पटना : 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद जनता से संवाद के लिए 2006 में ही जनता दरबार की शुरुआत की थी. मुख्यमंत्री आवास में ही जनता दरबार शुरू हुआ था. 2016 तक यानी 10 सालों तक लगातार मुख्यमंत्री जनता दरबार लगाते रहे. लोगों की समस्याओं का महीने के पहले तीन सोमवार को मुख्यमंत्री सुनते और ऑन स्पॉट अधिकारियों को समाधान का निर्देश देते.
जनता दरबार से CM नीतीश का मोह भंग! : मुख्यमंत्री का जनता दरबार का कार्यक्रम काफी पॉपुलर हो गया लेकिन लोक शिकायत निवारण कानून बनने के बाद मुख्यमंत्री ने जनता दरबार बंद कर दिया. कहा कि लोगों को जनता दरबार आने की जरूरत नहीं है. हालांकि जब 2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू का परफॉर्मेंस खराब हुआ तो फिर से 2021 में 5 साल बाद जनता दरबार मुख्यमंत्री ने शुरू किया. इधर अब पिछले लगभग 1 साल से एक बार फिर से जनता दरबार से मोह भंग हो गया है.
''अगले साल विधानसभा का चुनाव है. ऐसे में जनता दरबार बंद करने से गलत मैसेज जाएगा. हालांकि कहना जल्दबाजी होगा कि अब जनता दरबार से मुख्यमंत्री का मोह भंग हो गया है. संभव है जनता दरबार को फिर से मुख्यमंत्री शुरू भी कर दें.''- भोलानाथ, राजनीतिक विशेषज्ञ
'जनता दरबार फ्लॉप शो' : विपक्षी पार्टियों के नेता मुख्यमंत्री के जनता दरबार को फ्लॉप शो कहते हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि जनता दरबार में मुख्यमंत्री शिकायत तो जरूर सुनते थे लेकिन उसका समाधान नहीं होता था.
''बिहार में जिला अनुमंडल और प्रखंड स्तर पर जो व्यवस्था बनी हुई है. लोगों की समस्या का समाधान का अधिकारियों की मनमानी के कारण वह व्यवस्था कॉलेप्स कर गया है. इसलिए मुख्यमंत्री के जनता दरबार में एक ही आदमी कई बार अपनी इस समस्या के समाधान के लिए आता था.''- एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी
''जनता दरबार में लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं होता था. उनकी समस्या और बढ़ जाती थी. इसलिए अब जनता दरबार होगा भी नहीं.''- प्रेमचंद मिश्रा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
'जब लगेगा फिर शुरू करेंगे' : हालांकि नीतीश कुमार के नजदीकी जेडीयू एमएलसी संजय गांधी का कहना है कि मुख्यमंत्री को जब लगेगा कि फिर से जनता दरबार शुरू करना चाहिए, तो जरूर शुरू करेंगे. जनता दरबार में तो मुख्यमंत्री लोगों की समस्या का समाधान करते थे और लोगों को इससे काफी लाभ मिलता था.
''मुख्यमंत्री तो जनता के बीच ही रहते हैं. लोकसभा का चुनाव हो गया और उसके बाद फिर मुख्यमंत्री कई कार्यक्रमों में व्यस्त रहे. इसलिए जनता दरबार शुरू नहीं कर पाए. इसलिए जब उपयुक्त लगेगा मुख्यमंत्री जनता दरबार जरूर शुरू करेंगे.''- संजय गांधी, जेडीयू एमएलसी
जनता दरबार शुरू करने के पीछे की कहानी : 2005 में बिहार की कानून व्यवस्था बहुत बेहतर नहीं थी. जब बिहार की सत्ता नीतीश कुमार ने संभाली तो मुख्यमंत्री ने लोगों की समस्याएं जानने के लिये 1 साल बाद 2006 में ही जनता दरबार की शुरुआत कर दी थी. मुख्यमंत्री का जनता दरबार हो या फिर यात्रा काफी पॉपुलर हुआ.
