नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली न जाने कितनी बार उजड़ी और कितनी बार बसाई गई है. इसके निशान दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में स्थित ऐतिहासिक स्मारक, धरोहर से रूप में हैं. कभी इंद्रप्रस्थ कभी वॉल सिटी और फिर नई दिल्ली के रूप में देश की राजधानी के तौर पर पहचाने जाने वाली दिल्ली में ऐतिहासिक धरोहरों और स्मारकों का अपना वजूद है. इसे किसी भी तरह के नुकसान पहुंचाने वाले लोग और एजेंसियों के खिलाफ समय-समय पर एक्शन भी होता रहा है.
गत वर्ष दिल्ली में संपन्न हुए G20 शिखर सम्मेलन देश की प्रतिष्ठा का सवाल था तो इसकी तैयारी के लिए तमाम सरकारी स्थानीय निकायों को अतिक्रमित स्थान को खाली करने की जिम्मेदारी दी गई थी. इसमें सबसे अधिक सक्रिय भूमिका दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का रहा. इसी दौरान जब सड़क किनारे फुटपाथों पर चौराहों के समीप बने हुए धार्मिक स्थलों को खिलाफ कार्रवाई हुई तो काफी शोर मचा. मामला कोर्ट में पहुंचा. सितंबर 2023 में एक मामले की सुनवाई के दौरान डीडीए ने हाईकोर्ट में एक हालकनामा दायर कर स्पष्ट कर दिया था कि वह महरौली के आर्किलॉजिकल पार्क स्थित दिल्ली वक्फ बोर्ड की किसी मस्जिद, कब्रगाह या वैध संपत्ति को गिराने की कोई कार्रवाई नहीं करेगा.
बीते दिनों महरौली की 600 साल से अधिक पुरानी अखुंदजी मस्जिद को बिना किसी वैध नोटिस दिए उसे ध्वस्त कर दिया गया. यह कार्रवाई 30 जनवरी को तड़के जिस तरीके से हुआ उस पर अब काफी हंगामा मचा है. सोमवार को ही दिल्ली हाईकोर्ट ने डीडीए को फटकार लगाते हुए यह आदेश दिया कि उस भूमि को अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखें. 600 साल पुरानी मस्जिद, जिसे ध्वस्त किया गया है. इस पर कोर्ट ने भी ऐतराज जताया. ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि आखिर सरकारी एजेंसियां अतिक्रमण, अवैध निर्माण के खिलाफ किस तरह कार्रवाई करती है.
दिल्ली में अवैध निर्माण हमेशा सुर्खियों में क्यों रहता है?: डीडीए से रिटायर्ड टाउन प्लानर एके जैन के अनुसार, देश की राजधानी होने के लिहाज से दिल्ली सबको आकर्षित करती है. उच्च शिक्षा, कामकाज, रोजगार के सिलसिले में यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग आते हैं. इनमें से अधिकांश फिर यही रह जाते हैं. दिल्ली में जगह सीमित है और यहां की सभी जमीनों का मालिकाना हक केंद्र सरकार की तरफ से डीडीए के पास है. रिहायशी इलाकों के लिए प्लानिंग के अनुसार डीडीए ने कॉलोनियों को विकसित किया है और व्यावसायिक इलाके अलग चिह्नित किए गए हैं. जहां पर भवन उपनियम का पालन करते हुए निर्माण को वैध करार दिया गया है.
बाकी कृषि योग्य जमीन, गांव और स्थानीय निकाय नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली कैंट बोर्ड व दिल्ली सरकार को भी स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, दफ्तर आदि बनाने के लिए जमीन दी गई है. जिन जमीनों पर निर्माण हो चुका है वह तो सरकारी एजेंसियों के पास है, लेकिन जहां सरकारी जमीन पर निर्माण नहीं हुआ है वहां पर धीरे-धीरे करके लोग कब्जा जमाते हैं. और वहां कार्रवाई के अभाव में फिर वह एक कॉलोनी का रूप ले लेती है. कृषि योग्य जमीन को भी अनधिकृत रूप से काटकर कॉलोनी बसा दिया गया है. इसी के चलते समय-समय पर एजेंसियां कार्रवाई करती है.
अवैध निर्माण न हो, इस पर निगरानी की क्या है प्रक्रिया?: दिल्ली के रिहायशी इलाके में किसी तरह का अवैध निर्माण हुआ है तो उसे ढहाने और संपत्ति मालिक के खिलाफ कार्रवाई करने का दिल्ली सरकार ने स्पष्ट आदेश दिया है. इसमें भारी जुर्माना से लेकर जेल भेजने तक का प्रावधान है. इसके लिए अलग-अलग एजेंसियों को मिलाकर टास्क फोर्स भी बनाई गई है. इसमें क्षेत्रीय एसडीएम की भूमिका अहम होती है.
एसडीएम को प्रत्येक 15 दिन पर अपने कामकाज की रिपोर्ट सरकार को भेजनी होती है. इस टास्क फोर्स में शामिल दिल्ली पुलिस, नगर निगम, दिल्ली जल बोर्ड, डीडीए के कर्मचारी भी होते हैं. इन सब की प्राप्त सूचना के आधार पर के खिलाफ कार्रवाई की जाती है. अलग-अलग स्थानीय निकाय और सरकारी एजेंसियों ने अपने स्तर पर भी अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई के लिए ऑनलाइन शिकायत लेने का प्रावधान बनाया है. जहां पर कोई आम नागरिक शिकायत कर सकता है.
अवैध निर्माण को लेकर दिल्ली पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है, इस पर रोक के लिए क्या किया गया?
अवैध निर्माण को शह देने में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर हमेशा से सवाल उठाते रहे हैं. इसको लेकर अक्टूबर 2022 में दिल्ली पुलिस के कमिश्नर संजय अरोड़ा ने सर्कुलर (संख्या 36/2022) जारी किया था. इसमें स्पष्ट आदेश दिया गया कि दिल्ली पुलिस का काम अवैध निर्माण को रोकना है, करवाना नहीं. कार्रवाई के लिए संबंधित निकायों को सिर्फ सूचना देना है.
पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी सर्कुलर में अगर निजी अवैध निर्माण के संदर्भ में पुलिस की भूमिका पाई जाएगी तो उसके खिलाफ कड़ी करवाई की जाएगी. कहीं भी पुलिस को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की सूचना मिलती हैं तो उसे हटाने के लिए भी संबंधित एजेंसी को सिर्फ सूचित करने को कहा गया है.
महरौली में छह सौ साल पुरानी मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद अब क्या होगा?: बीते दिनों डीडीए ने महरौली इलाके में सैकड़ों साल पुरानी मस्जिद, मदरसे व अन्य धार्मिक स्थानों को जिस तरह अवैध निर्माण बताते हुए उसे ध्वस्त कर दिया, अब मामला तूल पकड़ने के बाद कोर्ट पहुंच गया. दिल्ली वक्फ बोर्ड की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि डीडीए के गठन से सैकड़ों साल पहले यह धार्मिक स्थल अस्तित्व में था तो आखिर डीडीए ने कैसे उसे अवैध घोषित कर दिया? इस मामले को जब दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तब जस्टिस सचिन दत्ता ने डीडीए से जवाब दाखिल करने को कहा है. इस मामले की सुनवाई 12 फरवरी को होगी.