कुचामनसिटी: हर वर्ष की भांति इस बार भी 9 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व डाक दिवस मनाया जा रहा है. संचार के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में तेजी से बदलाव हुआ है, जिसने लोगों के जीवन पर गहरा असर डाला है. संचार प्रौद्योगिकी के आगमन ने दूरसंचार माध्यमों का स्वरूप ही बदल दिया है. सूचना क्रांति ने संपूर्ण विश्व को समेटकर एक 'वैश्विक गांव' में बदल दिया है. इन सब बदलावों के बावजूद चिट्ठियों का अपना क्रेज है. उनका चलन कम भले ही हो गया हो, लेकिन बंद नहीं हुआ. समय के साथ डाकघरों ने अपना काम भी बदल लिया है.
जिले में 170 डाकघर: डीडवाना डाकघर के निरीक्षक राज चौधरी ने बताया कि जिले में लगभग 170 डाकघर हैं और वर्तमान में सभी संचालित हैं. ऑनलाइन के इस जमाने में डाक घरों का काम काफी कम हो चुका है, पहले सभी तरह की पत्र पत्रिकाएं डाक द्वारा आती थी. अब केवल सरकारी डॉक्यूमेंट जैसे आधार कार्ड, एलआईसी,वोटर आईडी, पैन कार्ड या कोई सरकारी नोटिस आदि ही डाक से आते हैं. पहले रोज हजारों डाक आती थी, अब केवल 300 से 400 डाक ही रोज के प्राप्त हो रही हैं.
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अब काम का तरीका भी बदला: चौधरी बताते हैं कि मोबाइल और इंटरनेट के जमाने में डाकघर भले ही पुराना सा लगता हो, लेकिन इसकी अहमियत कम नहीं हुई हैं, तकनीक ने संचार का माध्यम बदला तो डाकघर भी अपडेट हो गए हैं. आजकल डाकघरों में पासपोर्ट, रेलवे टिकट, आधार अपग्रेडेशन, कॉमन सर्विस सेंटर, आधार से जुड़ी पेमेंट सर्विस मुहैया कराई जा रही है.
डाक विभाग के पास है कर्मचारियों का मजबूत नेटवर्क: भारत में डाक सेवाओं की शुरूआत सन् 1766 में की गई थी. इसके बाद 1854 में देश में पहला डाकघर स्थापित किया गया था.डाक सेवाओं के विस्तार का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि डाक विभाग के पास डाक कर्मियों का सबसे मजबूत नेटवर्क है, जो पहाड़ों, तटीय इलाकों और सीमा क्षेत्रों जैसे दुर्गम इलाकों में भी चिट्ठियां और पत्र-पत्रिकाएं पहुंचाने का काम करते हैं. यहां आज भी इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाएं नहीं पहुंची है. डाक विभाग सरकारी कार्यालयों के समस्त प्रकार के पत्र गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के साथ ही पार्सल, बैंकिंग, बीमा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध करवा रहा है.