लखनऊ : पीलीभीत संसदीय सीट से भाजपा नेता वरुण गांधी का टिकट कटने के बाद इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि आखिर अगला कदम क्या होगा? कभी उनके सपा में जाने की अटकलें लगती हैं, तो कभी कहा जाता है कि वह कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली अथवा अमेठी से चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं, पीलीभीत से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा है. ऐसा इसलिए क्योंकि विगत 20 मार्च को उनके प्रतिनिधि ने पीलीभीत से नामांकन पत्र भी खरीदे थे. समाजवादी पार्टी इस सीट पर भगवत शरण गंगवार के रूप में अपना उम्मीदवार पहले ही उतार चुकी है. इस बात की संभावना भी जताई जा रही है कि वरुण गांधी के हामी भरने पर सपा इस सीट पर अपना प्रत्याशी बदल कर मैदान में उतार दे. वहीं भाजपा ने प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री और पार्टी के कद्दावर नेता जितिन प्रसाद को अपना प्रत्याशी बनाया है. बसपा ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं और फूलबाबू को अपना प्रत्याशी बनाया है. इन अटकलों के बीच बुधवार को यह साफ हो जाएगा कि वरुण गांधी पीलीभीत सीट से चुनाव लड़ेंगे या नहीं.
गौरतलब है कि प्रदेश की जिन आठ सीटों पर पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है, उनमें पीलीभीत भी शामिल है. भाजपा ने अपना प्रत्याशी पहले ही उतार दिया है और यह साफ हो गया है कि वरुण गांधी के लिए इस सीट पर अब कोई जगह नहीं रह गई है. यह और बात है कि उनकी मां मेनका गांधी पर भाजपा ने एक बार फिर विश्वास जताया है और उन्हें सुल्तानपुर सीट से उम्मीदवार बनाया है. चूंकि पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 27 मार्च है, इसलिए कल तक यह साफ हो जाएगा कि वरुण गांधी पीलीभीत से उम्मीदवार होंगे या नहीं? पिछले दस वर्ष में वरुण गांधी को न तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को में कोई जिम्मेदारी दी गई है और न ही संगठन में कोई पद. हालांकि, इस दौरान उन्होंने भाजपा सरकारों की आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ा. उन्होंने सरकार और संगठन के खिलाफ खुलकर सार्वजनिक बयान ही नहीं दिए, बल्कि अखबारों में लेख तक लिख डाले. ट्विटर पर भी सरकार के खिलाफ उनकी सक्रियता खूब चर्चा में रही. वरुण गांधी ने तमाम मौकों पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश सरकार की भी खुलकर आलोचना की.
पीलीभीत संसदीय क्षेत्र : मेनका व वरुण गांधी ने कब जीता चुनाव? |
- 1989 : मेनका गांधी ने जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता. |
- 1996 : मेनका गांधी ने दोबारा जनता दल के टिकट पर लोस चुनाव जीता. |
- 1998 : निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एक बार फिर चुनकर लोकसभा पहुंचीं. |
- 1999 : निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एक बार फिर चुनकर लोकसभा पहुंचीं. |
- 2004 : मेनका गांधी एक बार फिर भाजपा के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचीं. |
- 2009 : वरुण गांधी ने मां की विरासत संभाली और भाजपा से सांसद चुने गए. |
- 2014 : मेनका गांधी फिर भाजपा के सिंबल पर मैदान में उतरीं और जीतीं. |
- 2019 : वरुण गांधी ने एक बार फिर इसी सीट से चुनाव लड़ा और जीता. |
मुखर वक्ता और बेबाक बातचीत के लिए पहचाने जाने वाले वरुण गांधी अपने बयानों के कारण अपने राजनीतिक करियर के आरंभ से ही चर्चा में बने रहे हैं. उन्होंने कभी भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी जैसा नेता बताते हुए प्रधानमंत्री बनाने के वकालत की, तो कभी कहा कि जाति और धर्म की दीवार तोड़कर शासन तंत्र चलाने की क्षमता राजनाथ सिंह में ही है. हालांकि, उन्हें इसका इनाम भी मिला. मार्च 2013 में राजनाथ सिंह ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया. वह पार्टी में अब तक सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय महासचिव थे. यही नहीं पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा मामलों का प्रभारी भी बनाया. वरुण गांधी ने 2014 का लोकसभा चुनाव सुल्तानपुर संसदीय सीट से लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी अमिता सिंह को पराजित कर दोबारा सांसद बने. इसके बाद जब पार्टी की कमान अमित शाह के हाथ आई, तो उन्होंने अगस्त 2014 में वरुण गांधी को महासचिव पद से हटा दिया. साथ ही पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी भी उनसे ले ली गई. 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें पार्टी और सरकार में कोई पद नहीं मिला. इसके बाद वह केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों के प्रति मुखर विरोध करने लगे.
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