भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान दुनियाभर में आर्द्रभूमि के रूप में पहचान रखता है. आर्द्र भूमि की वजह से ही दुनियाभर से सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी लंबा सफर तय कर के यहां पहुंचते हैं, लेकिन दो दशक से भी ज्यादा वक्त से घना को पांचना बांध का पानी नहीं मिल पा रहा है. इसकी वजह से उद्यान की आर्द्र भूमि कम हो रही है. पर्याप्त और उचित पानी नहीं मिलने की वजह से बीते 25 साल में घना की आर्द्र भूमि 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से सिमटकर 8 वर्ग किलोमीटर रह गई है. धीरे-धीरे यहां की वेटलैंड, वुडलैंड में तब्दील होती जा रही है, जिससे यहां की जैव विविधता और यहां आने वाले पक्षियों की संख्या पर भी असर पड़ रहा है.
3 साल से पांचना बांध के पानी का इंतजार : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान दुनियाभर में अपनी वेटलैंड की वजह से खासी पहचान रखता है. साल1986 के शोध से स्पष्ट हुआ था कि घना के कुल 28.73 वर्ग किमी क्षेत्र में से 11 वर्ग किमी क्षेत्र वेटलैंड है. घना के 6 ब्लॉक को आर्द्र भूमि के रूप में रखरखाव किया जाता है. लेकिन वर्ष 2012 से घना को पांचना बांध का पानी नहीं मिल पाया है. जिसकी वजह से इसके एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख कर वुडलैंड में तब्दील हो गए हैं.
ये है नुकसान : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि घना के अंदर वेटलैंड, वुडलैंड और ग्रासलैंड तीन प्रकार का हैबिटाट (प्राकृतिक आवास) है. घना के वेटलैंड में करीब 250 प्रजाति के पक्षी प्रवास पर आते हैं, जो कि सर्वाधिक हैं. ऐसे में वेटलैंड का क्षेत्र कम होते जाने की वजह से वेटलैंड के पक्षियों की प्रजातियों की संख्या पर असर देखा जा रहा है. साथ ही वेटलैंड के अन्य जीवों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा. भोलू अबरार खान ने बताया कि घना की वेटलैंड को बचाए रखने के लिए पांचना बांध का पानी मिलना बहुत जरूरी है. यदि जल्द ही पांचना बांध का पानी नहीं मिला तो घना की वेटलैंड के साथ ही यहां का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. उद्यान को बचाए रखने का एकमात्र माध्यम पांचना बांध का पानी है.