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विकास की भेंट चढ़ रहा जंगल का माली, 10 साल में हादसों के शिकार हुए 1100 से अधिक हाथी... कैसे बचेंगे गजराज - World Elephant day

World Elephant Day Special, आज वर्ल्ड एलीफेंट डे है. हाथी को पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार या जंगल का माली भी कहते हैं. लेकिन पिछले 10 सालों में जिस तरह से हाथियों की मौत होती जा रही है, ये कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि एक दिन पीढ़ियां सिर्फ चित्र में ही हाथी देखेगी. आज गजराज विकास की भेंट चढ़ता जा रहा है. वर्ल्ड एलीफेंट डे पर जानते हैं देश में हाथियों के हालात.

कैसे बचेंगे गजराज
कैसे बचेंगे गजराज (FILE PHOTO)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 12, 2024, 11:57 AM IST

Updated : Aug 12, 2024, 12:37 PM IST

भरतपुर. हाथी को पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार कहा जाता है. क्योंकि ये वनों के विस्तार, उर्वरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन आज यह वास्तुकार विकास की भेंट चढ़ता जा रहा है. विकास के नाम पर देशभर में रेल, सड़क और शहरों का विस्तार होता गया. लेकिन इस सब के दौरान हाथियों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट होता गया. यही वजह है कि देश में हाथियों की संख्या में गिरावट आ रही है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आंकड़ों को नजर डालें तो पिछले 10 साल में रेल दुर्घटना, करंट, शिकार और जहरखुरानी जैसे कारणों के चलते 1160 हाथियों ने जान गंवाई है. वर्ल्ड एलीफेंट डे पर जानते हैं देश में हाथियों के हालात.

खत्म हो रहे प्राकृतिक आवास : वाइल्डलाइफर हीरा पंजाबी ने बताया कि पूरे देश भर में हाथियों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है. आज की तारीख में भारत में करीब 27 हजार हाथी हैं. लेकिन कुछ वर्षों पूर्व यह आंकड़ा काफी ज्यादा था. हीरा पंजाबी ने बताया कि देश में विकास के नाम पर शहरों का विस्तार किया जा रहा है. रेल व सड़क मार्ग बिछाए जा रहे हैं, बिजली की लाइनें खींची जा रही हैं, लेकिन इन सब में जंगल, जलाशय नष्ट होते जा रहे हैं. हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं. जिसका असर हाथियों की आबादी पर पड़ रहा है.

इसे भी पढ़ें : जानें क्यों मनाया जाता है विश्व हाथी दिवस, भारत में क्या है इसकी आबादी - World Elephant Day

दस साल में 1160 हाथियों की मौत : पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आंखों पर नजर डालें तो वर्ष 2009 से 2020 के दौरान देशभर में 1160 हाथियों की मौत हुई. इसमें रेल दुर्घटना में 186, जहर देने से 64, शिकार के चलते 169 और करंट लगने से 741 हाथियों की मौत हुई. यानी बीते 10 साल में 1160 हाथियों को विभिन्न कारणों से जान गंवानी पड़ी.

वाइल्डलाइफर हीरा पंजाबी ने बताया कि विकास के साथ ही हाथियों के हैबिटाट को भी बचाया जा सकता है. रेल और सड़क मार्ग का विस्तार करते समय हाथियों के मार्ग को अवरूद्ध नहीं किया जाए. इसी व्यवस्था होनी चाहिए कि हाथियों का रास्ता भी बचा रहे और रेल, सड़क मार्ग भी बन जाए.

इसे भी पढ़ें : Watch Video: मां हथिनी के अश्रुपूर्ण क्षण, घायल बच्चे की मौत... मातम देख लोग हुए भावुक - Mom elephant lost her child

पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार : हीरा पंजाबी ने बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र में हाथियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. हाथी हर दिन करीब 120 से 150 किलो तक घास, फूस, चारा आदि खाता है. खाने के बाद जब हाथी जंगल में चलते हुए गोबर फैलाता है तो उसमें बहुत से बीज होते हैं और वो ही फिर घास व पेड़ का रूप लेते हैं. यही वजह है कि हाथी को पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार या जंगल का माली कहा जाता है.

भरतपुर. हाथी को पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार कहा जाता है. क्योंकि ये वनों के विस्तार, उर्वरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन आज यह वास्तुकार विकास की भेंट चढ़ता जा रहा है. विकास के नाम पर देशभर में रेल, सड़क और शहरों का विस्तार होता गया. लेकिन इस सब के दौरान हाथियों का प्राकृतिक आवास भी नष्ट होता गया. यही वजह है कि देश में हाथियों की संख्या में गिरावट आ रही है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आंकड़ों को नजर डालें तो पिछले 10 साल में रेल दुर्घटना, करंट, शिकार और जहरखुरानी जैसे कारणों के चलते 1160 हाथियों ने जान गंवाई है. वर्ल्ड एलीफेंट डे पर जानते हैं देश में हाथियों के हालात.

खत्म हो रहे प्राकृतिक आवास : वाइल्डलाइफर हीरा पंजाबी ने बताया कि पूरे देश भर में हाथियों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है. आज की तारीख में भारत में करीब 27 हजार हाथी हैं. लेकिन कुछ वर्षों पूर्व यह आंकड़ा काफी ज्यादा था. हीरा पंजाबी ने बताया कि देश में विकास के नाम पर शहरों का विस्तार किया जा रहा है. रेल व सड़क मार्ग बिछाए जा रहे हैं, बिजली की लाइनें खींची जा रही हैं, लेकिन इन सब में जंगल, जलाशय नष्ट होते जा रहे हैं. हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं. जिसका असर हाथियों की आबादी पर पड़ रहा है.

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दस साल में 1160 हाथियों की मौत : पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के आंखों पर नजर डालें तो वर्ष 2009 से 2020 के दौरान देशभर में 1160 हाथियों की मौत हुई. इसमें रेल दुर्घटना में 186, जहर देने से 64, शिकार के चलते 169 और करंट लगने से 741 हाथियों की मौत हुई. यानी बीते 10 साल में 1160 हाथियों को विभिन्न कारणों से जान गंवानी पड़ी.

वाइल्डलाइफर हीरा पंजाबी ने बताया कि विकास के साथ ही हाथियों के हैबिटाट को भी बचाया जा सकता है. रेल और सड़क मार्ग का विस्तार करते समय हाथियों के मार्ग को अवरूद्ध नहीं किया जाए. इसी व्यवस्था होनी चाहिए कि हाथियों का रास्ता भी बचा रहे और रेल, सड़क मार्ग भी बन जाए.

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पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार : हीरा पंजाबी ने बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र में हाथियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. हाथी हर दिन करीब 120 से 150 किलो तक घास, फूस, चारा आदि खाता है. खाने के बाद जब हाथी जंगल में चलते हुए गोबर फैलाता है तो उसमें बहुत से बीज होते हैं और वो ही फिर घास व पेड़ का रूप लेते हैं. यही वजह है कि हाथी को पारिस्थितिकी तंत्र का वास्तुकार या जंगल का माली कहा जाता है.

Last Updated : Aug 12, 2024, 12:37 PM IST
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