रांची: अलग राज्य आंदोलन की उपज झारखंड मुक्ति मोर्चा में इन दिनों सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है. हालत यह है कि पार्टी के कई शीर्ष नेता जेएमएम को अलविदा कर चुके हैं. नेताओं का पार्टी छोड़ने का यह सिलसिला इस साल लोकसभा चुनाव के समय से जो शुरू हुआ वह अब तक जारी है. घर छोड़कर दल बदलने वाले नेता इसके पीछे की वजह अपनी उपेक्षा बता रहे हैं. सीता सोरेन के बाद चंपाई सोरेन फिर लोबिन हेम्ब्रम का पार्टी छोड़ना झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए एक बड़ा झटका है.
बताया जा रहा है कि इसके अलावा कुछ और नेता पार्टी छोड़ने के कतार में हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या हेमंत सोरेन मजबूत हुए हैं या जेएमएम कमजोर हुआ है. जेएमएम केंद्रीय महासचिव विनोद पांडे कहते हैं कि जो बिखराव हुआ है, इससे पार्टी को कोई क्षति नहीं होगी बल्कि इससे मजबूती मिलेगी. जब-जब इस तरह की परिस्थितियां आती है, झारखंड मुक्ति मोर्चा मजबूती के साथ उभरती है. विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक को चुनाव लड़ना है, जो चुनौती तो है लेकिन हम न तो चुनौती से घबराते हैं और न ही संघर्ष से. क्योंकि हमारी उपज ही संघर्ष से हुई है.
जेएमएम गठन के बाद पार्टी में कई बार टूट
झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन अलग राज्य के संघर्ष के साथ हुआ. कुर्मी नेता बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के नेतृत्व में 4 फरवरी 1973 में पार्टी का गठन हुआ. धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में ए के राय की मौजूदगी में हुई. शुरुआत में जेएमएम और एमसीसी एक साथ सामाजिक कार्यों में लगे रहे. इस दौरान गुरु जी शिबू सोरेन सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे. इन सबके बीच झामुमो के अंदर बिखराव देखा गया. 1983-84 में विनोद बिहारी महतो और सोरेन अलग-अलग हो गए. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक गुट के अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो, महासचिव टेकलाल महतो बने तो दूसरे गुट के अध्यक्ष निर्मल महतो, महासचिव शिबू सोरेन, उपाध्यक्ष सूरज मंडल को बनाया गया. लेकिन 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद दोनों गुट फिर से एक हो गए.
1989 के लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के तीन सांसद और 19 विधायक थे. इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर 1993 में एक बार फिर बिखराव देखा गया, जिसमें शिबू सोरेन के नेतृत्व में एक अलग गुट बना. वहीं, दूसरे गुट के नेता कृष्णा मरांडी बने. 2018 में जम्मू मंडी गुट का नया नाम झामुमा उलगुलाम दिया गया, जिसके अध्यक्ष पूर्व सांसद कृष्णा मरांडी थे. इस गुट में शैलेंद्र महतो, बेनीवाल महतो, अर्जुन राम, सूरज सिंह बेसरा जैसे कई नेता शामिल थे.
बिखराव के बीच हेमंत सोरेन और हुए मजबूत
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर बिखराव के बीच हेमंत सोरेन मजबूत हुए हैं. सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन का पार्टी छोड़ना और कल्पना सोरेन का सक्रिय राजनीति में आने से हेमंत सोरेन को ताकत मिली है. कल तक घर के अंदर विरोध का सामना कर रहे हेमंत सोरेन विपक्ष के चौतरफा हमला से जूझते रहे. हालांकि विपक्षी दल बीजेपी का मानना है कि हेमंत सोरेन कमजोर हुए हैं और उन्हें घर से लेकर पार्टी के अंदर और जनता के बीच विरोध झेलना पड़ रहा है.
बीजेपी प्रवक्ता अनिमेष कुमार सिंह कहते हैं कि इसका रिजल्ट विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा. राजनीतिक दांव पेंच के बीच राज्य की बागडोर संभाले हेमंत सोरेन को इस कार्यकाल में सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ा है. अपने पिता गुरु जी शिबू सोरेन की अस्वस्थता और बड़े नेताओं का चुनाव के वक्त पार्टी छोड़ने के बावजूद जेएमएम को उनके कार्यक्षमता पर पूरा भरोसा है. जेएमएम का मानना है कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन कर हेमंत सोरेन एक बड़े नेता के रूप में उभरने में जरूर सफल होंगे. बहरहाल हेमंत सोरेन के लिए आने वाला समय परीक्षा की घड़ी जैसी होगी, जिसमें जनता उनकी कार्यकुशलता का फैसला करेगी.
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