चंडीगढ़: कैंसर दुनियाभर के लिए एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है. ये बीमारी लोगों को बहुत तेजी से फैलती जा रही है. जिसके चलते मरीजों की संख्या देशभर में बढ़ती जा रही है. बता दें कि कैंसर भी कई तरह का होता है, इसमें एक है लंग कैंसर. इस बीमारी को लेकर दुनिया में 1 अगस्त को वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे मनाया जाता है. कैंसर दिवस के जरिए लोगों को जागरूक किया जाता है.
बढ़ता जा रहा लंग कैंसर का खतरा: फेफड़ों के कैंसर पर जानकारी के लिए ईटीवी भारत की टीम ने पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. नवनीत सिंह से बातचीत की. उन्होंने बताया तंबाकू और धूम्रपान इस बीमारी का मुख्य कारण है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि जो लोग ध्रूमपान भी नहीं करते उनमे भी ये बीमारी तेजी से बढ़ रही है. हर साल करीब 16 लाख लोग फेफड़ों के कैंसर के कारण अपनी जान गंवा देते हैं. जिनमें से 15 फीसदी ने कभी तंबाकू का सेवन नहीं किया होता. महिलाओं में यह आंकड़ा ज्यादा चिंताजनक है. क्योंकि फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित 20 फीसदी महिलाओं ने कभी ध्रूमपान नहीं किया होता. गांव में भी ये बीमारी बढ़ने लगी है.
लंग कैंसर के कारण: डॉ. नवनीत सिंह ने बताया कि ध्रूमपान के अलावा भी इस बीमारी के बहुत से कारण है. वायु प्रदूषण, निष्क्रिय ध्रूमपान, एस्बेस्ट, रेडॉन गैस, डीजल का धुआं और आनुवंशिक प्रवृत्तियां शामिल है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ता जा रहा है. यह जोखिम कभी-कभी निष्क्रिय ध्रूमपान के संपर्क में आने जितना ही होता है. वायु प्रदूषण के दो प्रमुख प्रकार है. ओजोन और कण प्रदूषण (PM2.5), जो फेफड़ों के कैंसर से जुड़े हैं. PM2.5 का प्रमुख स्रोत लकड़ी, डीजल और जीवाश्म ईंधन का जलना है.
लंग कैंसर के लक्षण: फेफड़ों के कैंसर की पहचान शुरुआती लक्षणों से करना मुश्किल होता है. लेकिन अगर किसी को लगातार खांसी, सांस लेने में दिक्कत, वजन कम होना, या खांसते समय खून आना जैसी समस्याएं होती हैं. तो उन्हें तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए. चंडीगढ़ के पीजीआई में चलने वाले चेस्ट क्लिनिक और लंग क्लिनिक में ऐसे कई मरीजों का उपचार किया जाता है.
क्या है बीमारी का इलाज: उन्होंने बताया कि हर साल हजारों मरीज फेफड़ों के कैंसर का इलाज कराने आते हैं. पहले यह बीमारी अधिकतर 55-60 साल की उम्र के लोगों में पाई जाती थी. लेकिन अब 30-40 साल के युवा भी इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि फेफड़ों के कैंसर का इलाज शुरुआती चरणों में सर्जरी द्वारा किया जा सकता है. लेकिन तीसरी और चौथी स्टेज में इसका उपचार मुश्किल हो जाता है. डॉ. नवनीत ने बताया कि आधुनिक बायो मार्कर सिस्टम और टिशू की मदद से मरीजों का इलाज किया जाता है. अगर टिशु उपलब्ध नहीं हैं, तो ब्लड टेस्ट के जरिए उपचार किया जाता है.
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