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विश्व पृथ्वी दिवस आज, जयपुर की शान बन रहे हैं ईको-टूरिज्म वाले यह पार्क - world earth day

World Earth Day 2024 विश्व पृथ्वी दिवस आज है. जाहिर है कि इस मौके पर दुनियाभर में घटते वन क्षेत्र को लेकर चिंता जताई जा रही है. यूएन के आंकड़ों के मुताबिक हर साल दुनिया भर के जंगलों से 10 मिलियन हेक्टेयर पेड़ हटा दिए जाते हैं. इसी तरह घास के मैदान भी कम हो रहे हैं, जिसके कारण पशु पक्षियों की 74% प्रजातियों में गिरावट आई है. ऐसे में पृथ्वी के जीवन को बचाने के लिए शहरों के साथ जंगलों को भी संरक्षण और विकास की जरूरत है. राजस्थान की राजधानी जयपुर के आसपास तीन जंगल इस दिशा में ऑक्सीजन बैंक की तरह काम कर रहे हैं.

World Earth Day 2024
World Earth Day 2024
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 22, 2024, 4:51 PM IST

विश्व पृथ्वी दिवस

जयपुर. राजधानी के आसपास की वन भूमि को विकसित करने के साथ जंगलात महकमे ने इस क्षेत्र को इको टूरिज्म जोन के रूप में विकसित कर दिया है. एक तरफ ईको-टूरिज्म पर्यावरण संरक्षण में मदद कर रहा है, तो दूसरी ओर इसके जरिए शहरीकरण के कुप्रभाव को भी काम किया जा रहा है. जयपुर में झालाना लेपर्ड सफारी के जरिए पूर्वी हिस्से के जंगल को संरक्षित किया गया, तो उत्तरी हिस्से में आमागढ़ की पहाड़ियों में लेपर्ड सफारी और जंगल भी शहर के लिए वरदान बन गए हैं. राजधानी के पश्चिमी हिस्से के गोविंदपुरा बीड़ में भी अब बायोडायवर्सिटी के जरिए एक जंगल को विकसित कर लिया गया है.

झालाना के जंगल बने मिसाल : जयपुर के मालवीय नगर औद्योगिक क्षेत्र से सटी पहाड़ी के अहाते में करीब 700 हेक्टेयर क्षेत्र में झालाना सफ़ारी के जरिए लेपर्ड की आबादी का संरक्षण हुआ और जंगल का विकास हुआ. इस तरह से एक पंथ तीन काज की तर्ज पर यहां जंगल और वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ शहर की आबोहवा की सेहत को कायम रखने के लिए पेड़, पौधे और वनस्पति को बचा लिया गया. आज इन जंगलों में बघेरों के अलावा अजगर, लक्कड़बग्घे, जंगली लोमड़ी, सुनहरी सियार, कस्तूरी बिलाव, चीतल, नील गाय, जंगली बिल्ली सहित 33 तरह के वन्य जीव और 125 के करीब अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी निवास कर रहे हैं. यह जगह अब बर्ड वॉचिंग का शौक रखने वालों के लिए जन्नत बनती जा रही है. फ़िलहाल 220 तरह के पेड़ पौधों की प्रजातियां झालाना के जंगलों में हैं, जो न सिर्फ जंगली जीवों के आधार आहार का हिस्सा हैं, बल्कि जड़ी बूटियां और दुर्लभ वनस्पतियां भी इसमें शामिल हैं. कुछ ऐसी वनस्पतियां भी हैं, जो कि प्रदेश में लुप्तप्राय होने के कगार पर हैं.

इसे भी पढ़ें-Special : एक जंगल जो धड़कता है शहर की सांस बनकर, दुनिया के लिए बन सकता है मिसाल

झालाना की तर्ज पर विकसित हुआ आमागढ़ : अरावली के पहाड़ों पर आरक्षित वन खंड पर आमागढ़ बसा हुआ है. करीब 1524 हेक्टेयर में फैला यह वन क्षेत्र. लेपर्ड रिज़र्व झालाना और नाहरगढ़ अभयारण्य के बीच होने के कारण यह वन्य जीव संरक्षण और कॉरिडोर विकास के नजरिए से खासा अहम है. इस जंगल में भी लेपर्ड्स की घनी आबादी है. यहां हायना, जैकाल, जंगली बिल्ली, लोमड़ी और सीवेट कैट हैं. शाकाहारी वन्य प्राणियों में सांभर, नीलगाय और खरगोश जैसे जंगली जीव भी हैं. रेतीले टीबों पर बसे इन जंगलों में रेगिस्तानी वनस्पतियां भरपूर हैं. यहां टोटलिस, कुमठा और खेजड़ी के पेड़ मिलेंगे, वहीं धौंक, सालर, गोया और केर जैसी वनस्पतियां भी यहां पर मौजूद हैं

