतिमा का पूजन भी शुरू होगा. पूरे दिन श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था होगी.

मंदिर के पीपल के पेड़ में लोगों की असीम आस्था : पहले भक्तों को पंडाल में बैठा कर भंडारा खिलाया जाता था. इसलिए इस बार थाली सिस्टम की तरह भंडार वितरण किया जाएगा. काली बाड़ी मंदिर की मान्यता बहुत है. मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है. भक्तगण इस पेड़ को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं.

मां काली की पूजा में रखने इन बातों का ध्यान
मां काली की पूजा में रखने इन बातों का ध्यान (ETV BHARAT)
मंदिर का इतिहास :कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना 1938 में की गई थी. इनका निर्माण कोलकाता से दिल्ली आकर लोगों ने किया था. मंदिर में मौजूद सभी पुजारी, मेनेजमेंट और स्टाफ सभी बंगाली हैं. सबसे पहले मंदिर भवन का उद्घाटन सर जस्टिस मनमथ नाथ मुखर्जी ने किया था. पूजा मंडप बनाने के लिए कोलकाता से कारीगरों को बुलाया जाता है. बंगाली श्रद्धालुओं के यहां ठहरने के लिए कमरे और छात्रावास भी उपलब्ध है. यहां एक समृद्ध पुस्तकालय भी है.कोलकाता से आती है मंडली : मंदिर में प्रति वर्ष के कोलकाता से एक विशेष मंडली आती है, जो मां काली के पूजन पर सांस्कृतिक ढोल नगाड़े बजाती है. मंडली के सदस्य रौनोजीत दास ने बताया कि यह मंडली कोलकाता के शांति निकेतन से हर वर्ष दिल्ली आती है. दुर्गा पूजा के दिनों में पंचमी के दिन दिल्ली आजाते हैं और दसमी के दिन वापस चले जाते हैं. लगभग 30 वर्षों के लगातार इस मंदिर में आ रहे हैं. यह एक विशेष सांस्कृतिक नगाड़े हैं, जिनको मां की आरती के समय बजाया जाता है.


कैसे पहुंचें काली बाड़ी : यह मंदिर नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर के करीब है. यह कनॉट प्लेस से लगभग 2 किमी पश्चिम में स्थित है. निकटतम दिल्ली मेट्रो स्टेशन रामकृष्ण आश्रम मार्ग, दिल्ली है. लद्दाख बौद्ध विहार भी कालीबाड़ी के समान दिशा में स्थित है. आसपास के क्षेत्र गोल मार्केट, काली बाड़ी मार्ग, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान आदि हैं. बस से पहुंचने के लिए करीबी स्टॉप बिरला मंदिर है.

ये भी पढ़ें : दिल्ली के मैत्री मंदिर का दुर्गा पंडाल है इस बार खास, जानिए किस थीम पर हुआ तैयार?

ये भी पढ़ें : दिल्ली का गुफा वाला शिव मंदिर, जहां होता है माता वैष्णो देवी का एहसास

नई दिल्ली: शारदीय नवरात्र में मां काली के पूजन का विशेष महात्मय है. देशभर में दुर्गाअष्टमी की तैयारियां जोरों पर हैं. राजधानी दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित कालीबाड़ी मंदिर में महाष्टमी के दिन विशेष धूम देखने को मिलती है. मंदिर में देवी काली की प्रतिमा को कोलकाता के प्रमुख कालीघाट काली मंदिर की प्रतिमा के समान बनाया गया है.

काली मंदिर का अष्टमी पूजन बेहद खास : दुर्गा पूजा के दौरान यहां पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं. यहां अष्टमी पूजन बेहद अलग होता है. 30 वर्षों से यहां कोलकाता से एक विशेष मंडली आती है, जो काली पूजन पर सांस्कृतिक ढोल नगाड़े बजाती है. मंदिर का इतिहास, मान्यता, पूजन भंडारण आदि जानकारियों के लिए 'ETV भारत' ने मंदिर के पुजारी से विशेष बातचीत की. आइए, जानते हैं उन्होंने क्या बताया?

मंदिर में अष्टमी पूजन की तैयारियां : पुजारी मदनमोहन भट्टाचार्य ने बताया कि सप्तमी से मंदिर में रौनक दिखने लगती है. सुबह कलश पूजन के साथ मां काली को निमंत्रण दिया जाता है. इस दिन शाम को बेल के पड़े की पूजा की जाती है. इसके बाद अष्टमी के दिन सुबह से मां काली की आरती के साथ पंडाल में मां की भव्य प्रतिमा का पूजन भी शुरू होगा. पूरे दिन श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की व्यवस्था होगी.

मंदिर के पीपल के पेड़ में लोगों की असीम आस्था : पहले भक्तों को पंडाल में बैठा कर भंडारा खिलाया जाता था. इसलिए इस बार थाली सिस्टम की तरह भंडार वितरण किया जाएगा. काली बाड़ी मंदिर की मान्यता बहुत है. मंदिर के अंदर ही एक विशाल पीपल का पेड़ है. भक्तगण इस पेड़ को पवित्र मानते हैं और इस पर लाल धागा बांध कर मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं.

मां काली की पूजा में रखने इन बातों का ध्यान
मां काली की पूजा में रखने इन बातों का ध्यान (ETV BHARAT)
मंदिर का इतिहास :कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना 1938 में की गई थी. इनका निर्माण कोलकाता से दिल्ली आकर लोगों ने किया था. मंदिर में मौजूद सभी पुजारी, मेनेजमेंट और स्टाफ सभी बंगाली हैं. सबसे पहले मंदिर भवन का उद्घाटन सर जस्टिस मनमथ नाथ मुखर्जी ने किया था. पूजा मंडप बनाने के लिए कोलकाता से कारीगरों को बुलाया जाता है. बंगाली श्रद्धालुओं के यहां ठहरने के लिए कमरे और छात्रावास भी उपलब्ध है. यहां एक समृद्ध पुस्तकालय भी है.कोलकाता से आती है मंडली : मंदिर में प्रति वर्ष के कोलकाता से एक विशेष मंडली आती है, जो मां काली के पूजन पर सांस्कृतिक ढोल नगाड़े बजाती है. मंडली के सदस्य रौनोजीत दास ने बताया कि यह मंडली कोलकाता के शांति निकेतन से हर वर्ष दिल्ली आती है. दुर्गा पूजा के दिनों में पंचमी के दिन दिल्ली आजाते हैं और दसमी के दिन वापस चले जाते हैं. लगभग 30 वर्षों के लगातार इस मंदिर में आ रहे हैं. यह एक विशेष सांस्कृतिक नगाड़े हैं, जिनको मां की आरती के समय बजाया जाता है.


कैसे पहुंचें काली बाड़ी : यह मंदिर नई दिल्ली के मंदिर मार्ग पर प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर के करीब है. यह कनॉट प्लेस से लगभग 2 किमी पश्चिम में स्थित है. निकटतम दिल्ली मेट्रो स्टेशन रामकृष्ण आश्रम मार्ग, दिल्ली है. लद्दाख बौद्ध विहार भी कालीबाड़ी के समान दिशा में स्थित है. आसपास के क्षेत्र गोल मार्केट, काली बाड़ी मार्ग, डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान आदि हैं. बस से पहुंचने के लिए करीबी स्टॉप बिरला मंदिर है.

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