ETV Bharat / state

विश्व साक्षरता दिवस : बनारस की ये महिला चिकित्सक संवार रहीं गरीब बेटियों का भविष्य, माताओं में भी जगा रही शिक्षा की अलख - world literacy day 2024

बनारस की महिला डॉक्टर बेटियों को शिक्षित बनाने की मुहिम को शुरू की है.इस मुहिम में बच्चियों के साथ बूढ़ी माताएं भी जुड़ी हुईं हैं. वे इस उम्र में शिक्षा का अलख जगाकर पढ़ाई पूरी कर रहीं हैं.

Etv Bharat
विश्व साक्षरता दिवस (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 8, 2024, 1:53 PM IST

डॉ शिप्राधर श्रीवास्तव ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

वाराणसी: बेटी नहीं है बोझ, आओ बदले सोच. इसी सोच के साथ बनारस की महिला डॉक्टर बेटियों को शिक्षित बनाने की मुहिम चला रहीं हैं. इस महीने में अब तक 500 से ज्यादा बेटियां शिक्षित हो चुकी हैं. खास बात यह है कि इनमें से कई बच्चियों को स्कूलों में दाखिला दिलाकर उन्हें पढ़ाया जा रहा है. इस मुहिम में बच्चियों के साथ उनकी माताएं भी जुड़ी हुई हैं.

बता दें कि डॉक्टर शिप्राधर बनारस में स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. जिन्हें शिप्रा दीदी के नाम से जाना जाता है. यह बीते 10 सालों से बेटियों के जन्म पर कोई शुल्क नहीं लेती हैं. बल्कि निशुल्क उनकी डिलीवरी कराती हैं. अब तक वह 650 बच्चियों की निशुल्क डिलीवरी करा चुकी हैं. इसके साथ ही वह बेटियों को शिक्षित बनाने में भी जुटी हुई है. इसको लेकर बाकायदा उन्होंने कोशिका एक प्रयास पाठशाला की शुरुआत की है. यहां वर्तमान में 50 से ज्यादा बच्चियों और लगभग 30 बूढ़ी माताएं शिक्षा ग्रहण करती हैं. आज साक्षरता दिवस है, जिसका उद्देश्य लोगों को साक्षर बनाने की और जागरूक करना है. ऐसे में शिप्राधर की यह कोशिश इस उद्देश्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

हर दिन शाम में चलती है पाठशाला: हर दिन शाम 3:30 से 5:30 बजे तक बनारस के पांडेपुर में यह पाठशाला संचालित होती है. शिक्षा ग्रहण करने आने वाली बूढ़ी माताएं बताती हैं कि यहां आकर उन्हें बहुत अच्छा लगता है. अपने जीवन के जिस उम्र में उन्हें शिक्षा ग्रहण करना चाहिए था, उस वक्त वह पढ़ाई नहीं कर पाई. लेकिन, अब वह पढ़ रही है.यहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, जिससे वह बेहद खुश है.उनका कहना है कि, वह अब जल्द ही अंगूठा लगाने की जगह अपना साइन कर सकती हैं यह उनके लिए बड़ी बात होगी.

इसे भी पढ़े-आमदनी का नहीं कोई जरिया, पति-पत्नी हैं दिव्यांग, फिर भी 70 गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ा रहा लखनऊ का ये दंपत्ति - Teachers Day 2024

पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा एक्टिविटी में बच्चियां करती है पार्टिसिपेट : यहां पाठशाला में पढ़ने आने वाली बच्चियों भी बेहद खुश हैं. यह बच्चियां आसपास के मलिन बस्तियों में रहने वाली हैं, जो हर दिन स्कूल के बाद यहां आकर पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि, यहां उनको अलग-अलग सारे विषय पढ़ाए जाते हैं. इसके साथ ही अलग-अलग तरीके के खेल कूद वह कलात्मक चीज सिखाई जाती हैं. यही नहीं उनको दिनचर्या कैसी रखती है आहार कैसा लेना है यह सब बातें भी बताई जाती हैं, जो उन्हें बेहद रुचिकर लगता है. बच्चियां कहती हैं, कि उन्हें यहां पढ़ने में अच्छा लगता है. वह हर दिन नई चीजों को सिखाती है.