कई योजनाओं को शुरू किया : दोनों कार्यक्रम से मुख्यमंत्री ने जनता के फीडबैक के आधार पर कई बड़ी योजना शुरू की. साइकिल योजना, पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजना, पंचायत में आरक्षण जैसे बड़े फैसले भी लिए. सड़क, बिजली को बेहतर बनाने के लिए सबसे ज्यादा काम किया और कानून का राज स्थापित करना नीतीश कुमार का यूएसपी माना जाता है.
सुशासन राज का मैसेज : मुख्यमंत्री प्रत्येक जनता दरबार के बाद मीडिया से भी बात करते थे और एक मैसेज देने की कोशिश भी करते थे कि बिहार में सुशासन का राज कायम हो गया है. मुख्यमंत्री में जनता के फीडबैक के आधार पर जो फैसले लिए उसका लाभ भी मिला. बिहार में 2010 में भी नीतीश कुमार प्रचंड बहुमत के साथ फिर से मुख्यमंत्री बने. जनता दरबार 2016 तक लगातार चलता रहा.
लोक शिकायत निवारण कानून बना : 10 सालों तक चलने के बाद नीतीश कुमार ने लोक शिकायत निवारण कानून बना दिया. इस कानून के बनने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि अब लोगों को जनता दरबार में आने की जरूरत नहीं है. इस कानून के माध्यम से तय समय में अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं. हालांकि कुछ समय के बाद मुख्यमंत्री ने लोक संवाद कार्यक्रम जरूर शुरू किया, जिसमें लोगों की समस्याओं की जगह उनका सुझाव लेते थे. यह कार्यक्रम भी बहुत दिनों तक नहीं चला.
43 पर आने के बाद फिर शुरू : जब 2020 में जेडीयू का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहतर नहीं हुआ. जेडीयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी हो गई. केवल 43 सीट विधानसभा में जीत पाई. तब नीतीश कुमार को लगा कि जनता से दूर होने के कारण ही यह रिजल्ट आया है. पार्टी नेताओं के मंथन के बाद नीतीश कुमार ने फिर से बड़े ताम-झाम के साथ जनता दरबार की शुरुआत कर दी.
जनता दरबार का स्वरूप बदला : मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में इस बार इसके लिए हॉल बनाया गया. जिस पर बड़ी राशि खर्च की गई है, क्योंकि इससे पहले मुख्यमंत्री आवास में ही जनता दरबार होता था. इसलिए इस बार जनता दरबार का स्वरूप भी बदल गया.
कोरोना का दिखा असर : कोरोना काल में जनता दरबार के पूरे आयोजन पर काफी असर पड़ा. सीमित संख्या में ही लोगों को बुलाया जाने लगा. हालांकि इस जनता दरबार का भी लोगों को बहुत इंतजार रहता था. लेकिन अब एक साल से जनता दरबार बंद है और नीतीश कुमार का एक तरह से मोहभंग हो चुका है.
'जनता दरबार से एक मैसेज जाता था' : राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि यह सही बात है कि मुख्यमंत्री लंबे समय से जनता दरबार का कार्यक्रम नहीं कर रहे हैं. जनता दरबार के कार्यक्रम से लोगों की समस्या के बारे में मुख्यमंत्री को पता चलता था. उसका समाधान करने का निर्देश भी देते थे तो इससे एक मैसेज जाता था.
मुख्यमंत्री जनता दरबार के कई रोचक किस्से : मुख्यमंत्री के जनता दरबार में लोग बड़ी उम्मीद से आते थे. समस्याओं का समाधान भी होता था. कई बार अधिकारियों पर कार्रवाई भी होती थी. मुख्यमंत्री के जनता दरबार के कई रोचक किस्से भी हैं. कई लोगों की समस्या का समाधान भी नहीं होता था तो ऐसे लोग मुख्यमंत्री के जनता दरबार में एक से अधिक बार भी आते थे. बिजली में गड़बड़ी की समस्या हो या फिर अनुकंपा पर नौकरी मांगने की बात हो या जमीन विवाद की समस्या हो ऐसे हजारों मामले होते थे.
