नई दिल्ली: यूनाइटेड नेशन्स द्वारा 21 दिसंबर को वर्ल्ड मेडिटेशन डे के रूप में घोषित किए जाने से मेडिटेशन की महत्ता एक बार फिर से विश्व स्तर पर उजागर हुई है. इस मौके पर ध्यान की क्रांति के अग्रदूत माने जाने वाले मेडिटेशन गुरु मुनेश सिन्हा का उल्लेख करना अनिवार्य है. मुनेश सिन्हा ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मल्टीनेशनल कंपनी (एमएनसी) में सफलतापूर्वक नौकरी करते हुए बिताया. लेकिन, करियर के चरम पर उन्होंने कॉर्पोरेट जगत को अलविदा कह, स्वयं की आध्यात्मिक यात्रा पर निकलने का साहसिक फैसला लिया.
बीते 20 वर्षों में उन्होंने 171 देशों के लाखों लोगों को मेडिटेशन के जरिए मानसिक शांति और आंतरिक खुशी की राह दिखाई. मुनेश सिन्हा गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित रेल विहार में पत्नी व बेटे के साथ रहते हैं. ईटीवी भारत के संवाददाता धनंजय वर्मा ने इस विशेष अवसर पर मुनेश सिन्हा से विशेष बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत की विशेष बातें..
कॉर्पोरेट जीवन से अध्यात्म की ओर सफर
ईटीवी भारत से बातचीत में मुनेश सिन्हा ने बताया कि कॉर्पोरेट जीवन में उन्होंने दिखावे, तनाव और मानसिक अशांति को करीब से देखा. वे कहते हैं, "हर तरफ सिर्फ झूठ और फरेब था. जीवनकी इस भागदौड़ में मैं अपनी आंतरिक शांति को खो चुका था. बचपन से ध्यान के प्रति झुकाव ने मुझे रास्ता दिखाया. मैंने फैसला किया कि अब मैं न केवल खुद को समझूंगा, बल्कि अपनी चेतना के जरिए दुनिया के कल्याण के लिए कार्य करूंगा." शुरुआती दिनों में उन्हें तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. यह नहीं पता था कि घर कैसे चलेगा, लेकिन जैसे ही आप सीमित से असीमित की ओर बढ़ते हैं ब्रह्मांड आपके लिए सब कुछ व्यवस्थित कर देता है.
विश्व स्तर पर ध्यान का प्रचार-प्रसार
मुनेश सिन्हा के साधना और प्रयासों का असर इतना व्यापक हुआ कि सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों ने उनके काम को सराहा. उन्होंने बताया कि दीपक चोपड़ा जैसे विश्व प्रसिद्ध ध्यान गुरुओं के साथ भी वह जुड़े. उनकी साधना का प्रभाव इतना गहरा है कि लोग दुनिया के कोने-कोने से उनके पास आते हैं. उन्होंने बताया कि प्रतिष्ठित कंपनियों के अधिकारी, जो गंभीर अवसाद और तनाव से जूझ रहे थे, उनके सानिध्य में आकर पूर्णतः ठीक हो गए. उन्होंने इन लोगों को ध्यान कराकर और ध्यान को याद दिलाकर ठीक किया.
ध्यान: जीवन जीने की कला
मुनेश सिन्हा का मानना है कि ध्यान केवल करने की चीज़ नहीं, बल्कि जीने की कला है. वे कहते हैं कि अधिकांश लोग ध्यान को एक प्रक्रिया की तरह अपनाते हैं, लेकिन ध्यान जीवन की एक अवस्था है. इसे समझना और अपनाना चाहिए. मुनेश सिन्हा के अनुसार यदि आप ध्यान के बाद फिर से नकारात्मकता और व्यर्थ बातों में उलझते हैं, तो ध्यान का प्रभाव खत्म हो जाता है. सबसे पहले अपने मन और विचारों को शांत करना जरूरी है. मौन रहना और अपने भीतर की यात्रा करना ध्यान की पहली सीढ़ी है.
गरीब बच्चों के लिए शिक्षा की पहल
मेडिटेशन के साथ ही मुनेश सिन्हा ने समाज सेवा को भी प्राथमिकता दी. वह आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए पीपीवाई स्कूल आफ हैपिनेस नाम से एक स्कूल की स्थापना की है. इन बच्चों से जब उनके भविष्य के सपनों के बारे में पूछा जाता है, तो वे कहते हैं कि "हम अच्छा इंसान बनना चाहते हैं."
ग्लोबल माइंड चेंज की आवश्यकता
मुनेश सिन्हा के अनुसार आज के समय में दुनिया की ज्यादातर समस्याओं का मूल कारण यह है कि लोग अपनी आत्मा से जुड़े नहीं हैं. चाहे वह आतंकवाद हो, पर्यावरण संकट हो या आपसी संघर्ष—सभी का समाधान ध्यान के जरिए संभव है. वे कहते हैं कि जैसे ही आप अपनी आंतरिक शांति को पहचानते हैं, आपकी चेतना असीमित की ओर बढ़ने लगती है. इससे आपका मन शांत होता है और आप दुनिया के तनावों से ऊपर उठ जाते हैं. वो कहते हैं कि ध्यान का असली उद्देश्य दुनिया में रहते हुए दुनिया से ऊपर उठना है. उनका मानना है कि ध्यान मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने का सबसे प्रभावी साधन है.
ध्यान से बदलता जीवन
आज मुनेश सिन्हा न केवल अपने लिए बल्कि लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं. उनका कहना है, "अगर हर व्यक्ति रोजाना कुछ समय ध्यान में लगाए, तो दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान संभव है. वर्ल्ड मेडिटेशन डे का यह दिन उन जैसे गुरुओं के समर्पण और प्रयासों का ही फल है, जिन्होंने ध्यान को हर दिल तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है.
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