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छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल, जानिए पूरी डिटेल्स - WORLD TOURISM DAY 2024

World Tourism Day 2024: हरे भरे जंगलों के बीच बसे छत्तीसगढ़ की सुंदरता बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेती है. प्राचीन मंदिरों से लेकर ऐतिहासिक पर्यटन स्थल तक छत्तीसगढ़ की अलग पहचान बनाते हैं. बस्तर की खूबसूरती से लेकर सिरपुर तक का नजारा पर्यटकों का मन मोह लेता है. 52वें शक्तिपीठ का दर्शन भी यहां अदभुत है. रामजी का ननिहाल और यहां बने कौशल्या माता का मंदिर छत्तीसगढ़ की महिमा में चार चांद लगाता है.

WORLD TOURISM DAY 2024
छत्तीसगढ़ के धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन स्थल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Sep 26, 2024, 10:18 PM IST

Updated : Sep 27, 2024, 5:31 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ के जंगल यहां के धार्मिक और पर्यटक स्थल पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. हर साल बड़ी संख्या में यहां देश और विदेश से पर्यटक आते हैं. मान्यता है कि वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम और माता सीता लक्ष्मण जी के साथ यहां रुके थे. ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए श्री राम और लक्षमण जी ने कई राक्षसों का संहार किया था. चंदखुरी में कौशल्या माता का मंदिर भी है. छत्तीसगढ़ को रामजी का ननिहाल भी कहते हैं. रामजी का ननिहाल होने के नाते अयोध्या नगरी से छत्तीसगढ़ का अलग नाता भी है. विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर आज हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों की जानकारी देने जा रहे हैं.

दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी का दरबार: 52वें शक्तिपीठ के रुप में मां दंतेश्वरी मंदिर की अदभुत पहचान है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि मंदिर का निर्माण करीब 850 साल पहले हुआ था. डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर मंदिर की स्थापना हुई है. करीब 700 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्वार वारंगल से आए राजाओं ने कराया था. सालों पहले यहां बलि की परंपरा भी प्रचलित रही. 1932 से 1933 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था. मां दंतेश्वरी मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मनोकामना ज्योति जलाते हैं.

डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजी हैं मां बमलेश्वरी: राजनांदगांव के डोंगरगढ़ी पहाड़ी पर करीब 1,600 फीट की ऊंचाई पर मां बम्लेश्वरी विराजीं हैं. साल में दो बार यहां पर नवरात्र का मेला लगता है. दोनों मेलों में करीब 20 लाख से ज्यादा भक्त पहुंचते हैं. मां बमलेश्वरी के दरबार में विदेशों से भी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मां बम्लेश्वरी मंदिर में भी मनोकामना जोत प्रज्ज्वलित करने की परंपरा है.

भोरमदेव मंदिर: कबीरधाम के चौरागांव में प्रसिद्ध भोरमदेव का ऐतिहासिक मंदिर है. भोरमदेव मंदिर लगभग एक हजार साल पुराना है. इसकी राजधानी रायपुर से दूरी लगभग 125 किलोमीटर है. भोरमदेव मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है. मंदिर पहाड़ियों के बीच बना है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था. भोरमदेव मंदिर की झलक मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर से मिलती जुलती है. जिस वजह से इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” के नाम से भी जाना जाता है.

बस्तर के 'ढोलकल गणेश': बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव से सटे बैलाडीला के पहाड़ पर 'ढोलकल गणेश' जी विराजे हैं. तीन हजार फीट ऊंची चोटी पर ललितासन में विराजित प्राचीन गणेश जी की ये मूर्ति अपने आप में अनूठी है. कहा जाता है कि मूर्ति 11वीं सदी की है. सालों तक सिर्फ गांव के लोग ही इसे जानते रहे. ढोलकल में स्थानीय लोगों के साथ देशी विदेशी सैलानी भी आने लगे हैं.

चंदखुरी गांव में कौशल्या माता का मंदिर: रायपुर से 17 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी गांव हैं. इस गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है. यहां तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर है, जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया था. रामजी का ननिहाल भी छत्तीसगढ़ को माना जाता है. रामजी का ननिहाल छत्तीसगढ़ होने के चलते अयोध्या नगरी से छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक और धार्मिक नाता रहा है.

