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विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2024: चंडीगढ़ मौसम वैज्ञानिक ने बताए तेजी से बदलते क्लाइमेट को बचाने के उपाय - World Meteorological Day 2024 - WORLD METEOROLOGICAL DAY 2024

World Meteorological Day 2024: हर साल 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद पृथ्वी के वायुमंडल की रक्षा में लोगों के काम और उनके व्यवहार की भूमिका के महत्व को उजागर करना है. इस दिवस के जरिए लोगों को मौसम को लेकर जागरूक भी किया जाता है.

World Meteorological Day 2024
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Mar 23, 2024, 10:33 AM IST

विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2024: चंडीगढ़ मौसम वैज्ञानिक बोले- तेजी से बदलते क्लाइमेट को बदलना जरूरी

चंडीगढ़: विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना के उपलक्ष्य में हर साल 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद पृथ्वी के वायुमंडल की रक्षा में लोगों के काम और उनके व्यवहार की भूमिका के महत्व को उजागर करना है. इस दिवस के जरिए लोगों को मौसम को लेकर जागरूक भी किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान चंडीगढ़ मौसम विभाग के वैज्ञानिक एके सिन्हा ने बताया कि 1950 में 23 मार्च को मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी के लिए विश्व मौसम विज्ञान संगठन स्थापित किया गया था.

विश्व मौसम विज्ञान दिवस की घोषणा विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा स्थापना के 1 साल बाद की गई थी. मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है. विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है. इस विशेष दिन को मनाने का मकसद जागरूकता पैदा करना और जलवायु परिवर्तन को बेहतर करने के लिए आम लोगों द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर भी प्रकाश डालता है.

चंडीगढ़ मौसम विभाग के वैज्ञानिक एके सिन्हा ने कहा कि विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम जन जीवन प्रभावित हो रहा है. जलवायु एक ऐसी चीज है, जिसे एक दिन में नहीं बताया जा सकता. ये लंबे समय से चलती आ रही एक्टिविटी है. मानसून का पैटर्न आज के समय का पैटर्न नहीं है. ये हजारों सालों से चला आ रहा असर है. जो जुलाई से लेकर सितंबर अक्टूबर तक रहता है.

'तेजी से प्रभावित हो रहा जनजीवन': एके सिन्हा ने कहा कि मौसम में बदलाव का एक कारण नहीं है. इसके लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं. आज के समय में विश्व स्तर में हो रहे बड़े-बड़े विस्फोट ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करते हैं. जिसकी ताजा उदाहरण रूस और यूक्रेन में होने वाले हमले और फिलिस्तीन और गाज़ा में होने वाले हमले हैं. जिसका प्रभाव आने वाले सालों में किसी न किसी रूप में देखा जाएगा.

ये भी पढ़ें- हरियाणा में गहराता जा रहा जल संकट, पानी की मांग और आपूर्ति में बढ़ता जा रहा अंतर, हर साल 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी - World Water Day 2024

विश्व मौसम विज्ञान दिवस 2024: चंडीगढ़ मौसम वैज्ञानिक बोले- तेजी से बदलते क्लाइमेट को बदलना जरूरी

चंडीगढ़: विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना के उपलक्ष्य में हर साल 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है. इसका मकसद पृथ्वी के वायुमंडल की रक्षा में लोगों के काम और उनके व्यवहार की भूमिका के महत्व को उजागर करना है. इस दिवस के जरिए लोगों को मौसम को लेकर जागरूक भी किया जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान चंडीगढ़ मौसम विभाग के वैज्ञानिक एके सिन्हा ने बताया कि 1950 में 23 मार्च को मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी के लिए विश्व मौसम विज्ञान संगठन स्थापित किया गया था.

विश्व मौसम विज्ञान दिवस की घोषणा विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा स्थापना के 1 साल बाद की गई थी. मौसम और जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है. विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है. इस विशेष दिन को मनाने का मकसद जागरूकता पैदा करना और जलवायु परिवर्तन को बेहतर करने के लिए आम लोगों द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर भी प्रकाश डालता है.

चंडीगढ़ मौसम विभाग के वैज्ञानिक एके सिन्हा ने कहा कि विश्व में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आम जन जीवन प्रभावित हो रहा है. जलवायु एक ऐसी चीज है, जिसे एक दिन में नहीं बताया जा सकता. ये लंबे समय से चलती आ रही एक्टिविटी है. मानसून का पैटर्न आज के समय का पैटर्न नहीं है. ये हजारों सालों से चला आ रहा असर है. जो जुलाई से लेकर सितंबर अक्टूबर तक रहता है.

'तेजी से प्रभावित हो रहा जनजीवन': एके सिन्हा ने कहा कि मौसम में बदलाव का एक कारण नहीं है. इसके लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं. आज के समय में विश्व स्तर में हो रहे बड़े-बड़े विस्फोट ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करते हैं. जिसकी ताजा उदाहरण रूस और यूक्रेन में होने वाले हमले और फिलिस्तीन और गाज़ा में होने वाले हमले हैं. जिसका प्रभाव आने वाले सालों में किसी न किसी रूप में देखा जाएगा.

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