जयपुर : हाल ही में राजस्थान के भरतपुर में एक छोटी बच्ची पर डॉग्स ने हमला कर दिया था और इस हमले में बच्ची जख्मी हो गई थी. भरतपुर ही नहीं आमतौर पर राजस्थान के कई क्षेत्रों में डॉग के काटने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इससे रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा हमेशा बना रहता है. वहीं, रेबीज जैसी बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 28 सितंबर को वर्ल्ड रेबीज डे मनाया जाता है.
जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हर दिन डॉग के काटने के बाद बड़ी संख्या में मरीज पहुंचते हैं. जयपुर के सवाईमान सिंह अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार हर साल डॉग, बंदर जैसे जानवरों के काटने के मामले सामने आ रहे हैं और साल दर साल ऐसे मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. चिकित्सकों का कहना है कि आज भी आमजन को यह जानकारी नहीं है कि श्वान के काटने पर किस तरह का प्राथमिक इलाज मरीज को दिया जाए. यदि सही समय पर सही इलाज मरीज को मिल जाए तो काफी हद तक श्वान द्वारा काटे गए मरीज की जान बचाई जा सकती है.
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रेबीज के लक्षण : सवाई मानसिंह अस्पताल के एंटी रेबीज स्पेशलिस्ट व मेडिकल कॉलेज के अतिरिक्त प्रधानाचार्य डॉ. गोवर्धन मीणा ने बताया कि एसएमएस में हर दिन बड़ी संख्या में डॉग के काटने के मामले सामने आते हैं. वहीं, रेबीज के होने पर मरीजों की जान पर बन आती है. आगे उन्होंने बताया कि रेबीज के लक्षण काफी खतरनाक होते हैं. यदि ऐसा कोई भी जानवर काट ले, जिससे रेबीज होने का खतरा है तो जानवर के काटने के तुरंत बाद उसे अस्पताल लाना चाहिए. वहीं, रेबीज होने की सूरत में काटे गए स्थान पर कुछ समय बाद झनझनाहट होने लगती है. साथ ही मरीज को हवा और पानी से डरने लगता है. कुछ मामलों में मरीज में श्वान जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं और आवाज भी अचानक से भारी हो जाती है.
डॉग के काटने पर क्या करें : डॉ. मीणा ने बताया कि आमतौर पर डॉग या अन्य जानवर छोटे बच्चों पर ज्यातर हमला करते हैं. यदि डॉग ने शरीर के किसी अंग पर काट लिया है तो सबसे पहले घाव को लगातार 10 मिनट तक पानी से धोना चाहिए. उसके बाद डिटर्जेंट के पानी से घाव को धो सकते हैं. चिकित्सकों का दावा है कि इससे करीब 70 फीसदी से अधिक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं. वहीं, इसके बाद मरीज को अस्पताल लाकर उसे रेबीज का टीका लगवाना चाहिए.
क्या नहीं करें : डॉ. मीणा का कहना है कि डॉग या फिर बंदर के काटने पर घाव के स्थान पर कभी भी चूना, लाल मिर्च या नमक नहीं लगाना चाहिए और न ही जख्म पर कॉपर या लोहा रगड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. डॉ. मीणा का कहना है कि आमतौर पर पहले मरीज के पेट में 14 इंजेक्शन रेबीज से बचने के लिए लगाए जाते थे, लेकिन अब सिर्फ पांच इंजेक्शन बाजू पर लगाए जाते हैं. टीका ही रेबीज का इलाज है और यदि रेबीज हो जाए और इलाज नहीं करवाया जाए तो फिर मरीज की जान भी जा सकती है.