बायोडायवर्सिटी के जरिए होगा पर्यावरण संरक्षण : राजधानी के कालवाड़ रोड पर बीड़ गोविंदपुरा में करीब 100 हेक्टेयर के हिस्से में जंगल को विकसित किया जा रहा है. राजधानी के स्मृति वन की तर्ज पर इसका विकास किया जा रहा है. जयपुर विकास प्राधिकरण ने वन विभाग के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम किया और करीब 46 हजार से ज्यादा अलग-अलग तरह के पेड़ इस इलाके में लगाए. कुदरत की करिश्मा से अलग मानव की सोच किसी शहर के लिए कैसे सौगात बन सकती है, इसकी मिसाल जयपुर के यह तीनों जंगल हैं. यहां सकारात्मक सोच के साथ जंगल और जीवन का संरक्षण करने के लिए कई पीढ़ियां इसे जानेंगी. जयपुर के लिए तीन अलग-अलग हिस्सों में ऑक्सीजन बैंक के रूप में यह जंगल काम कर रहे हैं. जयपुर चिड़ियाघर के डीएफओ जगदीश गुप्ता ने बताया कि इसी तरह से पक्षियों को बचाने के लिए मुहाना क्षेत्र में वेटलैंड विकसित किया जा रहा है, ताकि इस क्षेत्र में आने वाले पक्षी प्रजनन के साथ-साथ अपने आवास विकसित कर सकें. विलुप्त होने वाली प्रजातियों का संरक्षण करना भी इस वेटलैंड को डेवलप करने के पीछे एक मकसद है.

इसे भी पढ़ें-World Earth Day 2023 : पक्षियों, वनस्पतियां और वन्यजीवों से फल-फूल रहे झालाना के जंगल, शहरवासियों के लिए ऑक्सीजन बैंक

ऐसे बचाया जा सकता है पृथ्वी को : PCCF (प्रशासन) अरिजीत बनर्जी के मुताबिक पृथ्वी दिवस इस धरती को संरक्षित रखने के लिए एक पैगाम है, जिस पर हम सब मिलकर काम कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पृथ्वी को बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को ना कहा जाए. घर के कूड़े को गीले और सूखे कूड़ेदान में अलग-अलग रखें, प्लास्टिक कचरे का रीसाइकिल और जिम्मेदारीपूर्वक निपटारा करें. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के महत्व के बारे में बच्चों और साथी नागरिकों को शिक्षित करना चाहिए. न्यूनतम या बिना प्लास्टिक पैकेजिंग वाले उत्पाद चुनकर प्लास्टिक की खपत कम करने में सभी को मदद करनी चाहिए.

विश्व पृथ्वी दिवस

जयपुर. राजधानी के आसपास की वन भूमि को विकसित करने के साथ जंगलात महकमे ने इस क्षेत्र को इको टूरिज्म जोन के रूप में विकसित कर दिया है. एक तरफ ईको-टूरिज्म पर्यावरण संरक्षण में मदद कर रहा है, तो दूसरी ओर इसके जरिए शहरीकरण के कुप्रभाव को भी काम किया जा रहा है. जयपुर में झालाना लेपर्ड सफारी के जरिए पूर्वी हिस्से के जंगल को संरक्षित किया गया, तो उत्तरी हिस्से में आमागढ़ की पहाड़ियों में लेपर्ड सफारी और जंगल भी शहर के लिए वरदान बन गए हैं. राजधानी के पश्चिमी हिस्से के गोविंदपुरा बीड़ में भी अब बायोडायवर्सिटी के जरिए एक जंगल को विकसित कर लिया गया है.

