राजसमंद. जिला एवं सेशन न्यायालय राजसमंद के न्यायाधीश राघवेंद्र काछवाल ने एक बलात्कार के मामले में सुनवाई के दौरान पीड़ित महिला अपने बयानों से पलट गई. महिला ने कहा कि उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ है. उसने तो उसके पति के कहने पर पैसे लेने के लिए नेनुसिंह पर बलात्कार का आरोप लगा दिया. इस पर न्यायाधीश ने नेनुसिंह को बरी करते हुए उसी महिला के खिलाफ प्रसंज्ञान ले लिया. साथ ही झूठी एफआईआर दर्ज करवाकर निर्दोष को जेल भिजवाने, पुलिस व न्यायालय का समय बर्बाद करने पर अपराधिक मुकदमा दर्ज के आदेश दे दिए.
डीजे कोर्ट राजसमंद के लोक अभियोजक जयदेव कच्छावा ने बताया कि एक महिला ने भीम थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी. 29 जून, 2019 को वह उसके पति के साथ ननद के घर छापली गांव गई थी. जहां पर किसी बात को लेकर उसके पति व ननद के बीच झगड़ा हो गया. चूंकि रात हो चुकी थी, तो वापस घर जाने के लिए उसने उसकी बहन के जरिए नेनुसिंह को कॉल कर जीप लेकर बुलाया, ताकि वह उसे भीम क्षेत्र में घर छोड़ सके. इस पर नेनुसिंह जीप लेकर पहुंच गया.
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फिर वह घर के निकली, लेकिन उसका पति बहन के घर ही रूक गया, वह नहीं आया. इस पर महिला ही जीप में बैठ गई और नेनुसिंह को घर छोड़ने के लिए बोल दिया. रात में जीप कुछ किलोमीटर आगे निकली, उसके बाद उसे अकेली देखकर जीप चालक नेनुसिंह उससे छेड़छाड़ करने लगा. जब उसने विरोध किया तो आरोपी नेनुसिंह ने जान से मारने की धमकी दी. जिससे वह काफी घबरा गई. फिर आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया. इस तरह महिला की रिपोर्ट पर भीम थाना पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के बाद नेनुसिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. साथ ही आरोपी के खिलाफ जिला एवं सेशन न्यायालय में आरोप पत्र पेश कर दिया.
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जिला एवं सेशन न्यायालय राजसमंद में ट्रायल के दौरान बलात्कार की पीड़ित महिला अपने बयान से पलट गई. महिला ने न्यायालय में सशपथ बयान लेखबद्ध करवाकर बताया कि नेनूसिंह ने उसके साथ कुछ नहीं किया. उसके पति ने जेवर व पैसों की खातिर नेनुसिंह के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाया. इसे जिला एवं सेशन न्यायाधीश राघवेन्द्र काछवाल ने गंभीरता से लेते हुए झूठे मुकदमों की रोकथाम को लेकर प्रसंज्ञान लिया. न्यायाधीश ने बलात्कार के आरोपी नेनुसिंह को बरी करते हुए बलात्कार के झूठे आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज करवाने, पुलिस व कोर्ट का समय जाया करने पर भादसं की धारा 344 के तहत अपराधिक मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. न्यायालय का यह निर्णय झूठी एफआईआर दर्ज करवाने वालों के लिए एक सबक है.