लखनऊ : कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं. अक्सर लोग इस बीमारी की चपेट में आने पर हिम्मत खो देते हैं. उनकी मनोदशा बिगड़ जाती है. चूंकि सेहत के साथ यह बीमारी आर्थिक रूप से काफी चोट करती है. लेकिन हामरे बीच बहुत से ऐसे कैंसर वॉरियर्स है, जिन्होंने इस बीमारी को मात दी है. आज 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस हैं. हम आपको ऐसे ही कुछ लोगों से रूबरू कराने जा रहे हैं.
![कैंसर सबा खान, शाजिया खान और माया द्विवेदी.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/04-02-2025/23471598_sunil71.jpg)
विश्व कैंसर दिवस का उद्देश्य है कि लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक किया जा सके. चिकित्सकों का कहना है कि जीने की दृढ़ इच्छा शक्ति से इसे हराया जा सकता है. समाज में ऐसे मरीजों की बड़ी संख्या है, जिन्होंने कैंसर को मात दे दी. कैंसर वॉरियर्स का कहना है कि जिंदगी चलने का नाम है और यह तभी संभव है जब जिंदगी में जिंदादिली हो.
![कैंसर को मात देने वालीं चंद्रकला और नीतू अरोड़ा को डॉ. गीतिका नंदा ने हिम्मत दी.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/04-02-2025/23471598_sunil70.jpg)
जब लगा, इससे अच्छा मौत ही बेहतर: लखनऊ के सुजानपुर की रहने वाली नीतू अरोड़ा की कहानी किसी फिल्म या टीवी सीरियल से कम नहीं है. कक्षा-8 तक पढ़ी नीतू की महज 17 साल की उम्र में शादी हो गई. दो साल में दो बच्चों को जन्म दिया. पूरा परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. नीतू ने सिलाई का काम शुरू किया. इस बीच उन्हें बच्चेदानी में गांठ का पता चला. डॉक्टरों ने बच्चेदानी निकाल दी. कुछ दिन बाद कान का पर्दा फट गया। जैसे तैसे इलाज करा रही थी कि वर्ष 2020 में लॉकडाउन के समय स्तन में असहनीय दर्द होने पर केजीएमयू में डॉ. गीतिका नंदा को दिखाया. जांच में ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) की पुष्टि हुई. रिपोर्ट मिलते ही लगा जैसे पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. ऐसा लगा जैसे मौत सामने खड़ी हो. हालांकि, डॉक्टर ने हौसला बढ़ाया. ऑपरेशन सफल रहा. डॉक्टर की सलाह पर जीवनशैली में बदलाव किया. इलाज और जीने की दृढ़ इच्छा से आज हम पूरी तरह से स्वस्थ हैं.
कैंसर से डरी नहीं, लड़ी और जीती भी: मलिहाबाद की रहने वाली शाजिया खान ब्रेस्ट कैंसर का नाम सुनते ही टूट गई. लेकिन डॉक्टर ने उन्हें हिम्मत जुटाई. शाजिया बताती हैं कि केजीएमयू में डॉ. गीतिका नंदा की देखरेख 22 कीमो थेरेपी सेशन का सामना करना पड़ा. हर सेशन के बाद बाल झड़ते गए और असहनीय दर्द ने जकड़ लिया. इसके बाद भी हार नहीं मानी. ऑपरेशन के बाद जब डॉक्टर ने यह कहा कि अब आप कैंसर से पूरी तरह से मुक्त हैं, तब जाकर हमने राहत की सांस ली. महसूस किया कि यह यह सिर्फ एक बीमारी नहीं थी बल्कि एक अनुभव था, जिसने मुझे मजबूत बनाया. आज जब मैं अपने जीवन के बारे में सोचती हूं तो मुझे यह समझ में आता है कि ऊपर वाला मुझे किसी बड़ी मुसीबत से बचा रहा था. अगर मैं ठीक नहीं होती तो शायद मुझे सही इलाज नहीं मिलता. मैं डॉक्टर गीतिका अपने परिवार और सभी रिश्तेदारों की आभारी हूं, जिन्होंने इस कठिनाई में मेरा साथ दिया.