नारायणपाल मंदिर: बस्तर की विरासत अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान के लिए जानी जाती है. इंद्रावती नदी के पास प्राचीन विष्णु जी का मंदिर भी है. इंद्रवती और नारंगी नदियों के संगम पर बना ये मंदिर प्राचीन वास्तुकला का अदभुत नजारा पेश करता है. नारायणपाल गांव में मंदिर होने के चलते इस मंदिर का नाम नारायणपाल मंदिर रखा गया.

कोटमसर गुफा: कोटमसर गुफा जगदलपुर में है. कोटमसर गुफा पर्यावरण से प्रेम करने वाले पर्यटकों को खूब भाता है. कोलेब नदी की सहायक नदी केगर पर कोटमसर गुफा है. चूना पत्थर बनी ये गुफा है. कोटमसर गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से 560 फीट ऊंची है. कोटमसर गुफा को देखने के लिए हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं. मॉनसून के दौरान कोटमसर गुफा को बंद कर दिया जाता है.

कैलाश गुफा: बस्तर की कैलाश गुफा को सबसे प्रचीन गुफाओं में से एक माना जाता है. ये गुफा भी चूना पत्थर से बनी है. गुफा के अंदर स्टैलेक्टसाइट्स और स्टालाग्माइट्स इसे कैलाश का रुप देते हैं. गुफा में बनी ड्रिपस्टोन संरचनाओं को स्थानीय लोगों द्वारा पूजा भी जाता है. मॉनसून के दौरान यहां भी पर्टयकों को गुफा के भीतर जाने से रोक दिया जाता है.

कांगेर घाटी: कांगेर घाटी करीब 200 वर्ग किलोमीटर में फैला राष्ट्रीय उद्यान है. वन्यजीवों के अलावा यहां सैकड़ों प्रजाती के पेड़ पौधे पाए जाते हैं. बस्तर की पहाड़ी मैना भी यहां मिलती है. कहते हैं कि बस्तर की पहाड़ी मैना इंसानों की तरह आवाज निकालने में माहिर होती है. कांगेर घाटी मगरमच्छों के लिए भी काफी फेमस है.

बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण: बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण महासमुंद जिले में है. बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण 250 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. दुनिया भर से सैकड़ों पर्यटक इस अभ्यारण्य में हरे-भरे जंगल का आनंद लेने आते हैं. हिरणों के अलावा यहां कई दुर्लभ वन्य जीव भी पाए जाते हैं.

महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय: महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर में है. इसका निर्माण राजा महंत घासीदास के समय में किया गया था. रिसर्च और इतिहास में जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय अपने आप में अलग और अनूठा है.

सिरपुर: सिरपुर अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के चलते हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है. सिरपुर स्थल पवित्र महानदी के किनारे पर बसा हुआ है. सिरपुर में सांस्कृतिक और वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह है. सोमवंशी राजाओं के काल में सिरपुर को श्रीपुर के नाम से जाना जाता था .धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आज भी सिरपुर का अपना अलग स्थान इतिहास में है.

मां महामाया मंदिर: बिलासपुर के रतनपुर में महामाया मंदिर है. 52 शक्तिपीठों में महामाया मंदिर की गिनती होती है. महामाया मंदिर मां सरस्वती और मां लक्ष्मी जी को समर्पित है. कलचुरियों के शासनकाल के दौरान इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मां के मंदिर मेंं स्थापित गोड्डे महामाया को कोसलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है.

हटकेश्वर मंदिर: रायपुर का हटकेश्वर मंदिर पर्यटकों की हमेशा से पहली पसंद रहा है. हटकेश्वर मंदिर में भगवान शिव विराजे हैं. मंदिर को हटकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के बाहरी हिस्सों में नौ ग्रहों और देवातओं का वास माना जाता है. वास्तु कला की दृष्टि से हटकेश्वर मंदिर अपने आप में अदभुत है. सावन मास में हटकेश्वर में जल अर्पण करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं ऐसी मान्यता भक्तों के बीच है.

