लखनऊ : उत्तर प्रदेश सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. यहां के युवा किसी न किसी कारण डिप्रेशन और एंग्जाइटी की गिरफ्त में हैं. आज के समय में हर कोई किसी न किसी तनाव से जरूर पीड़ित है. विशेषज्ञ की मानें तो छोटा सा छोटा कारण मौत की वजह बन रहा है. युवाओं में लगातार तनाव बढ़ रहा है. कई बार इस तनाव का स्तर इतना अधिक होता है कि युवा आत्महत्या तक कर लेते हैं.
लखनऊ निवासी एक महिला बताती हैं कि वह कंटेंट राइटर के तौर में ऑनलाइन काम करती थीं. शुरुआत में असमय काम आता था तो उन्हें दिक्कत नहीं होती क्योंकि वह काम सीख रही थीं, लेकिन जब असमय काम उनकी रोज की दिनचर्या का हिस्सा बन गया तो उन्हें कई तरह की दिक्कतें होने लगीं. अत्यधिक काम की वजह से नींद न पूरी होना, थकान, चिड़चिड़ापन और तनाव बढ़ने लगा. वह बताती हैं कि जब यह चीजें उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर करने लगीं तो रिजाइन करना ही पड़ा.
साइकोलॉजिस्ट अदिति पाण्डेय ने बताया कि इस साल मानसिक स्वास्थ्य दिवस का विषय ‘कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य’ है, जो इस बात पर जोर देता है कि सुरक्षित और सहयोगी कार्यस्थल न केवल कर्मचारियों को स्थिरता और उद्देश्य प्रदान करते हैं, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं. इसके विपरीत, खराब कामकाजी परिस्थितियां जैसे भेदभाव, उत्पीड़न, कम वेतन और असुरक्षित नौकरियां मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, विश्व में हर साल डिप्रेशन और एंग्जाइटी के कारण वर्किंग डे प्रभावित होते हैं जो स्पष्ट करता है कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न देना कितना महंगा साबित हो सकता है.
बचाव |
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- दिन की शुरुआत खुशी-खुशी करें और एक अच्छी दिनचर्या से करें. |
- बहुत जल्दी हताश न हों. छोटी बातों पर भी खुश होना सीखें. |
- अधिक समय मोबाइल में न बिताकर बल्कि परिवार के बीच में बैठें और घर के सदस्यों से बातचीत करें. |
- अपनी दिनचर्या में व्यायाम और योगा को जरूर शामिल करें. |
- अच्छा और हेल्दी खाना खाएं. |
- परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए बाहर घूमने जाएं. |
- अगर घर में बच्चे हैं तो कुछ समय उनके साथ खेलने कूदने में बिताएं. |
- किसी भी बात को अधिक न सोचें. |
- अगर आपके दिमाग में कोई बात चल रही है तो अपने परिजन या दोस्तों से शेयर करें. |
केजीएमयू के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की प्रो. डॉ. आदर्श त्रिपाठी बताते हैं कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है. मानसिक स्वास्थ्य का सीधा असर न केवल व्यक्ति के कामकाज पर, बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है. मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित कर्मचारी की उत्पादकता पर असर पड़ता है. इसके साथ ही काम से अनुपस्थिति, नौकरी छोड़ने की प्रवृत्ति जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं. इन समस्याओं का सीधा असर कार्यस्थलों के साथ-साथ समाज पर भी पड़ता है.
ऐसे में कर्मचारियों के प्रतिनिधि संगठनों को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए कामकाजी वातावरण को सुरक्षित बनाएं. इसमें उचित मानसिक स्वास्थ्य समर्थन, कर्मचारियों के लिए लचीले कामकाजी घंटे, तनाव प्रबंधन के उपाय और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम शामिल होने चाहिए, तभी हम कार्यस्थलों पर बेहतर माहौल बना पाएंगे.
उन्होंने कहा कि यदि आप मानसिक स्वास्थ्य संबंधी किसी भी तरह की जानकारी और परामर्श लेना चाहते हैं उसके लिये केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई टोल-फ्री सेवा ले सकते हैं. जिसका नंबर 14416 और 18008914416 है.
सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति सिंह ने कहा कि एक के बाद एक बीमारी से पीड़ित होने के चलते मरीज तनाव के कारण अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं. अवसाद के कारण मरीज को कई प्रकार की दिक्कत परेशानी हो रही है. ऐसे मरीजों की संख्या अस्पताल की ओपीडी में रोजाना बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि इस तरह के मरीज ओपीडी में 10 से 15 आते ही हैं, जिन्हें अन्य विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया जाता है, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि मरीज के मस्तिष्क में कोई बात घर कर गई होती है, जिस कारण मरीज बार-बार उसे सोचता रहता है. जिसके बाद तबीयत और भी गंभीर हो जाती है.
मरीज को ऐसा लगता है कि क्या वह इस बीमारी से उभर पाएगा भी या नहीं, क्योंकि बीते दो वर्षों में लोगों की इम्युनिटी कमजोर हुई है. कमजोर इम्युनिटी होने के चलते मरीज जल्दी-जल्दी अन्य बीमारियों से भी पीड़ित हो जाते हैं. इसके बाद अस्पताल की ओपीडी में रोजाना ऐसे मरीजों की संख्या अधिक होती है जो यह बताते हैं कि बीते एक साल या छह महीने से वह शरीर में दर्द से परेशान हैं. जिन्हें आर्थोपेडिक विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया गया है या फिर ऐसे मरीज जिन्हें बेचैनी-घबराहट होती है, उन मरीज को कार्डियोलॉजी विभाग से मनोरोग विभाग में रेफर किया जाता है.
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति सिंह ने बताया कि रोजाना अस्पताल की ओपीडी में 150 से अधिक ही मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. कोविड के बाद से मरीजों की संख्या में एकाएक बढ़ोतरी हुई है. इससे पहले मनोरोग विभाग में इतने मरीज इलाज के लिए नहीं पहुंचते थे, लेकिन जब से कोविड-19 ने दस्तक दी इसके बाद से मनोरोग विभाग में अवसाद से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ने लगी. मौजूदा समय में ओपीडी में जो मरीज आते हैं उनकी शिकायत रहती है कि उन्हें जल्द से जल्द ठीक होना है. जिंदगी बहुत कठिन लग रही है. जिंदगी बोझिल लग रही है. जीने की इच्छा खत्म हो गई है. हमेशा घबराहट, बेचैनी, चक्कर आना जैसी समस्या हो रही है.
बलरामपुर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ ने कहा कि मौजूदा समय में इन मरीजों को खुश रहने की आदत डालनी होगी, ताकि यह मरीज बीमारी से उभर सकें. घर का वातावरण अच्छा रखना होगा. लड़ाई झगड़े नोकझोंक से बचें, क्योंकि जब घर में इस तरह का माहौल रहता है तो मरीज के मस्तिक में यही बातें घर बना लेती हैं. जिसके चलते वह अपनी बीमारी से तो परेशान रहता ही है और इसी के साथ बाकी बातों को भी जोड़ता चलता है. दिमाग में सभी चीजें एक साथ चलने के बाद मरीज पूरी तरह से अवसाद से ग्रसित हो जाता है और उसे ऐसा महसूस होने लगता है कि वह कभी ठीक हो पाएगा या नहीं, और डिप्रेशन में चला जाता है. कुछ भी उसके साथ अच्छा नहीं हो रहा है, घर परिवार में अच्छा नहीं हो रहा है, इस तरह की भावनाएं नहीं आनी चाहिए.
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