नई दिल्ली: सावन की शुरुआत के साथ ही त्योहारों का आगाज हो जाता है. इस महीने में तीज भी पड़ती है. घर की बहू-बेटियों को त्योहार पर कुछ न कुछ उपहार देने की रीत है. बहुत से परिवारों में बेटियों के ससुराल में घेवर भेजी जाती है. ऐसे में घेवर की खुशबू से सावन का बाजार महकने लगा है. ऐसा कहा जाता है कि इस रीत की शुरुआत राजस्थान से हुई, जहां लड़कियों की शादी के बाद सावन में तीज के दिन उनके मायके से घेवर आता है या वो अपने मायके जाती हैं तो घेवर लेकर जाती हैं. यही वजह है कि सावन में घेवर की डिमांड काफी बढ़ जाती हैं.
दूसरी बात ये है कि इस मौसम में नमी बढ़ जाती है और दूसरी मिठाइयां खराब होने लगती हैं, लेकिन घेवर जिसका स्वाद नमी के साथ और बढ़ जाता है. वैसे तो राजधानी में घेवर की कई मशहूर दुकानें हैं, जहां कई वैरायटी के घेवर मिलते हैं. चांदनी चौक में मौजूद तिवारी स्वीट्स में घेवर के शौकीनों के लिए विशेष 5 किलो का घेवर तैयार किया गया है, जिसकी कीमत 4000 रुपए है. ऐसे में जानते हैं घेवर के मॉनसून में ही मिलने के कारण और इससे जुड़े फायदे...
दुकान के मालिक गौरांग तिवारी ने बताया कि वह इस दुकान के तीसरी पीढ़ी के हैं. उनके दादा ने दुकान को 1986 में खोला था. फिलहाल दुकान की जिम्मेदार उनके पिता रविकांत तिवारी और वह मिलकर उठा रहे हैं. जहां तक घेवर की डिमांड की बात है, तो मानसून की पहली बारिश से ही घेवर के शौकीन शॉप पर पहुंचते हैं. पिछले दो हफ्तों में घेवर की डिमांड बढ़ गई है. जैसे-जैसे तीज और रक्षाबंधन करीब आएंगे, मांग में तेजी आएगी.
आखिर सावन में ही क्यों बनता है घेवर? सावन का ही मात्र एक ऐसा महीना है, जब सभी मिठाइयों की दुकानों पर घेवर बिकने लगते हैं. ऐसा कहा जाता है मानसून के मौसम में उमस के कारण मिठाइयां जल्दी खराब हो जाती है. लेकिन, घेवर एकमात्र ऐसी मिठाई है, जिसमें उमस के कारण और स्वाद बढ़ता है. गौरांग ने बताया कि वर्तमान में विज्ञान इतना आगे बढ़ गया है कि मिठाइयों को उमस से बचाया जा सकता है. मानसून का घेवर पर अब कोई खास असर नहीं पड़ता है. लेकिन घेवर और सावन का एक अटूट संबंध है. जो शायद कभी अलग नहीं हो सकता है. घेवर एक ऐसी मिठाई है जिसको कई और तरीकों से भी बनाया जा सकता है. जैसे चॉकलेट घेवर, ब्लूबेरी आदि चीज़ों को मिलाकर सालभर सेल किया जा सकता है. लेकिन, सावन में घेवर की मांग सबसे ज्यादा होती है.
घेवर की वैरायटी: आपने कई तरह के घेवर देखे होंगे, लेकिन तिवारी स्वीट्स के यहां एक घेवर ऐसा है, जिसका वजन 5 किलो है. गौरांग ने बताया कि इसका नाम बब्बर घेवर है. इसे ग्रहाकों की स्पेशल डिमांड पर बनाया जाता है. इसकी कीमत वजन पर निर्भर करती है. कई बार दुकान पर आने वाले लोगों को घेवर चखने का मन होता है, इसमें से उनकी डिमांड के अनुसार सर्व किया जाता है. इसके अलावा दुकान पर केसर घेवर, खोया घेवर और सादा घेवर भी मौजूद है. वहीं सबसे छोटे घेवर का वजन 250 ग्राम है. इसको कई आकारों में बनाया जाता है, जैसे हार्ट, सर्किल, स्क्वेर आदि.
मानसून में घेवर खाने के फायदे: मॉनसून में पेट से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आयुर्वेद के मुताबिक, इस दौरान दूध और दूध से बनी चीज़ों का सेवन ना करने की सलाह दी जाती है. ऐसे में ये सभी तत्व घेवर में पाए जाते हैं. घेवर में भारी मात्रा में घी मौजूद होता है. घी का सेवन मॉनसून में फायदेमंद माना गया है. मॉनसून में घी खाने से इम्यूनिटी बढ़ती है. ऐसे में इस मौसम में घेवर खाने के लिए पर्फेक्ट होता है.
मानसून में घेवर खाने के नुकसान: लोगों को ज्यादा मैदे वाले घेवर के सेवन से सावधान रहना चाहिए. क्योंकि मैदा को पचने में काफी समय लगता है, जिससे पेट में एसिडिटी होने की गुंजाइश बढ़ जाती है. इसके आलावा, ज्यादा मीठा घेवर खाने से कैलोरीज बढ़ सकती है. मधुमेह और हृदय सम्बन्धी मरीज़ों को डॉक्टर की सलाह से बाद ही घेवर खाना चाहिए.
घेवर की कीमत: गौरांग ने बताया कि उनको मिठाइयों के साथ एक्सपेरिमेंट करना अच्छा लगता है. लेकिन बाजार में सबसे ज्यादा डिमांड रेगुलर घेवर की ही होती है, जिसका वजन 500 ग्राम होता है. मलाई घेवर की कीमत 800 रुपए प्रति किलो है, जिसे लोग लेन-देन में काफी यूज करते हैं.
घेवर की आकर्षक पैकिंग: ज्यादातर लोग अपने रिश्तेदारों को गिफ्ट करने के लिए ही घेवर लेते हैं. इसलिए अब घेवर की अच्छी क्वालिटी के साथ लोग अच्छी पैकिंग की भी डिमांड करते हैं. इसको ध्यान में रखकर इस बार कई तरह के नए पैकिंग बॉक्स को बनवाया गया है, ताकि देखने में आकर्षक लगे.