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Delhi: विश्व ट्रॉमा दिवस 2024: हर साल ट्रॉमा के मामलों में इजाफा करती सड़क दुर्घटनाएं, बरतें ये सावधानियां

सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा ट्रॉमा की स्थिति बनती है. इससे जुड़ी जागरूकता बढ़ाने के लिए 17 अक्टूबर को वर्ल्ड ट्रॉमा डे मनाया जाता है.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 2 hours ago

सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा ट्रॉमा की स्थिति बनती है
सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा ट्रॉमा की स्थिति बनती है (ETV Bharat)

नई दिल्ली: प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को मनाया जाने वाला वर्ल्ड ट्रॉमा डे न केवल एक जागरूकता अभियान है, बल्कि यह उन अनगिनत जिंदगियों को समर्पित है जो ट्रॉमा के कारण बर्बाद होती हैं. दुनिया भर में ट्रॉमा से होने वाली मौतें और इसके इलाज पर खर्च होने वाली राशि में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है. आंकड़ों के मुताबिक, ट्रॉमा से दुनिया भर में होने वाली 20 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है, यानी सुरक्षा और प्रबंधन की पुकार है.

ट्रॉमा के कारण और प्रभाव: डॉ. सतीश कुमार भारद्वाज, जो कि कैलाश दीपक हॉस्पिटल में ट्रॉमा एवं इमरजेंसी सर्विसेज विभाग के प्रमुख हैं, ने बताया कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं ने हजारों जिंदगियों को छीन लिया है. पिछले वर्ष के डेटा के अनुसार, भारत में लगभग 4.5 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें से 1 लाख 80 हजार लोग अपनी जान गंवा बैठे. यह आंकड़ा चिंताजनक है, खासकर इसलिए कि इनमे अधिकांश लोग 18 से 45 वर्ष की आयु के थे, जो समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.

डॉ. सतीश कुमार भारद्वाज (ETV Bharat)

ट्रॉमा का मतलब केवल शारीरिक चोट नहीं है; इसके पीछे मानसिक और भावनात्मक प्रभाव भी होते हैं. किसी भी व्यक्ति के जीवन में दर्दनाक घटना, जैसे कि सड़क दुर्घटना, पारिवारिक विवाद या प्राकृतिक आपदा, ट्रॉमा का कारण बन सकती हैं. इन समस्याओं को समय पर समझना और उपचार करना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावी बना सकता है.

विश्व ट्रॉमा दिवस की थीम: वर्क प्लेस ट्रॉमा: इस वर्ष के वर्ल्ड ट्रॉमा डे की थीम "वर्क प्लेस ट्रॉमा" है. कार्यस्थल पर भी दुर्घटनाएं हो सकती हैं, जैसे कि गिरना, मशीन में अंग कट जाना या आग लग जाना. इन घटनाओं को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है. कार्यालयों में उचित सुरक्षा उपायों का पालन करने से पहुंच में सुधार हो सकता है.

ट्रॉमा के मामले में उचित कदम: डॉ. सतीश भारद्वाज ने बताया कि ट्रॉमा के मामले में सबसे पहले प्रयास यह होना चाहिए कि मरीज को जल्द से जल्द उच्च गुणवत्ता वाले अस्पताल में पहुंचाया जाए. दिल्ली में कई अच्छे ट्रॉमा सेंटर हैं, जहां तेजी से और उचित उपचार किया जा सकता है. इसलिए, प्राथमिकता से समय पर सहायता प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

ट्रॉमा को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है
ट्रॉमा को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है (ETV Bharat)

वर्ल्ड ट्रॉमा डे का उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना नहीं है, बल्कि एक सार्थक परिवर्तन लाना है. हमें अपने और अपनी समाज की सुरक्षा के प्रति सजग रहना होगा. कोई भी दुर्घटना केवल व्यक्तिगत नहीं होती; इसका प्रभाव समुदाय पर भी पड़ता है. इससे न केवल जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि हम एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज की ओर बढ़ सकेंगे.