जीत मुश्किल थी, नामुमकिन नहीं: कानपुर की माया द्विवेदी ने भी स्तन कैंसर को हराया है. 63 साल की माया बताती हैं कि मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ अपने बचपन और जवानी के सुनहरे पल दोबारा जीने की कोशिश की है. लेकिन स्तन कैंसर ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. जब डॉक्टर ने रिपोर्ट देख कर कैंसर की पुष्टि की तो उस वक्त परिवार से बिछड़ने का डर सताने लगा. लेकिन डॉक्टर ने हिम्मत दी. 16 कीमोथेरेपी और 8 रेडियोथेरेपी हुई. कीमोथेरेपी के बाद कंधे और तकिए पर बालों के गुच्छे आते थे. इस उम्र में इतनी तकलीफ झेली नहीं जा रही थी, लेकिन परिवार वालों ने हौसला बढ़ाया. ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों के कहने पर जीवनशैली में बदलाव किया. अब मैं पूरी तरफ से ठीक हूं. आज मैं हर पल को जीती हूं और अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताने की कोशिश करती हूं, मैं समझ चुकी हूं कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आए हिम्मत और विश्वास के साथ हर चुनौती का सामना किया जा सकता है.
दो बार कराना पड़ा ऑपरेशन, फिर भी नहीं मानी हार: अयोध्या की रहने वालीं चंद्रकला पुलिस विभाग में नौकरी करती हैं. पति और दो बच्चों के साथ खुशहाल जीवन यापन कर रही चंद्रकला को स्तन में तीन गांठों के बारे में पता चला तो वह परेशान हो गईं. अयोध्या के एक अस्पताल में ऑपरेशन कराया, लेकिन आराम के बजाय हालात और बिगड़ गई. इसके बाद केजीएमयू में दिखाया. यहां दोबारा से ऑपरेशन करना पड़ा. इस दौरान 16 रेडियोथेरेपी के सेशन करवाने पड़े. असहनीय दर्द का सामना करना पड़ा. इस दौरान कई बार हताश हुई, लेकिन परिवारीजनों ने हिम्मत हारने नहीं दी. इस अनुभव ने मुझे एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाया कि कैंसर का इलाज समय पर होना चाहिए. आपको अपने शरीर की सुननी चाहिए और जरूरत पड़ने पर तुरंत इलाज करना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण है आपकी मेंटल हेल्थ यह आपकी हिम्मत को जगाने में मदद करता है. मैं आज भी उन सभी डॉक्टर परिवार का धन्यवाद करती हूं. जिन्होंने इस बुरे वक्त में मेरा साथ दिया मेरा अनुभव बताता है की उम्मीद और हिम्मत से बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार किया जा सकता है जीवन में हमेशा सकारात्मक सोच रखें और अपने सपनों को साकार करने की कोशिश करें.
नहीं हारी हिम्मत : अलीगंज की रहने वाली सबा खान (45) को वर्ष 2020 में स्तन कैंसर का पता चला. कई रेडियोथेरेपी हुई. असहनीय दर्द झेलना पड़ा. ऑपरेशन के बाद वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं. जीवनशैली में बदलाव किया। योगा को अपनाया. अब वह दूसरों को बी इससे लड़ने की हिम्मद दे रहीं हैं. सबा का कहना है कि कैंसर से डरना नहीं लड़ना जरूरी है.
अब आ चुकी है अत्याधुनिक तकनीक : केजीएमयू की आंकोलॉजिस्ट प्रो.गीतिका नंदा महिलाओं में स्तन और पुरुषों में मुंह का कैंसर अधिक होता है. समय से जानकारी मिलने पर इसका इलाज संभव है. मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकता है. अब सर्जरी की नई तकनीक से कैंसर खत्म होने के बाद फिर से स्तन को उसके मूल स्वरूप में लाया जा सकता है. इसके लिए शरीर के दूसरे स्थान से मांस लेकर माइक्रो सर्जरी के जरिए नए सिरे से ब्रेस्ट को बना दिया जाता है. इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बरकरार रहता है. मुंह के कैंसर का सबसे बड़ा कारण तंबाकू का सेवन है. कैंसर से बचने के लिए जागरूकता जरूरी है. समय-समय पर स्क्रीनिंग कराते रहें.