झालाना के जंगल बने मिसाल : जयपुर के मालवीय नगर औद्योगिक क्षेत्र से सटी पहाड़ी के अहाते में करीब 700 हेक्टेयर क्षेत्र में झालाना सफ़ारी के जरिए लेपर्ड की आबादी का संरक्षण हुआ और जंगल का विकास हुआ. इस तरह से एक पंथ तीन काज की तर्ज पर यहां जंगल और वन्यजीवों के संरक्षण के साथ-साथ शहर की आबोहवा की सेहत को कायम रखने के लिए पेड़, पौधे और वनस्पति को बचा लिया गया. आज इन जंगलों में बघेरों के अलावा अजगर, लक्कड़बग्घे, जंगली लोमड़ी, सुनहरी सियार, कस्तूरी बिलाव, चीतल, नील गाय, जंगली बिल्ली सहित 33 तरह के वन्य जीव और 125 के करीब अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी निवास कर रहे हैं. यह जगह अब बर्ड वॉचिंग का शौक रखने वालों के लिए जन्नत बनती जा रही है. फ़िलहाल 220 तरह के पेड़ पौधों की प्रजातियां झालाना के जंगलों में हैं, जो न सिर्फ जंगली जीवों के आधार आहार का हिस्सा हैं, बल्कि जड़ी बूटियां और दुर्लभ वनस्पतियां भी इसमें शामिल हैं. कुछ ऐसी वनस्पतियां भी हैं, जो कि प्रदेश में लुप्तप्राय होने के कगार पर हैं.

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झालाना की तर्ज पर विकसित हुआ आमागढ़ : अरावली के पहाड़ों पर आरक्षित वन खंड पर आमागढ़ बसा हुआ है. करीब 1524 हेक्टेयर में फैला यह वन क्षेत्र. लेपर्ड रिज़र्व झालाना और नाहरगढ़ अभयारण्य के बीच होने के कारण यह वन्य जीव संरक्षण और कॉरिडोर विकास के नजरिए से खासा अहम है. इस जंगल में भी लेपर्ड्स की घनी आबादी है. यहां हायना, जैकाल, जंगली बिल्ली, लोमड़ी और सीवेट कैट हैं. शाकाहारी वन्य प्राणियों में सांभर, नीलगाय और खरगोश जैसे जंगली जीव भी हैं. रेतीले टीबों पर बसे इन जंगलों में रेगिस्तानी वनस्पतियां भरपूर हैं. यहां टोटलिस, कुमठा और खेजड़ी के पेड़ मिलेंगे, वहीं धौंक, सालर, गोया और केर जैसी वनस्पतियां भी यहां पर मौजूद हैं

बायोडायवर्सिटी के जरिए होगा पर्यावरण संरक्षण : राजधानी के कालवाड़ रोड पर बीड़ गोविंदपुरा में करीब 100 हेक्टेयर के हिस्से में जंगल को विकसित किया जा रहा है. राजधानी के स्मृति वन की तर्ज पर इसका विकास किया जा रहा है. जयपुर विकास प्राधिकरण ने वन विभाग के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम किया और करीब 46 हजार से ज्यादा अलग-अलग तरह के पेड़ इस इलाके में लगाए. कुदरत की करिश्मा से अलग मानव की सोच किसी शहर के लिए कैसे सौगात बन सकती है, इसकी मिसाल जयपुर के यह तीनों जंगल हैं. यहां सकारात्मक सोच के साथ जंगल और जीवन का संरक्षण करने के लिए कई पीढ़ियां इसे जानेंगी. जयपुर के लिए तीन अलग-अलग हिस्सों में ऑक्सीजन बैंक के रूप में यह जंगल काम कर रहे हैं. जयपुर चिड़ियाघर के डीएफओ जगदीश गुप्ता ने बताया कि इसी तरह से पक्षियों को बचाने के लिए मुहाना क्षेत्र में वेटलैंड विकसित किया जा रहा है, ताकि इस क्षेत्र में आने वाले पक्षी प्रजनन के साथ-साथ अपने आवास विकसित कर सकें. विलुप्त होने वाली प्रजातियों का संरक्षण करना भी इस वेटलैंड को डेवलप करने के पीछे एक मकसद है.

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ऐसे बचाया जा सकता है पृथ्वी को : PCCF (प्रशासन) अरिजीत बनर्जी के मुताबिक पृथ्वी दिवस इस धरती को संरक्षित रखने के लिए एक पैगाम है, जिस पर हम सब मिलकर काम कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पृथ्वी को बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को ना कहा जाए. घर के कूड़े को गीले और सूखे कूड़ेदान में अलग-अलग रखें, प्लास्टिक कचरे का रीसाइकिल और जिम्मेदारीपूर्वक निपटारा करें. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के महत्व के बारे में बच्चों और साथी नागरिकों को शिक्षित करना चाहिए. न्यूनतम या बिना प्लास्टिक पैकेजिंग वाले उत्पाद चुनकर प्लास्टिक की खपत कम करने में सभी को मदद करनी चाहिए.

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