रांची: आसमान में तारों को चमकता देख हर इंसान यही सोचता है कि उसके भी बच्चे इसी स्टार की तरह चमकते रहें. इन्ही सितारों की तरह कोई तारा लकड़ा बनती है, तो कोई अपनी किस्मत का रोना रोते हुए बिखर जाता है. अगर आपमें हौसला हो और कुछ करने की तमन्ना हो, तो आपको लाख परेशानियों के बाबजूद सफलता जरूर मिलेगी.
गुमला की तारा लकड़ा की कहानी भी कुछ इसी तरह की है. जिस उम्र में उसे घर के आंगन में मां के साथ अंगुली पकड़कर चलना सिखना चाहिए था, उस उम्र में तारी से उसकी मां का साथ छूट गया. 1994 के उस मनहूस दिन को याद कर आज भी तारा सहम जाती है, जिस वक्त उसके आंगन से मां शोफिया लकड़ा का पार्थिव शरीर निकला था. उसको क्या पता कि एक कुत्ते के काटने से शरीर में फैला रेबीज उसके मां को सदा के लिए उससे दूर कर देगा. घर की माली स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि दिनभर रिक्शा चलाने से पिता विसेंट लकड़ा को मिलने वाले पैसे से प्रतिदिन रात में चावल सब्जी का उपाय होता था. कभी कभी मजबूरी में चार बहन और भाई के साथ भूखा भी सोना पड़ता था. इन परिस्थितियों के बीच 2017 में तारा के सिर से पिता का भी साया छिन गया.
तारा लकड़ा की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं
गुमला के रायडीह पतरा टोली की इस ट्राइवल बच्ची की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. माता-पिता का साथ छूटने के बाद तारा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पेट की आग बुझाने की थी. अपनी नानी के साथ किसी तरह रांची आई इस छोटी सी बच्ची को यहां एक परिवार ने सहारा दिया और आज वह बच्ची आसमान में टिमटिमाते किसी तारे से कम नहीं है.
निर्मला कॉलेज से भूगोल विषय में पीजी करने के बाद नौकरी की तलाश कर रही तारा को कोरोना के कहर का सामना करना पड़ा. मगर उसने इसे चुनौती के रूप में लिया. पढ़ लिखकर देश दुनिया को समझने में सफल रही तारा ने उसी वक्त जॉब सीकर के बजाय जॉब प्रोवाइडर बनने का फैसला लिया. घरेलू महिलाओं के साथ जीवन के एक नई उड़ान को भरने के लिए पंख लगाने की कोशिश इस लड़की ने की और वह सफल हो रही है. बड़े-बड़े हाकीमों के घर काम करने वाली महिलाओं का साथ लेकर तारा ने महज 5000 रुपये से झारखंड के स्थानीय खाद्य सामग्री का निर्माण करना शुरू किया.
आज की तारीख में तारा के साथ कई ऐसी महिलाएं जुड़ चुकी हैं जो घर बैठे अचार, मड़ुवा लड्डू, बिस्किट, नमकीन, फुटकल अचार, बैर का अचार,आंवला एवं मिर्चा का अचार जैसे रेडीमेड सामान बनाती हैं. तारा के साथ काम कर रही महिला ज्योति सांगा और शीला, तारा को प्रेरणाश्रोत बताते हुए कहती हैं कि शुरुआत में उसे यह डर लग रहा था कि कहीं घर की जमापूंजी भी ना डूब जाए, मगर उस सबसे अब हमलोग काफी आगे निकल चुके हैं. आज पंख के सहारे कई ऐसी महिलाओं का पूरा परिवार चलता है और वार्षिक आमदनी लाखों में है. तारा के साथ विक्ट्री साइन दिखाती इन महिलाओं की जर्नी यहीं खत्म नहीं हुई है बल्कि इनकी चाहत आगे बहुत कुछ करने का है.
ये भी पढ़ें:
Women's Day Special: मिलिए हजारीबाग की बैंक दीदी से, लोन लेकर शुरू किया बिजनेस, आज बन गईं लखपति
International women's Day: लड़कियों के लिए प्रेरणा बनीं आईपीएस रिष्मा रमेशन से खास बातचीत