पवित्र जैतखाम: बलौदाबाजार के गिरौदपुरी में सतनामी समुदाय का पवित्र जैतखाम स्तंभ है. माना जाता है कि साल 1842 में गिरौदपुरी में सबसे पहले बाबा गुरु घासीदास द्वारा ही इसकी स्थापना की गई. संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास ने ही इसकी स्थापना के बाद नारा दिया कि "मनखे मनखे एक समान". संत बाबा गुरु घासीदास ने इसे एकता का प्रतीक और सत्य एवं अहिंसा के स्मारक के तौर पर प्रचारित किया.

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दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी का दरबार: 52वें शक्तिपीठ के रुप में मां दंतेश्वरी मंदिर की अदभुत पहचान है. इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि मंदिर का निर्माण करीब 850 साल पहले हुआ था. डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर मंदिर की स्थापना हुई है. करीब 700 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्वार वारंगल से आए राजाओं ने कराया था. सालों पहले यहां बलि की परंपरा भी प्रचलित रही. 1932 से 1933 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था. मां दंतेश्वरी मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मनोकामना ज्योति जलाते हैं.

डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजी हैं मां बमलेश्वरी: राजनांदगांव के डोंगरगढ़ी पहाड़ी पर करीब 1,600 फीट की ऊंचाई पर मां बम्लेश्वरी विराजीं हैं. साल में दो बार यहां पर नवरात्र का मेला लगता है. दोनों मेलों में करीब 20 लाख से ज्यादा भक्त पहुंचते हैं. मां बमलेश्वरी के दरबार में विदेशों से भी भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मां बम्लेश्वरी मंदिर में भी मनोकामना जोत प्रज्ज्वलित करने की परंपरा है.

भोरमदेव मंदिर: कबीरधाम के चौरागांव में प्रसिद्ध भोरमदेव का ऐतिहासिक मंदिर है. भोरमदेव मंदिर लगभग एक हजार साल पुराना है. इसकी राजधानी रायपुर से दूरी लगभग 125 किलोमीटर है. भोरमदेव मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है. मंदिर पहाड़ियों के बीच बना है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था. भोरमदेव मंदिर की झलक मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर से मिलती जुलती है. जिस वजह से इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” के नाम से भी जाना जाता है.

बस्तर के 'ढोलकल गणेश': बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव से सटे बैलाडीला के पहाड़ पर 'ढोलकल गणेश' जी विराजे हैं. तीन हजार फीट ऊंची चोटी पर ललितासन में विराजित प्राचीन गणेश जी की ये मूर्ति अपने आप में अनूठी है. कहा जाता है कि मूर्ति 11वीं सदी की है. सालों तक सिर्फ गांव के लोग ही इसे जानते रहे. ढोलकल में स्थानीय लोगों के साथ देशी विदेशी सैलानी भी आने लगे हैं.

चंदखुरी गांव में कौशल्या माता का मंदिर: रायपुर से 17 किलोमीटर की दूरी पर चंदखुरी गांव हैं. इस गांव को भगवान राम की मां कौशल्या का जन्म स्थान माना जाता है. यहां तालाब के बीचों-बीच माता कौशल्या का मंदिर है, जो 10वीं शताब्दी में बनाया गया था. रामजी का ननिहाल भी छत्तीसगढ़ को माना जाता है. रामजी का ननिहाल छत्तीसगढ़ होने के चलते अयोध्या नगरी से छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक और धार्मिक नाता रहा है.

नारायणपाल मंदिर: बस्तर की विरासत अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान के लिए जानी जाती है. इंद्रावती नदी के पास प्राचीन विष्णु जी का मंदिर भी है. इंद्रवती और नारंगी नदियों के संगम पर बना ये मंदिर प्राचीन वास्तुकला का अदभुत नजारा पेश करता है. नारायणपाल गांव में मंदिर होने के चलते इस मंदिर का नाम नारायणपाल मंदिर रखा गया.

कोटमसर गुफा: कोटमसर गुफा जगदलपुर में है. कोटमसर गुफा पर्यावरण से प्रेम करने वाले पर्यटकों को खूब भाता है. कोलेब नदी की सहायक नदी केगर पर कोटमसर गुफा है. चूना पत्थर बनी ये गुफा है. कोटमसर गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से 560 फीट ऊंची है. कोटमसर गुफा को देखने के लिए हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं. मॉनसून के दौरान कोटमसर गुफा को बंद कर दिया जाता है.