यह भी पढ़ें- दिल्ली में बढ़ने लगी ठंड, तापमान में भी आई गिरावट, जानें अगले 5 दिन कैसा रहेगा मौसम?

यह भी पढ़ें- सावधान! दिल्ली में बेकाबू हुआ डेंगू, एक हफ्ते में मिले 400 से ज्यादा नए मरीज, जानें लक्षण और बचाव के उपाय

नई दिल्ली: प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को मनाया जाने वाला वर्ल्ड ट्रॉमा डे न केवल एक जागरूकता अभियान है, बल्कि यह उन अनगिनत जिंदगियों को समर्पित है जो ट्रॉमा के कारण बर्बाद होती हैं. दुनिया भर में ट्रॉमा से होने वाली मौतें और इसके इलाज पर खर्च होने वाली राशि में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है. आंकड़ों के मुताबिक, ट्रॉमा से दुनिया भर में होने वाली 20 प्रतिशत मौतें भारत में होती हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है, यानी सुरक्षा और प्रबंधन की पुकार है.

ट्रॉमा के कारण और प्रभाव: डॉ. सतीश कुमार भारद्वाज, जो कि कैलाश दीपक हॉस्पिटल में ट्रॉमा एवं इमरजेंसी सर्विसेज विभाग के प्रमुख हैं, ने बताया कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं ने हजारों जिंदगियों को छीन लिया है. पिछले वर्ष के डेटा के अनुसार, भारत में लगभग 4.5 लाख सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें से 1 लाख 80 हजार लोग अपनी जान गंवा बैठे. यह आंकड़ा चिंताजनक है, खासकर इसलिए कि इनमे अधिकांश लोग 18 से 45 वर्ष की आयु के थे, जो समाज के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.

डॉ. सतीश कुमार भारद्वाज (ETV Bharat)

ट्रॉमा का मतलब केवल शारीरिक चोट नहीं है; इसके पीछे मानसिक और भावनात्मक प्रभाव भी होते हैं. किसी भी व्यक्ति के जीवन में दर्दनाक घटना, जैसे कि सड़क दुर्घटना, पारिवारिक विवाद या प्राकृतिक आपदा, ट्रॉमा का कारण बन सकती हैं. इन समस्याओं को समय पर समझना और उपचार करना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावी बना सकता है.

विश्व ट्रॉमा दिवस की थीम: वर्क प्लेस ट्रॉमा: इस वर्ष के वर्ल्ड ट्रॉमा डे की थीम "वर्क प्लेस ट्रॉमा" है. कार्यस्थल पर भी दुर्घटनाएं हो सकती हैं, जैसे कि गिरना, मशीन में अंग कट जाना या आग लग जाना. इन घटनाओं को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है. कार्यालयों में उचित सुरक्षा उपायों का पालन करने से पहुंच में सुधार हो सकता है.

ट्रॉमा के मामले में उचित कदम: डॉ. सतीश भारद्वाज ने बताया कि ट्रॉमा के मामले में सबसे पहले प्रयास यह होना चाहिए कि मरीज को जल्द से जल्द उच्च गुणवत्ता वाले अस्पताल में पहुंचाया जाए. दिल्ली में कई अच्छे ट्रॉमा सेंटर हैं, जहां तेजी से और उचित उपचार किया जा सकता है. इसलिए, प्राथमिकता से समय पर सहायता प्रदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

ट्रॉमा को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है
ट्रॉमा को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है (ETV Bharat)

वर्ल्ड ट्रॉमा डे का उद्देश्य केवल जागरूकता फैलाना नहीं है, बल्कि एक सार्थक परिवर्तन लाना है. हमें अपने और अपनी समाज की सुरक्षा के प्रति सजग रहना होगा. कोई भी दुर्घटना केवल व्यक्तिगत नहीं होती; इसका प्रभाव समुदाय पर भी पड़ता है. इससे न केवल जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि हम एक सुरक्षित और स्वस्थ समाज की ओर बढ़ सकेंगे.

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