लखनऊ : 30 नवंबर के बाद अब लगभग यह तय हो गया है कि मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार स्थाई डीजीपी नहीं बनेंगे. इसकी वजह है कि प्रशांत कुमार के रिटायरमेंट में अब छह माह से भी कम का समय बचा है और नियमनुसार डीजीपी के लिए उस अफसर के नाम पर चर्चा हो सकेगी, जिसका कार्यकाल कम से कम 6 माह शेष होगा. सरकार ने भले हो डीजीपी चयन को लेकर नई नियमावली तक कैबिनेट से पास कर दी थी, लेकिन नियमावली के क्रियान्वयन में हुई देरी के चलते अब तक स्थाई डीजीपी को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है.
सरकार ने बनाई है नियमावली: सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और यूपी समेत कई राज्यों में स्थाई डीजीपी की नियुक्ति न होने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो यूपी में सबसे पहले हलचल हुई थी. क्योंकि बीते तीन वर्ष में यहां लगातार चार अस्थाई डीजीपी बनाए गए हैं. मुकुल गोयल को अचानक डीजीपी के पद से हटाए जाने के बाद यूपी सरकार व संघ लोक सेवा आयोग के बीच आई खटास के चलते योगी सरकार ने स्थाई डीजीपी के चयन करने के लिए 5 नवंबर को खुद की नई नियमावली बना ली थी. इस नियमावली के अनुसार डीजीपी के चयन के लिए राज्य सरकार को एक कमेटी गठित करनी होगी. इस कमेटी में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, रिटायर्ड डीजीपी, मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव गृह संघ लोकसेवा आयोग के एक सदस्य और वर्तमान के पूर्ण कलिक डीजीपी होंगे. हालांकि इस कमेटी का गठन अब तक नहीं हो सका है. ऐसे में प्रशांत कुमार का पूर्ण कालिक डीजीपी बनना अब संभव नहीं है.
प्रशांत क्यों बाहर: अब इस बात पर चर्चा है कि यदि प्रशांत कुमार नहीं तो फिर कौन वो अफसर होगा, जो 3 वर्ष बाद स्थाई डीजीपी बनेगा. दरअसल, सरकार यूपीएससी को डीजीपी चयन के लिए प्रस्ताव भेजती है तो उसे वेकसी डेट मई 2022 से भेजेगी. जिसमें उन सभी अफसरों के नाम भेजनें होंगे जो अभी सेवा में हैं और तीस वर्ष की आईपीएस सेवा पूरी हो चुकी हो. उसमें प्रशांत कुमार का नाम तो होगा लेकिन वह नीचे पायदान पर होगा. इसके अलावा यदि सरकार की नई नियमावली के तहत डीजीपी के नाम का चयन किया जाता है तो भी उसमे प्रशांत कुमार का नाम नहीं होगा. हालांकि इसके तहत स्थायी डीजीपी की रेस में कई अधिकारियों के नाम शामिल हैं.
डीजीपी की रेस में ये नाम: यूपी सरकार यदि नई नियमावली के तहत डीजीपी का चयन करती है तो मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार, डीजी जेल पीवी रामाशास्त्री के अलावा केंद्र में तैनात आदित्य मिश्रा जैसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर स्थायी डीजीपी की रेस से बाहर हैं. बावजूद इसके इस रेस में कई तेजतर्रार अफसर शामिल हैं. जिसमें योगी सरकार के सबसे अधिक भरोसेमंद अफसर राजीव कृष्णा का नाम सबसे ऊपर है. राजीव मौजूदा समय डीजी विजिलेंस व पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष है. इसके अलावा डीजी होमगार्ड बीके मौर्य भी सीएम योगी के भरोसेमंद अफसरों में से एक हैं. हालांकि इस रेस में कई और भी अफसर शामिल हैं, जिसमे कुछ केंद्र में तैनात हैं. जिसमें डीजी पावर कॉर्पोरेशन मनमोहन कुमार बशाल, डीजी एसपीजी अलोक शर्मा, डीजी NDRF पीयूष आनंद, संदीप साळुंके, दलजीत चौधरी, पीसी मीणा, अभय प्रसाद, आशीष गुप्ता शामिल हैं. हालांकि इस रेस में महिला आईपीएस रेणुका मिश्रा भी हैं, लेकिन फिलहाल वो वेटिंग में चल रही हैं और योगी सरकार उनसे नाराज बताई जाती है.