कैलाश गुफा: बस्तर की कैलाश गुफा को सबसे प्रचीन गुफाओं में से एक माना जाता है. ये गुफा भी चूना पत्थर से बनी है. गुफा के अंदर स्टैलेक्टसाइट्स और स्टालाग्माइट्स इसे कैलाश का रुप देते हैं. गुफा में बनी ड्रिपस्टोन संरचनाओं को स्थानीय लोगों द्वारा पूजा भी जाता है. मॉनसून के दौरान यहां भी पर्टयकों को गुफा के भीतर जाने से रोक दिया जाता है.

कांगेर घाटी: कांगेर घाटी करीब 200 वर्ग किलोमीटर में फैला राष्ट्रीय उद्यान है. वन्यजीवों के अलावा यहां सैकड़ों प्रजाती के पेड़ पौधे पाए जाते हैं. बस्तर की पहाड़ी मैना भी यहां मिलती है. कहते हैं कि बस्तर की पहाड़ी मैना इंसानों की तरह आवाज निकालने में माहिर होती है. कांगेर घाटी मगरमच्छों के लिए भी काफी फेमस है.

बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण: बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण महासमुंद जिले में है. बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण 250 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. दुनिया भर से सैकड़ों पर्यटक इस अभ्यारण्य में हरे-भरे जंगल का आनंद लेने आते हैं. हिरणों के अलावा यहां कई दुर्लभ वन्य जीव भी पाए जाते हैं.

महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय: महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर में है. इसका निर्माण राजा महंत घासीदास के समय में किया गया था. रिसर्च और इतिहास में जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय अपने आप में अलग और अनूठा है.

सिरपुर: सिरपुर अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के चलते हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है. सिरपुर स्थल पवित्र महानदी के किनारे पर बसा हुआ है. सिरपुर में सांस्कृतिक और वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह है. सोमवंशी राजाओं के काल में सिरपुर को श्रीपुर के नाम से जाना जाता था .धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आज भी सिरपुर का अपना अलग स्थान इतिहास में है.

मां महामाया मंदिर: बिलासपुर के रतनपुर में महामाया मंदिर है. 52 शक्तिपीठों में महामाया मंदिर की गिनती होती है. महामाया मंदिर मां सरस्वती और मां लक्ष्मी जी को समर्पित है. कलचुरियों के शासनकाल के दौरान इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मां के मंदिर मेंं स्थापित गोड्डे महामाया को कोसलेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है.

हटकेश्वर मंदिर: रायपुर का हटकेश्वर मंदिर पर्यटकों की हमेशा से पहली पसंद रहा है. हटकेश्वर मंदिर में भगवान शिव विराजे हैं. मंदिर को हटकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के बाहरी हिस्सों में नौ ग्रहों और देवातओं का वास माना जाता है. वास्तु कला की दृष्टि से हटकेश्वर मंदिर अपने आप में अदभुत है. सावन मास में हटकेश्वर में जल अर्पण करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं ऐसी मान्यता भक्तों के बीच है.

पवित्र जैतखाम: बलौदाबाजार के गिरौदपुरी में सतनामी समुदाय का पवित्र जैतखाम स्तंभ है. माना जाता है कि साल 1842 में गिरौदपुरी में सबसे पहले बाबा गुरु घासीदास द्वारा ही इसकी स्थापना की गई. संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास ने ही इसकी स्थापना के बाद नारा दिया कि "मनखे मनखे एक समान". संत बाबा गुरु घासीदास ने इसे एकता का प्रतीक और सत्य एवं अहिंसा के स्मारक के तौर पर प्रचारित किया.

World Tourism Day 2023: सरगुजा में मैनपाट के अलावा भी हैं कई खूबसूरत पर्यटन स्थल, जानिए
छत्तीसगढ़ की महिला पुजारी, बाबा रामदेवजी मंदिर में पिछले आठ सालों से करा रही हैं पूजा - FIRST WOMAN PUJARI OF RAIPUR
सरगुजा के अनछुए पर्यटन स्थल, जिनकी खूबसूरती नहीं किसी से कम - Tourist places
Last Updated : Sep 27, 2024, 5:31 PM IST
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