बिजली बिल की पीड़ा सुन लिया एक्शन : ऐसे ही जनता दरबार में पश्चिमी चंपारण से एक बुजुर्ग फरियादी महेंद्र प्रसाद बिजली बिल की पीड़ा सुनाते हुए मुख्यमंत्री के सामने ही रोने लगे. मुख्यमंत्री ने चुप कराते हुए पूछा कि समस्या क्या है तब बुजुर्ग व्यक्ति ने मुख्यमंत्री से कहा कि साल भर पर बिजली बिल आता है और इतना ज्यादा इस बार आया है कि हम दे नहीं पाएंगे.
मुख्यमंत्री ने पूछा कि आप अपने घर पर क्या चलाते हैं कि इतना बिजली बिल आया है. बुजुर्ग ने कहा कि सिर्फ बत्ती पंखा मेरे घर में चलता है उसके बाद मुख्यमंत्री ने बिजली विभाग के अधिकारियों को हरकाया और बिजली बिल दुरुस्त करने का निर्देश दिया.
'तुम्हारा भी नाम नीतीश कुमार' : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने एक और नीतीश कुमार अपनी शिकायत लेकर पहुंच गया. तब मुख्यमंत्री ने हंसते हुए पूछा- तुम्हारा भी नाम नीतीश कुमार है? युवक बेगूसराय से आया था. उसने जनता दरबार में मुख्यमंत्री के सामने कहा कि उसका भी नाम नीतीश कुमार है. उसने गुहार लगाई कि उसके पिता की मौत हो गई है. उसके पिता मध्य विद्यालय में रसोइया के पद पर कार्यरत थे. उसे कोई भी सहायता राशि नहीं मिली है.
इसके बाद तुरंत सीएम ने दरबार में मौजूद संबंधित पदाधिकारी को फोन लगाया और निर्देश दिया कि बेगूसराय से एक लड़का आया है. जिसका नाम है नीतीश कुमार है. आप तुरंत मामले को देखिए और इसकी समस्या का समाधान कीजिए.
अपना नाम सुनकर मुस्कुराने लगे : मुख्यमंत्री को तब और आश्चर्य हुआ जब अगला भागलपुर का फरियादी भी नीतीश कुमार ही निकला. दोबारा नीतीश कुमार का नाम सुनकर मुख्यमंत्री मुस्कुराने लगे और हंसते हुए कहा- यहां कितने नीतीश कुमार है भाई? सबसे पहले तो मेरा ही नाम नीतीश कुमार रखा गया था. यह सुन जनता दरबार में मौजूद मंत्री और अधिकारी भी हंसे बिना नहीं रहे.
जनता दरबार की लोकप्रियता के कारण एक बार केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह भी पहुंचे थे और तारीफ की थी.
1400 से भी अधिक लोग आते थे : मुख्यमंत्री के जनता दरबार की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है. 2005 में सत्ता संभालने के 1 साल बाद ही 2006 में जब मुख्यमंत्री आवास में जनता दरबार का कार्यक्रम नीतीश कुमार ने शुरू किया था कुछ ही सप्ताह में भीड़ जनता दरबार में बढ़ने लगी . मुख्यमंत्री महीने के पहले तीन सोमवार को जनता दरबार लगाते थे और फरियादियों की संख्या कभी-कभी 1400 से भी पर पहुंचने लगी, अमूमन 800 से 1000 लोग हर सप्ताह पहुंचते थे और सबसे अधिक है भूमि विवाद और कानून व्यवस्था को लेकर ही आते थे.