जिन 4 अफसरों को अस्थाई डीजीपी बनाया गया
- 1988 बैच के आईपीएस डीएस चौहान 13 मई 2022 से 31 मार्च 2023.
- 1988 बैच के आरके विश्वकर्मा 1 अप्रैल 2023 से 31 मई 2023.
- 1988 बैच के आईपीएस विजय कुमार 1 जून से 31 जनवरी 2024.
- तत्कालीन अस्थाई डीजीपी प्रशांत कुमार 1 फरवरी 2024 में बनाए गए.
सरकार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करना है जवाब: वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि, सरकार ने भले ही अन्य तीन की ही तरह प्रशांत कुमार को भी बिना आयोग को प्रस्ताव भेजे ही अस्थाई डीजीपी बना लिया हो, लेकिन अब सरकार के सामने चुनौती सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करने को लेकर है. जिसमे कोर्ट ने उन सभी 7 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि उन्होंने अब तक स्थाई डीजीपी क्यों नहीं नियुक्त किया है. अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड मजबूती से रखने के लिए नियमावली तो बना ली लेकिन उसे क्रियान्वयन करने के लिए वक़्त तो लगेगा ही. यही वजह है कि प्रशांत कुमार को स्थाई डीजीपी बनने का मौका नहीं मिल सका. हेमंत कहते हैं कि यूपी और केंद्र के बीच अनबन का एक कारण डीजीपी के चयन को लेकर भी है. स्थाई डीजीपी न मिलने के पीछे यह भी एक बड़ा कारण है.
ऐसे होती है DGP की नियुक्ति : किसी भी राज्य के डीजीपी की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार ऐसे एडीजी रैंक से ऊपर के उन सभी आईपीएस अफसरों के नाम संघ लोक सेवा आयोग को भेजती है, जिनका कार्यकाल कम से कम छह महीने का बचा हुआ होता है और 30 वर्ष आईपीएस सेवा पूरी कर चुका हो. इस आयोग में यूपीएससी के चैयरमैन या फिर सदस्य इम्पैनलमेंट कमेटी के अध्यक्ष होते हैं. उनके अलावा भारत सरकार के गृह सचिव या विशेष सचिव, राज्य के मुख्यसचिव, वर्तमान डीजीपी व केंद्रीय बल का कोई एक चीफ शामिल होता है. आयोग सभी आईपीएस अफसरों की योग्यता देख कर तीन सबसे वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल राज्य सरकार को वापस भेजता है. यूपी के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की जनहित याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश बनाए थे, उसके अनुसार, डीजीपी की नियुक्ति कम से कम दो वर्ष के लिए होती है. डीजीपी को हटाने की प्रक्रिया सर्विस रूल्स के उल्लंघन या क्रिमिनल केस में कोर्ट का फैसला आने, भ्रष्टाचार साबित होने पर शुरू होती है या डीजीपी को तब हटाया जा सकता है, जब वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो.
पूर्व डीजीपी अरविन्द कुमार जैन कहते हैं कि डीजीपी के चयन सरकार की कार्रवाई का हिस्सा है, जिसे वो काफी समझदारी से करती है. ऐसे में भले ही सरकार ने नियमावली तैयार कर ली हो, लेकिन उसे जमीनी हकीकत लाने में वक़्त लगता है. सरकार या फिर कमेटी, जिसे भी डीजीपी के लिए चयन करेंगी निश्चित तौर पर वह उपयुक्त ही होगा.