2014 से शुरू हुई है यह मुहिम : इस बारे में डॉक्टर शिप्रा कहती हैं, कि नवंबर 2014 में उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की. जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो इसके पीछे कई मुश्किलें आई. अपने बेटे से उन्हें इन बच्चियों को पढ़ाने की प्रेरणा मिली. वह कहती है की शुरुआत में मलिन बस्तियों में जा जाकर बच्चियों को उन्होंने जुटाया और पांच बच्चों से इस पाठशाला की शुरुआत की. शुरू के दौर में बच्चियां दो दिन आती थी तो फिर नहीं आती थी, उनको रोक कर पढ़ाना बहुत मुश्किल लगता था. फिर उन्होंने बच्चियों को गिफ्ट्स, खाना और अलग-अलग एक्टिविटी में पार्टिसिपेट कराना शुरू कराया. उनका मन लगने लगा. उसके बाद बच्चियां पढ़ने लगी. समय बीतने के साथ आसपास की माताएं खुद आकर अपने बच्चों को यहां पर छोड़कर जाने लगी और अब तक 500 से ज्यादा बच्चियों को वह पढ़ चुकी है.

अब माताएं बच्चियां नहीं कहलाएंगी अनपढ़: डॉक्टर शिप्रा कहती है, कि मुझे खुशी इस बात की है की बच्चियां पढ़ाई के बारे में जान रही हैं. चूंकि ज्यादातर बच्चियां मलिन बस्तियों की हैं, यहां पर हायर एजुकेशन को प्रमोट नहीं किया जाता, कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है. लेकिन खुशी इस बात की है, कि अब यह बच्चियां अनपढ़ नहीं कहलाएंगी, बल्कि वह साक्षर कहलाएंगी और अपना साइन करने के साथ अपने जीवन की जरूरतमंद चीजों को समझ सकेंगी. उन्होंने बताया, कि अभी हाल ही में उन्होंने बूढ़ी माताओं को भी पढ़ाने की शुरुआत की है. वह सप्ताह में एक दिन बूढ़ी माताओं को भी पढ़ाती हैं. वर्तमान में लगभग 30 से ज्यादा माताएं यहां आकर शिक्षा ग्रहण करती हैं. उन्होंने बताया, कि मेरा एक ही उद्देश्य है कि लोग इन बूढ़ी माता को अंगूठा छाप ना कहें, न हीं इन बच्चियों को अनपढ़ करें. वर्तमान में पढ़ने वाली बच्चियां स्कूल में भी जा रही हैं, उनके अंदर पढ़ने की ललक देख उनके माता-पिता भी उन्हें आगे पढ़ा रहे हैं.

यह भी पढ़े-गरीब बच्चों के द्रोणाचार्य बने डॉ. ताहिर, किसान के बेटे को खुद के खर्च पर बनाया जज, अब तक 20 बच्चों को ले चुके है गोद - son of farmer became judge

डॉ शिप्राधर श्रीवास्तव ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

वाराणसी: बेटी नहीं है बोझ, आओ बदले सोच. इसी सोच के साथ बनारस की महिला डॉक्टर बेटियों को शिक्षित बनाने की मुहिम चला रहीं हैं. इस महीने में अब तक 500 से ज्यादा बेटियां शिक्षित हो चुकी हैं. खास बात यह है कि इनमें से कई बच्चियों को स्कूलों में दाखिला दिलाकर उन्हें पढ़ाया जा रहा है. इस मुहिम में बच्चियों के साथ उनकी माताएं भी जुड़ी हुई हैं.

बता दें कि डॉक्टर शिप्राधर बनारस में स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. जिन्हें शिप्रा दीदी के नाम से जाना जाता है. यह बीते 10 सालों से बेटियों के जन्म पर कोई शुल्क नहीं लेती हैं. बल्कि निशुल्क उनकी डिलीवरी कराती हैं. अब तक वह 650 बच्चियों की निशुल्क डिलीवरी करा चुकी हैं. इसके साथ ही वह बेटियों को शिक्षित बनाने में भी जुटी हुई है. इसको लेकर बाकायदा उन्होंने कोशिका एक प्रयास पाठशाला की शुरुआत की है. यहां वर्तमान में 50 से ज्यादा बच्चियों और लगभग 30 बूढ़ी माताएं शिक्षा ग्रहण करती हैं. आज साक्षरता दिवस है, जिसका उद्देश्य लोगों को साक्षर बनाने की और जागरूक करना है. ऐसे में शिप्राधर की यह कोशिश इस उद्देश्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

हर दिन शाम में चलती है पाठशाला: हर दिन शाम 3:30 से 5:30 बजे तक बनारस के पांडेपुर में यह पाठशाला संचालित होती है. शिक्षा ग्रहण करने आने वाली बूढ़ी माताएं बताती हैं कि यहां आकर उन्हें बहुत अच्छा लगता है. अपने जीवन के जिस उम्र में उन्हें शिक्षा ग्रहण करना चाहिए था, उस वक्त वह पढ़ाई नहीं कर पाई. लेकिन, अब वह पढ़ रही है.यहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, जिससे वह बेहद खुश है.उनका कहना है कि, वह अब जल्द ही अंगूठा लगाने की जगह अपना साइन कर सकती हैं यह उनके लिए बड़ी बात होगी.

इसे भी पढ़े-आमदनी का नहीं कोई जरिया, पति-पत्नी हैं दिव्यांग, फिर भी 70 गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ा रहा लखनऊ का ये दंपत्ति - Teachers Day 2024

पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा एक्टिविटी में बच्चियां करती है पार्टिसिपेट : यहां पाठशाला में पढ़ने आने वाली बच्चियों भी बेहद खुश हैं. यह बच्चियां आसपास के मलिन बस्तियों में रहने वाली हैं, जो हर दिन स्कूल के बाद यहां आकर पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि, यहां उनको अलग-अलग सारे विषय पढ़ाए जाते हैं. इसके साथ ही अलग-अलग तरीके के खेल कूद वह कलात्मक चीज सिखाई जाती हैं. यही नहीं उनको दिनचर्या कैसी रखती है आहार कैसा लेना है यह सब बातें भी बताई जाती हैं, जो उन्हें बेहद रुचिकर लगता है. बच्चियां कहती हैं, कि उन्हें यहां पढ़ने में अच्छा लगता है. वह हर दिन नई चीजों को सिखाती है.

2014 से शुरू हुई है यह मुहिम : इस बारे में डॉक्टर शिप्रा कहती हैं, कि नवंबर 2014 में उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की. जब उन्होंने इसकी शुरुआत की तो इसके पीछे कई मुश्किलें आई. अपने बेटे से उन्हें इन बच्चियों को पढ़ाने की प्रेरणा मिली. वह कहती है की शुरुआत में मलिन बस्तियों में जा जाकर बच्चियों को उन्होंने जुटाया और पांच बच्चों से इस पाठशाला की शुरुआत की. शुरू के दौर में बच्चियां दो दिन आती थी तो फिर नहीं आती थी, उनको रोक कर पढ़ाना बहुत मुश्किल लगता था. फिर उन्होंने बच्चियों को गिफ्ट्स, खाना और अलग-अलग एक्टिविटी में पार्टिसिपेट कराना शुरू कराया. उनका मन लगने लगा. उसके बाद बच्चियां पढ़ने लगी. समय बीतने के साथ आसपास की माताएं खुद आकर अपने बच्चों को यहां पर छोड़कर जाने लगी और अब तक 500 से ज्यादा बच्चियों को वह पढ़ चुकी है.

अब माताएं बच्चियां नहीं कहलाएंगी अनपढ़: डॉक्टर शिप्रा कहती है, कि मुझे खुशी इस बात की है की बच्चियां पढ़ाई के बारे में जान रही हैं. चूंकि ज्यादातर बच्चियां मलिन बस्तियों की हैं, यहां पर हायर एजुकेशन को प्रमोट नहीं किया जाता, कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है. लेकिन खुशी इस बात की है, कि अब यह बच्चियां अनपढ़ नहीं कहलाएंगी, बल्कि वह साक्षर कहलाएंगी और अपना साइन करने के साथ अपने जीवन की जरूरतमंद चीजों को समझ सकेंगी. उन्होंने बताया, कि अभी हाल ही में उन्होंने बूढ़ी माताओं को भी पढ़ाने की शुरुआत की है. वह सप्ताह में एक दिन बूढ़ी माताओं को भी पढ़ाती हैं. वर्तमान में लगभग 30 से ज्यादा माताएं यहां आकर शिक्षा ग्रहण करती हैं. उन्होंने बताया, कि मेरा एक ही उद्देश्य है कि लोग इन बूढ़ी माता को अंगूठा छाप ना कहें, न हीं इन बच्चियों को अनपढ़ करें. वर्तमान में पढ़ने वाली बच्चियां स्कूल में भी जा रही हैं, उनके अंदर पढ़ने की ललक देख उनके माता-पिता भी उन्हें आगे पढ़ा रहे हैं.

यह भी पढ़े-गरीब बच्चों के द्रोणाचार्य बने डॉ. ताहिर, किसान के बेटे को खुद के खर्च पर बनाया जज, अब तक 20 बच्चों को ले चुके है गोद - son of farmer became judge

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.